ग्रेटर नोएडा के हाॅस्टल उड़ा रहे कानून की धज्जियां

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  • ना कंसेन्ट, ना एसटीपी, ना सीजीडब्ल्यूए की एनओसी
  • डीएम साहब करा रहे एनजीटी आदेश की दुर्गति

नई दिल्ली, 10 सितम्बर। एनजीटी ने आदेश दिया कि ओवर एक्सप्लोटिड में पानी का व्यवसाय करने वालों पर क्रिमिनल केस चलायें डीएम, फिर भी नोएडा के 40 से ज्यादा हाॅस्टल लाखों लीटर पानी से बेधड़क व्यापार चला रहे, एनजीटी आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। ग्रेटर नोएडा के हाॅस्टलों में ना राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से वाटर कंसेन्ट, ना बिल्डिंग में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी), इसके अलावा ओवर एक्सप्लोटिड एरिया में होने के बावजूद भी 40 से ज्यादा हाॅस्टल मालिक या किरायेदार बिना सीजीडब्लूए एनओसी के रोज लाखों लीटर जल दोहन बेहिचक व्यवसाय चला रहे।
हम आपको बता दें कि ग्रेटर नोएडा के नाॅलेज पार्क क्षेत्र में कई निजी हाॅस्टल जैसे- अन्नपूर्णा हाॅस्टल, ईजी स्टे हाॅस्टल, नालंदा हाॅस्टल, व्हाइट हाउस हाॅस्टल, रक्षा हाॅस्टल, मगद इन हाॅस्टल आदि कई निजी हाॅस्टल पिछले कई सालों से चल रहे हैं जिनमें आस पास के कई विश्वविद्यालयों के छात्र सालाना लाखों रूपए फीस अदा करके रहने को मजबूर हैं। इसी के चलते यहां कई हाॅस्टल माफिया सरकारी अधिकारियों से सांठ गांठ करके बिना वाटर कंसेन्ट, बिना भूजल दोहन एनओसी, बिना एसटीपी के अपना व्यवसाय धड़ल्ले से चला रहे हैं, जो पूरी तरह से एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों की अवमानना है।
राष्ट्रीय समस्या टीम ने जब हाॅस्टलों से पर्यावरणीय मानकों की जानकारी चाही, तो आधा दर्जन से ज्यादा हाॅस्टल संचालक स्पष्ट कहे कि एसटीपी क्या होती है? जल सहमति क्या होती है? भूजल एनओसी क्या होती है? ओवर एक्सप्लोटिड एरिया क्या होता है? या इसके प्रमाण कहां मिलेंगे… ना हमसे किसी ने पूछा, ना हमको मालुम। कुछ ने बताया कि उनके पास 150 से 300 तक बच्चे एक इमारत में हैं, और एक हाॅस्टल के पास 4 से 5 इमारत भी हैं, किसी ने कहा हमारे हाॅस्टल में 1200 से 1600 स्टूडेंस हैं, मगर इसके लिए जल, भूजल प्रमाण चाहिए और ऐसा कोई एनजीटी का आॅर्डर है, यह मुझे नहीं मालुम।

क्या है एनजीटी आदेश?
एनजीटी आदेश है कि ओवर एक्सप्लोटिड एरिया में अगर सीजीडब्ल्यूए से एनओसी नहीं है, तो ऐसे व्यवसाय, फैक्ट्री, होटल बंद करने की जिम्मेदारी डीएम की होगी, फिर भी उल्लंघन किया जाता है तो क्रिमिनल केस चलाया जाये। दूसरा आदेश है कि व्यवसायिक अथवा औद्योगिक परिसर के बाहर गंदा पानी नाला, नाली, सीवर में ना बहाया जाये, परिसर के अंदर सिंचाई एरिया में ही खर्च किया जाये। इसके अलावा परिसर के अंदर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट आवश्यक है, और इसके लिए डीएम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केन्द्रीय भूगर्भ जल प्राधिकरण, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मुख्य सचिव, पांचों को जिम्मेदार ठहराया है। मगर 45 महीने बाद भी वायलेटरों को कुछ नहीं मालुम।

एनजीटी आदेश की अवमानना की सजा
एनजीटी एक्ट 2010 की धारा 26, 27, 28 स्पष्ट है कि अगर सरकारी अधिकारी असफल पाये जाते हैं, आदेश का पालन नहीं कराते हैं, तो हर अधिकारी से रूपया दस करोड़ जुर्माना, अथवा तीन साल की सजा तय है, और अगर फैक्ट्री, होटल या अन्य व्यवसायी आदेश की अवमानना करते हैं तो रूपया 25 करोड़ जुर्माना अथवा तीन साल का कठोर कारावास तय है।

एनजीटी में होगा इसका फैसला
दिल्ली निवासी लाॅ स्टूडेंट नेहा सिंह, ने राष्ट्रीय समस्या टीम को बताया कि प्रदेश के एक बड़े हिस्से और उसकी बड़ी आबादी को प्यास बुझाने के लाले पड़े हैं, दूसरी तरफ पानी माफिया लाखों लीटर पानी बर्बाद करके व्यवसाय चला रहे हैं। पूछा कि इससे आपको क्यों दिक्कत है और इसमें कानून को क्या नुकसान है? तो नेहा सिंह ने जवाब दिया कि नदी के देश में हमारी आंखों के सामने प्यास के लिए मारामारी होगी, तो इसमें किसको दिक्कत नहीं होगी, और अगर सुप्रीम कोर्ट ने भूजल की रक्षा सीजीडब्ल्यूए को दी है, और व्यवसाय के लिए भूजल एनओसी लेना आवश्यक है, तो ऐसे व्यवसायियों को क्यों नहीं मालुम। लिहाजा हमारे हिसाब से एनजीटी के आदेशों की अवमानना के अपराध में डीएम नोएडा और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दोनों शामिल हैं, हमारा प्यास सही जगह शिकायत/केस करना है, फैसला करने का काम अदालत का है, जो होगा, वह समय बतायेगा।