सब कुछ उच्चतम न्यायालय, सब जगह एनजीटी

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क्या अफसर दफ्तर में बैठने या काॅफी पीने ही आते हैं?
क्या सरकार को कोई जगाएगा तब वह जागेगी?
कोई दूसरा उपाय बताएगा तब सरकार काम करेगी?
क्या अदालत कार्यवाही कर देगी तब सरकार को समझ आएगा?
-टी.एस.ठाकुर
-प्रधान न्यायाधीश भारत

 

कहीं भी ले जाई जाएं मगर 15 दिन के अंदर हटाई जाएं मथुरा से सभी इकाइयां!
-स्वतंत्र कुमार
न्यायमूर्ति रा.ह.अ.

(शैलेश सिंह)
केन्द्र हो या राज्य, हुक्मरान हों या अफसरशाही, जनहित काम तकरीबन सब जगह खत्म हो चुके हैं। यह हम नहीं कह रहे, केन्द्र से राज्य तक सभी की पोल कानून ने खोलकर रख दी है। एनजीटी ने जहां पिछले दो साल में उद्योग जगत से लेकर दुकानदारी में बदल चुकी अफसरशाही की कार्यशैली बेनकाब की है, वहीं पिछले 3 मुख्य न्यायाधीशों के कार्यकाल से सरकार कटघरे में खड़ी कर दी गई। 50 से ज्यादा बड़े उद्योग से लेकर सरकारी एजेंसियों को न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की खंडपीठ मजबूत तरह से दण्डित कर चुकी है वहीं राज्य सरकारों के साथ साथ केन्द्र को डपटते डपटते कानून भी थक चुका है। यमुना तट पर बसी धार्मिक नगरी मथुरा के सभी उद्योग कहीं भी ले जाने के लिए जहां राष्ट्रीय हरित अघिकरण का साहसिक फैसला रहा वहीं प्रधान न्यायाधीश भारत की खंडपीठ ने दिल्ली की सड़कों से टैक्सियां भगाने के बाद परिवहन मंत्रालय पर दायर एक मामले के वक्त केन्द्र को आड़े हाथों लिया। 13 राज्य में 54 करोड़ किसान सूखे के डंक से परेशान हैं, यह मामला प्रधान न्यायाधीश ने इस कदर लिया कि सरकार की कार्यशैली ही बेनकाब कर दी। कानून ने सरकार को यह कहकर डपट लगाई कि सूखे का डंक से 13 राज्यों के किसान प्रभावित हुए, राहत का मतलब कितने साल लगेंगे। कोर्ट में पहुंचे आंकड़े के मुताबिक 36.6 करोड़ जनता सूखे के डंक से प्रभावित है मगर हैरान करने वाली बात यह रही कि बिहार और हरियाणा का कोई भी गांव सूखे से प्रभावित नहीं घोषित किया गया। बुंदेलखण्ड के बहुत सारे क्षेत्रों में पिछले 19 महीने से सूखा का हमला जारी है मगर सरकार का आंकड़ा सिर्फ आंकड़ा ही रह गयां। स्वराज भारत अभियान संस्था की तरफ से देश की बड़ी अदालत में दायर याचिका में कहा गया है कि सूखा पीडि़तों के लिए छह माह का मुफ्त राशन और मिडडे मिल मिलना चाहिए इसके अलावा पीडि़त किसानों को हरजाना दिलाए जाने की बात कही गई, ऐसे में आगे क्या होगा, यह समय बताएगा।