मैं हूं चुनाव आयोग का आदमी

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जावेद अंसारी
न डीएम साहब की सफलता, न ही देखे जा रहे चुनाव आयोग के दिशा निर्देश! तैनाती क्या मिली, गुंडई करने का लाइसेंस समझ लिया, यह सच 18 से 22 मार्च तक लगातार देखा गया ग्राम्य विकास अभिकरण अमरोहा में। अधिकारी अल्लाह! तो बाबू सुभानल्लाह। क्या चुनाव आयोग की तैनाती गुण्डई की छूट देती है, या कानून के साथ गंदा खेल खेलने से बाज नहीं आ रहे अफसर। यूं तो मुख्यमंत्री योगी भी दुखी हैं, अक्सर बयान देकर भावुक दिखते हैं, मगर अधिकारी हैं कि दबंगई रग-रग में भरी है, निकलती ही नहीं। ‘‘मैं हूं चुनाव आयोग का सिपाही, मुझे न जनता से मतलब, न तुमसे, चुनाव होने तक नहीं करूंगा कुछ भी, जहां जाना हो जाओ’’ ये अल्फाज उस अफसर के हैं जो ग्राम्य विकास अमरोहा में मुखिया है। फिलहाल हम आपको तफ्सील में बतायें तो आरटीआई कानून के तहत अमरोहा जिले की सफलता, असफलता दस साल की मांगी गई थी, 09 फरवरी को सांसद निधि का लेखा-जोखा मांगा गया, और 05 मार्च के दिन ग्राम्य विकास अभिकरण की चिट्ठी द्वारा 123 पेज के 246 रूपये मांगे गये, मगर खजाने में जमा कराने की नौबत आयी तो पांच दिन तक लगातार बातें बनाई गईं, अंत में निकली सिर्फ दबंगई कि यह नहीं दी जा सकती। फिलहाल समस्या टीम ने 23 मार्च को जिला निर्वाचन अधिकारी अमरोहा के लिये फीस भेजी, अफसर की गतिविधियां लिखीं, मुख्य चुनाव आयुक्त भारत के सामने भी पहुंचाई गई, ऐसे में क्या होगा, यह समय बतायेगा। फिलहाल हम आपको बता दें कि कहने के लिये जिला अमरोहा कई साल पुराना हो गया, मगर चुनाव आयोग के नाम से जिला प्रशासन में किस तरह जनता से जुड़े मसले निपटाये जा रहे, यह सुबह से शाम तक पहुंचने वाले हर जरूरतमंद से आसानी से सुनी जा सकती है।