कब बंद होंगे अवैध बूचड़खाने (भाग-2)

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एनओसी भी रद्द, लाइसेंस भी रद्द! फिर कौन चलवा रहा वधशाला

दुधारू और गर्भवती पशुओं को कहां से लाया जाता है बूचड़खाने में

(समस्या टीम)
क्या शासन स्तर पर बैठे कुछ अफसर दुकानदार हैं?
क्या शासन स्तर पर बैठे अधिकारी दवाबवश काम करते हैं?
क्या शासन स्तर के कुछ अफसर जिलों में तैनात आई0ए0एस0 अफसरों की कार्यवाही पर भरोसा नहीं करते?
क्या शासन में बैठे कुछ अधिकारी प्रशासन और डीएम को चिढ़ाने के लिए काम करते हैं?
यह कुछ सवाल ऐसे हैं, जो सूबे की आवाम की जिंदगी और मौत से जुड़े हुए हैं।
अगर हां- तो आप समझ लीजिये और सरकार से पूछिये कि उत्तर प्रदेश शासन की अफसरशाही किधर जा रही है।
अगर नहीं- तो जिला प्रशासन से लेकर जिलाधिकारी तक क्या उद्योग जगत पर उगाही हेतु दवाब बनाने के लिए काम कर रहे हैं?
क्या जिला प्रशासन और जिलाधिकारी मर्जी मुताबिक शासन को रिपोर्ट भेजकर शासन से आदेश प्राप्त करने के बाद उद्योग जगत से दूध पीने की कोशिश करते हैं?
अगर नहीं- तो मतलब साफ है कि सरकार हो या शासन उत्तर प्रदेश राज्य सीधा सीधा अंधेरपुर में चैपट सिंह तिलकधारी साबित होता है।
अगर हां- तो मतलब और भी साफ है कि जिला प्रशासन से लेकर जिलाधिकारी तक उद्योग जगत से अपना निजी हित संवारने के लिए ही काम कर रहे हैं।
बहरहाल मतलब जो भी हो, मगर समस्या टीम के हाथ लगे पांच से ज्यादा सरकारी दस्तावेज से स्पष्ट हो गया कि उत्तर प्रदेश राज्य के विभिन्न जिलों में कुछ भी हो रहा हो, मगर गाजियाबाद जिले में चल रहे कुछ बूचड़खाने स्थानीय लोगों के अलावा पावन नदियों का गला घोंटने के लिए ही काम कर रहे हैं। अगर यह कहें कि निजी हित संवारने के लिए गाजियाबाद जिला अन्तर्गत और खासतौर पर डासना क्षेत्र में चल रहे 14 एवं 8 बूचड़खाने न सिर्फ दुधारू पशुओं को काटकर मांस व्यापार कर रहे हैं, बल्कि गर्भधारण करने वाले पशुओं को काटकर धड़ल्ले से मांस कारोबार कर रहे हैं। यही नहीं! ऐसे पशु कहां से खरीदकर लाये जाते हैं, पशुओं का कोई लेखा जोखा नहीं रखा जाता है। पशुवध हेतु एंटी मार्टम के समय पांच से दस प्रतिशत दुधारू या गर्भधारण पशु पाये जाते हैं। जिन्हें काटकर मांस व्यापार करने के साथ साथ बूचड़खाना परिसर में ट्रींटमेंट प्लांट यानी ईटीपी के बजाय एसटीपी नहीं लगायी जाती है, इससे स्पष्ट होता है, कि रैड्रिंग प्लांट से फैलने वाली दुर्गंध आसपास का वातावरण खराब करती है, भूजल दूषित करती है, जिससे इंसान के लिए सांस लेने वाली हवा और पीने वाले पानी दोनों ही जहरीला हो जाने का मतलब लोगों की जान से खिलवाड़। पढ़कर तो अजीब लगेगा, सरकार को तमगा भी लगेगा, मगर यह बोल समस्या टीम के नहीं हैं, यह लिखित पीड़ा जिलाधिकारी गाजियाबाद रहे श्री एस0वी0एस0 रंगाराव साहब की है, जिसे 24 जून 2014 के रोज पत्रांक संख्या 5297/जे0ए02 /जांच/2014 प्रमुख सचिव पशुधन विभाग उत्तर प्रदेश शासन को अकेले चिट्ठी के माध्यम से नहीं बल्कि बहुत सारे अभिलेख दर्जन भर पी0सी0एस0 और गजिटेड अफसर के संयुक्त टीम द्वारा बनायी गई रिपोर्ट सहित यह लिखकर भेजा गया कि गाजियाबाद जिले के डासना क्षेत्र में चल रहे जेवा एग्रो, अल-नफीस, ईगल काॅन्टीनेंटल ऐसे बूचड़खाने हैं जिन पर तत्काल प्रभाव से सख्त कार्यवाही करने की जरूरत है, ये बूचड़खाने चलाये जाने से बलबा हो सकता है, क्योंकि इन बूचड़खाना परिसरों में संयुक्त मजिस्ट्रेट, डिप्टी मजिस्ट्रेट, तहसीलदार, क्षेत्राधिकारी, यूपीपीसीबी अफसर और पशुधन अधिकारी की संयुक्त छापेमारी जो मध्य रात्रि लगातार 22 जून 2014 से लेकर तीन बार कराई गई, जिनमें हैरान करने वाली गतिविधियां देखी गईं, लिहाजा ये बूचड़खाने बंद किये जाने एवं इन पर सख्त से सख्त कार्यवाही किये जाने की सख्त जरूरत है। बहरहाल जिलाधिकारी की यह चिट्ठी प्रमुख सचिव प्रशुधन को भ्ेाजी गई, बावजूद ऐसे बूचड़खाने पर कुछ भी नहीं किया गया, बल्कि 14 बीघा सरकारी जमीन जो ईंगल काॅन्टीनेंटल बूचड़खाने की तरफ से अवैध तरीके से कब्जा की गई, 42 बीघा जमीन परिसर में चल रहा यह बूचड़खाने के लिए भी जिलाधिकारी कार्यालय की चिट्ठी संख्या ……. /सात-डी0एल0आर0सी0-गा0बाद/2014 दिनांक 28.11.2015 के माध्यम से शासन को भेजी गई। तब भी बूचड़खाने की तरफ सरकार और शासन ने झांककर भी नहीं देखा। इसके अलावा हैरान करने वाला वाक्या उस समय आया जब समस्या टीम के हाथ निदेशक स्थानीय निकाय उत्तर प्रदेश शासन की चिट्ठी संख्या तक0सेल/ 640/158(2)/2016 दिनांक 22 मार्च 2016 हाथ लगा, जिसमें स्पष्ट लिखा गया कि अपने पत्र संख्या 351/जे0एस0-2/2014, दिनांक 22 दिसम्बर 2014 का संदर्भ ग्रहण करने का कष्ट करें, जिसके अन्तर्गत अवगत कराया गया है कि मैसर्स ईगल कान्टिनेंटल फूड्स प्राइवेट लिमिटेड एवं मैसर्स अलनफीस फ्रोजन फूडस प्रा0 लि0 बधशालाओं में औचक निरीक्षण के दौरान गम्भीर अनियमित्तायें पायीं गई तथा पत्र संख्या-5287/जे0एस0-2, दिनांक 24.6.2014 के द्वारा प्रमुख सचिव पशुधन को उक्त ईकाइयों के अनापत्ति/ लाइसेंस निरस्त किये जाने की संस्तुति की गयी है। उक्त के सम्बंध में अवगत कराना है कि दिनांक 18.3.2016 को भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन द्वारा नई दिल्ली में एक बैठक आहूत की गयी तथा अवैध पशुवधशालाओं के विरूद्ध एक्शन टेकेन रिपोर्ट की सूचना से मा0 सर्वोच्च न्यायालय को शीघ्रताशीघ्र अवगत कराया जाना है। अतः अनुरोध है कि उक्त दोनों पशुवधशालाओं/ प्लान्टों के विरूद्ध की गयी कार्यवाही की अद्यतन सूचना/ आख्या से इस कार्यालय को अवगत कराने का कष्ट करें।
अब आप समझ लीजिये कि पूर्व जिलाधिकारी एस0वी0एस0 रंगाराव की मेहनत और कार्यशैली की किस तरह दुर्दशा की गई है, 22 महीने तक बूचड़खाने मिलीभगत से चलवाये गये, उससे भी हैरान करने वाली बात यह कि निदेशक स्थानीय निकाय द्वारा लिखी चिट्ठी जिलाधिकारी गाजियाबाद श्री विमल कुमार शर्मा की तैनाती पर किस तरह सवालिया निशान इसलिए लगा रही है, क्योंकि जिलाधिकारी गाजियाबाद को यह चिट्ठी 26 मार्च 2016 के रोज मिल जाने के बाद एडीएम कार्यालय भेजी गई, और आज एक महीना गुजर जाने के बावजूद भी वह तमाम बूचड़खाने उस वक्त जनता को, नदियों को, पर्यावरण को और पेयजल को किस तरह चिढ़ा रहे हैं, जब यह मामला एक जनहित याचिका के तहत माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल में विचाराधीन है।

यूं तो गाजियाबाद जिले में 14 से ज्यादा बूचड़खाने चल रहे हैं, मगर 6 तक रैड्रिंग प्लांट और बूचड़खाने ऐसे हैं जो सिर्फ सरकार अथवा उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों की मिलीभगत से ही चल रहे हैं। जिन बूचड़खाने को दो साल पहले ही बंद कर देने चाहिए वह बूचड़खाने न सिर्फ 400 से 600 तक जानवर रोज काटकर मांस व्यापार करते हैं, प्रतिबंधित पशुओं को मौत के घाट उतारते हैं, बल्कि अपेड़ा और कस्टम कमिश्नर तक को फर्जी कागजात, सीवीओ सर्टिफिकेट आदि के माध्यम से मोटी रकम का चूना सरकार को लगाते हैं। बात करें पेयजल की तो गाजियाबाद जिला जहां बूंद बूंद पानी के लिए किल्लत है, सारा जिला डार्क जोन/ ओवर एक्सप्लोटिड एरिया में आता है, फिर भी एक जानवर काट कर एक हजार लीटर पानी का जल दोहन किया जाता है, यह आंकड़ा यूपीपीसीबी का है। अब आप समझ लीजिये कि सम्भल, बुलन्दशहर और अलीगढ़ का आलम क्या होगा जहां अवैध बूचड़खाने और अवैध मांस गोदाम की दुकानें सजी हुयी हैं। फिलहाल गाजियाबाद जिले की स्थिति आपके सामने स्पष्ट है।
(संख्या केएलडी यानी हजार लीटर रोज)
1. मैसर्स ईगल कान्टीनेन्टल फूडस प्रा0 लि0 700/400
2. मैसर्स अल-नफीस फ्रोजन एक्सपोर्टस 1000/600
3. मैसर्स अल-नासिर एक्सपोर्ट प्रा0 लि0 250/200
4. मैसर्स इण्टरनेशनल एग्रो फूड 1000/750
5. मैसर्स एम0डी0 फ्रोजन एक्सपोर्ट 120/50
6. मैसर्स इण्टरनेशनल एग्रो फूट (मीट प्रोसेसिंग) 120/50
7. मैसर्स करन फ्रोजन फूड, 100/40
8. मैसर्स जेवा एग्रो प्रा0 लि0 5