बेहिसाब बूचड़खानों में स्थिति सबसे बदतर

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यूं तो एक जानवर काटकर सफाई करने के लिए एक हजार लीटर पानी की जरूरत यूपीपीसीबी ने निर्धारित की है। अदालत में दायर एक याचिका के जवाब में सरकार ने यह लिखकर दिया है। इस हिसाब से एक बूचड़खाने में ही 400 से 700 तक जानवर रोज काटकर मांस व्यापार करने का मतलब 4 लाख से 7 लाख लीटर पानी की खपत रोज होती है। यूपीपीसीबी के मुताबिक उत्तर प्रदेश राज्य में 179 बूचड़खाने हैं, इसके अलावा ज्यादातर बूचड़खाने में लगे रैंड्रिंग प्लांट जिनमें मांस से हड्डी अलग करने के लिए तकरीबन टनों लकड़ी रोज खपत की जाती है, इससे स्पष्ट है कि इतनी तादात में चल रहे बूचड़खाना परिसर में लगे रैंड्रिंग प्लांट उत्तर प्रदेश वन विभाग की कटान छमता से कहीं गुना ज्यादा है। खैर प्रदूषण नियंत्रण भारत सरकार के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य में सिर्फ 126 बूचड़खाने हैं और सीपीसीबी ने अदालत में यह भी स्पष्ट कहा कि ऐसे बूचड़खाने दिसम्बर 2015 के बाद नहीं चलने चाहिए जिन बूचड़खाने परिसर द्वारा गंदगी बाहर छोड़ी जाती है, यानी जेडएलडी नहीं हैं। इसके अलावा जिन बूचड़खाने की सारी कार्यप्रणाली कैमरे की नजर में नहीं है, यही नहीं सीपीसीबी में अदालत में यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसर गली गली में बूचड़खाने खुलवा देते हैं, जिसकी जानकारी भारत सरकार से छुपायी जाती है, ऐसी स्थिति में आप खुद समझ लीजिये कि मुख्य सचिव को स्पष्ट पत्र लिखा गया कि 2015 के बाद ऐसे बूचड़खाने नहीं चलने चाहिए जो प्रदूषण कानून का पालन नहीं करते, बावजूद यूपी में अवैध बूचड़खाने की मण्डी है, यह हकीकत अब देश की सबसे बड़ी अदालत के सामने पहुंच चुकी है। हालांकि यूपीपीसीबी ने जवाब में यह जरूर लिखा है कि बूचड़खाने में लगे रैड्रिंग प्लाट में आवश्यक कार्यवाही के लिए संयंत्र जरूरी हैं, ऐसे में याचिकाकर्ता ने स्पष्ट लिखा है कि अगर अदालत आदेश करेगी तो पचास से ज्यादा बूचड़खाने की हकीकत कानून के सामने  रखी जायेगी। फिलहाल अगली सुनवाई के लिए अदालत ने 27 अप्रैल तिथि मुकर्रर की है, क्या होगा, फैसला कानून करेगा। मगर हम आपको बता दें कि मांस व्यापार के लिए बूचड़खाना प्रबंधन किस तरह के घिनौने करतब करते हैं, किस तरह सरकारी खजाने से टैक्स के रूप में चोरी की जाती है, किस तरह फर्जी सर्टिफिकेट के माध्यम से अपेडा और कस्टम कमिश्नर की आंखों में धूल झोंक कर विदेशों तक व्यापार किया जाता है, इसके लिए अगर मुख्य पशुधन अधिकारी द्वारा प्रति कंटेनर जारी किया जाने वाला सर्टिफिकेट की, जो अपेडा और कस्टम कमिश्नर के यहां निर्यात के समय मान्य है, अगर इसकी सीबीआई जांच करायी जाये तो न सिर्फ मांस व्यापारी ही बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार से लेकर भारत सरकार के जिम्मेदार उन विभागों के अफसर भी फंस जायेंगे जो कुल उत्पादन और कुल विदेश में हुये निर्यात का लेखा जोखा रखे जाने के लिए जिम्मेदार हैं। बात करें डासना क्षेत्र में स्थित तीन चर्चित अवैध बूचड़खाने की तो पिछले तीन साल पहले पूर्व जिलाधिकारी ने प्रमुख सचिव पशुधन को पत्रांक संख्या …../ सात- डी0एल0आर0सी0 -गा0बाद/ 2014 स्पष्ट लिखा था, कि बूचड़खाने की ओट में 50 करोड़ की सरकारी जमीन (15 बीघा) कब्जा की गई है, तीन बूचड़खाने से बाहर छोड़े जाने वाली गंदगी, हैरान करने वाली है, जनता में कोहराम हो सकता है, इन पर कार्यवाही की जरूरत है। मगर यह बूचड़खाने आज भी कानून को उस समय मुंह चिढ़ा रहे जब स्थानीय निकाय आयुक्त द्वारा जिलाधिकारी को लिखी गई चिट्ठी संख्या तक0सेल/ 640/158(2) /2016,  में स्पष्ट लिखा गया कि जिलाधिकारी गाजियाबाद द्वारा की गई कार्यवाही से आयुक्त स्थानीय निकाय कार्यालय को अवश्य अवगत कराया जाये। अब आप समझ लीजिये कि किसी तरह यह साक्ष्य यह साक्ष्य शिकायतकर्ता के हाथ लग चुके हैं, जिसकी जानकारी आर0टी0आई0 कानून के तहत जिलाधिकारी गाजियाबाद, स्थानीय निकाय आयुक्त उ0प्र0, और प्रमुख सचिव पशुधन उत्तर प्रदेश शासन से भी मांगी गई है, यह सब हकीकत अदालत के सामने छुपाई जा सके, इसके लिए सरकार और गाजियाबाद प्रशासन में किस तरह की लोपापोती की कोशिश की जा रही है, किस तरह बूचड़खाने ही बचाने के लिए नहीं बल्कि अफसरों ने अपनी करतूतें भी बचाने के लिए पूरा तानाबाना बुनना शुरू कर दिया है।

 

गाजियाबाद जिले का सिर्फ डासना क्षेत्र के कुछ बूचड़खानों की भूजल दोहन/ उत्प्रवाह स्थिति (संख्या केएलडी यानी हजार लीटर रोज में)

1. मैसर्स ईगल कान्टीनेन्टल फूडस प्रा0 लि0 700/400
2. मैसर्स अल-नफीस फ्रोजन एक्सपोर्टस 1000/600
3. मैसर्स अल-नासिर एक्सपोर्ट प्रा0 लि0 250/200
4. मैसर्स इण्टरनेशनल एग्रो फूड 1000/750
5. मैसर्स एम0डी0 फ्रोजन एक्सपोर्ट 120/50
6. मैसर्स इण्टरनेशनल एग्रो फूट (मीट प्रोसेसिंग) 120/50
7. मैसर्स करन फ्रोजन फूड, 100/40
8. मैसर्स जेवा एग्रो प्रा0 लि0 5