पांच बार फेल, तब भी खेल

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2024

तेरह हजार छः सौ करोड़ की सांसद निधि में कितने फेल, कितने पास
(शैलेश सिंह)
सांसद विकास निधि भगवान भरोसे। तब भी कहीं मुद्दा नहीं? तो क्या बड़ी धोखाधड़ी कानून के सामने
पहुंचने का इंतजार कर रही है? सीडीओ, कलैक्टर मौन हैं समझ आता है, मगर संसद में आवाज नहीं, हर नेता चुप है, यह अच्छे देश के साथ नाइंसाफी के सिवा कुछ नहीं है। समस्या टीम ने जब यह कुछ वरिष्ठ अधिवक्ताओं के सामने रखा, राय ली, तो बड़ी धोखाधड़ी बतायी गई, और यह अंधेरा कानून के सामने पहुंचाये जाने की वकालत की गई, खैर 25 करोड़ की सांसद निधि खर्च कराने में लोकसभा सांसद तो फिर भी आधे अधूर हैं, मगर राज्यसभा सदस्य तो पंजीरी बांट रहे, यह अंधेरा तो डिजिटल भारत पर बड़े कलंक के सिवा कुछ नहीं है। कानून ने 245 सदस्यों को इजाजत दी, उत्पीडन, दैवीय आपदा, बीमारी, भुखमरी, जैसा गम्भीर अंधेरा हटाने के लिये माननीयों का चयन किया, और 6125 करोड़ की रकम दी जा रही, मगर माननीय के काम के नीचे कितना अंधेरा है, और यह नाइंसाफी देश भर में कहीं नहीं देखी जा रही। यह तो माननीय और जिला प्रशासन की रिपोर्ट है, जो सांसद निधि खर्च कराना बयां कर रही, मगर कागजी खर्च और जमीनी उपलबिधयां मेल हों, तो देश में अंधेरा छा जायेगा। कहीं पचास हजार, कहीं दो लाख, कहीं पांच तो किसी जिले में पच्चीस लाख, और यह रकम आधा दर्जन जिलों में एक-एक सदस्य बांट रहा, मगर बाकी बची विकास निधि कहां सड़ रही? खर्च होने से क्यों बचायी जा रही? यह अच्छे देश के साथ बड़ी नाइंसाफी है। यूं तो 65 साला बुजुर्ग, महिला अक्सर दीवार गिरने से दब रहीं, भगवान उठा लेता है, मगर माननीय नहीं देख पा रहे, यह क्या है? गरीब कन्यायें हाथ पीले कराने के लिये आधी उम्र गुजार रहीं, इंतजार करते आंखे सूज रहीं, मगर वोट मांगने वालों को नहीं दिखता, यह क्या है? खैर मोदी की मेहनत, मंशा, जनता की उम्मीदें, सब किनारे धर दीं, खासतौर पर उन माननीयों ने जिनसे उम्मीदें ज्यादा थीं, बखान भी बहुत करते थे। अगर यह कहें कि जयंत चैधरी (आरएलडी) और कमलेश बाल्मीकि (सपा) ने भाजपा सांसदों से ज्यादा काम किये, और हेमा मालिनी, महेश शर्मा व वी0के0 सिंह फिसड्डी रहे, तो कहीं गलत नहीं है। खैर चर्चित नेताओं ने बदलावपुरूष की मंशा और शासन दोनों की नाकदर कर दी, यह कुब्बत की बात या जन बदनसीबी ही कही जा सकती है। यूं तो गाजियाबाद सांसद वी0के0 सिंह सैन्य अफसर की हैसियत से चुनाव लड़े, अन्ना आंदोलन के सिपाही बनकर जनभावना में उतरे, मगर पांचवीं की परीक्षा में पांचों बार फेल रहे, यह हम नहीं बल्कि वी0के0 सिंह के काम और खर्च हुयी क्षेत्रीय विकास निधि स्वंय बोल रही है। हांलाकि बड़े फिसड्डियों में आरएलडी मुखिया अजीत सिंह का नाम चर्चा का विषय है, सिर्फ 3.75 करोड़ खर्च करा पाये गाजियाबाद जिले में, नोएडा, मथुरा, बुलंदशहर में नाम नहीं। मगर पश्चिमी यूपी में जयंत चैधरी, कमलेश बाल्मीकि, सुरेन्द्र सिंह नागर ने खासे काम कराये 15वीं लोकसभा के समय, यह जिला प्रशासन के अपने निजी आंकड़े हैं, और बाजी मारने वाले बसपा सांसद सुरेन्द्र सिंह नागर का आंकड़ा आगे रहा, यह है लोकसभा सांसद की उपलब्धियां, मगर राज्य सभा की बात करें तो जुलाई 16 से दिसम्बर 18 तक का समय सुरेन्द्र सिंह नागर का बिल्कुल काला रहा, अब जून 22 तक का समय कैसा रहेगा, यह समय बतायेगा। फिलहाल तीन साल का समय कैसे काला रहा? तो नागर की विकास निधि से मात्र 56 लाख खर्च कराये गये नोएडा और बुलंदशहर दोनों जिलों में। काम की बात करें तो नागर की विकास निधि से कुल 19 काम हुये, और रूपये खर्च हुये 56.82 लाख, जिनमें तीन काम नोएडा और 16 काम बुलंदशहर जिले में पूरे बताये गये। अब 27 महीने में किस तरह
24.44 करोड़ रूपये खर्च करा पायेंगे माननीय, यह सोचने का समय शायद नहीं मिला। यूं तो समस्या टीम ने प्रदेश भर के आंकड़े खंगालने में तमाम समय बर्बाद किया, धक्के खाये, जिल्लते झेलीं, मगर जो जमीनी सच है, वह बेहद निराश करने वाला है, जुबान, जबड़ों के अंदर रहे! तो ही अच्छा है। मगर यह कंपा देने वाला सच आज तक कानून के सामने नहीं पहुंचा, यह भी देश का दुर्भाग्य ही है। खैर 18 से 25 साला कन्यायें हों, या पचास से 65 साला बुजुर्ग व महिलायें, सबकी दुष्वारी रूपया ने ही की है। यूं तो जुलाई-अगस्त 2018 में ही 35 से ज्यादा वृद्ध महिला-पुरूष, बच्चे कच्ची दीवार के नीचे दबे सिर्फ पांच जिलों में, ज्यादातर को भगवान ने उठा लिया, कुछ निजी हाल पर रो रहे, जिन्हें शासन, प्रशासन, सरकार अब भी नहीं देख पा रही, मगर माननीय नहीं देख पाये, वोट मांगते समय भी न जानें क्या देखा, सांसद विकास निधि की गाइडलाइन न जानें किस भाषा में पढ़ी जा रही, यह भगवान ही जानता है। फिलहाल सांसद निधि की असफलता बताने में भाजपा नेता देवेन्द्र नागपाल ने कल पहली शुरूआत की, और कंवर सिंह तंवर का ही चिट्ठा खोला, मगर यह अंधेरा तो देश भर में फैला है, और आज भी मुद्दा नहीं यह हैरान करने वाली बात है।