निजामुद्दीन मरकजः क्या पुलिस से भी चूक हुई?

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शैलेश सिंह

धार्मिक स्थल में पाप पुन्य देखने वाले कहां है? हालांकि लिखना भी पाप समझ रहा हूं मगर आज का इंसानी फितूर के चलते लिखा जा रहा है। 60 बड़े धार्मिक स्थल हैं दिल्ली में मगर पाप पुन्य देखने वाले आज उस समय भी सोए हैं जब देष भर में आपातकाल है, आपात कानून लागू है। वजह- डर, लापरवाही या मनमानी जो भी हो मगर यह देष की मजबूती में नासूर के सिवाय कुछ और नहीं है, और निजामुद्दीन एरिया जिंदा प्रमाण है। तो क्या निजामुद्दीन एसएचओ अकेले जिम्मेदार हैं? क्या मरकज प्रायोजक अकेले जिम्मेदार हैं? 1500 से 1700 तक का हुजूम वह भी देषी विदेषी और स्थानीय सिपाही, स्थानीय आवाम के साथ साथ 18 तक सिविल विभाग ये सभी दोशी नहीं हैं? बहरहाल कफ्र्यू एंव आपात कानून के समय भी मजमा लगा रहा, सामुदायिक संक्रमण के लिए जमीन तैयार होती रही, तो क्या इन सभी को जाहिल समझकर देखते रहा गया, आखिर कानून और देष पर संकट समझने में मनमानी करने वाले और देखने वाले क्यों खामोष रहे? खैर दुनिया को संदेष देने वाला देष आज कुछ कांपने लगा, अपने ही पेट में अपने ही फोड़ा फुंसी महामारी के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं और अपने ही आंख मूंदे हैं, ऐसे में देष की दषा और दिषा किधर ले जाई जा रही, विष्व समुदाय में बताने के लिए क्या बचा है, यह गंभीर सवाल है। खैर एक तरफ दिल्ली पुलिस संकट के समय जनता की रीढ़ बनकर काम कर रही है, दूसरी तरफ कुछ अफसर कर्मी सब कुछ धो डालने में लगे हैं। अगर कहें कि भूखी पुलिस ने अपनी रोटी भूखी आवाम को खिलाई, राजधानी को बचाया, आईपीएस से लेकर सिपाही तक भूखे प्लासे रहकर भी मिसाल बनाए वहीं दूसरी तरफ निजामुद्दीन पुलिस यह नहीं देख पाई कि एक ही जगह पर बाहरी अमला क्यों है, मोबाइल नंबरों के गलत प्रयोग तो नहीं हो रहे, संकट के समय यह लोग अनोखी खुराफात तो नहीं बना रहे, अगर बहुत सारे सवाल थे तो एरिया मुख्यालय या दिल्ली मुख्यालय तक जानकारी देनी चाहिए या नहीं। बहरहाल 60 बड़े धार्मिक स्थल राजधानी में हैं जिनमें 22 बड़ी मस्जिदें, 16 बड़े मंदिर, 12 बड़ी चर्च और 10 बड़े गुरूद्वारे हैं, यही नहीं जामा मस्जिद, अक्षरधाम, इस्काॅन, रकाबगंज, षीष महल, बंगला साहिब आदि जहां कानून के लिए मिसाल हैं, इंसान की भूख मिटाने के लिए मिसाल हैं, संकट के समय रातों दिन दुआ अराधना करने के लिए मिसाल हैं वहीं दूसरी तरफ निजामुद्दीन जैसी दरगाह से सटा एक मरकज प्रायोजन इंसान, समाज, देष, धर्म, कानून सभी पर बोझ के सिवाय कुछ और नहीं। बहरहाल अब यह लिखना जरूरी समझा जा रहा कि मात्र 1 मरकज ने छोटे बड़े सभी धार्मिक स्थल देखने का न्योता दिया है, संकट के समय यह और भी जरूरी हो गया। हमारा मकसद किसी व्यक्ति विषेश, किसी धर्म, किसी समुदाय पर सवाल खड़े करना नहीं है मगर देष पर संकट है और ऐसे में देष को पीड़ा पहुंचाने की दावत दी गई है लिहाजा मैंने अपनी कलम का धर्म पूरा किया।