सदाकान्त के विभाग में बड़ी छीछालेदर, लाखों छह वर्श से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं व 17 साल से कम उम्र की किषोरियों के मुंह का स्वाद कसैला कर दिया। आंगनबाड़ी केन्द्र के मासूमों के साथ साथ गर्भवती महिलाएं और किषोरियों को पता भी नहीं कि कहां है आंगनबाड़ी केन्द्र? कौन है क्षेत्रीय कार्यकत्री? और क्या केन्द्र व राज्य सरकार मिलकर उनके लिये ऐसी कोई योजनाएं चला रहीं हैं। यही नहीं, कार्यकत्रीं व सहायिकायें भी ज्यादातर षातिर ही हैं उन्हें भी नहीं मालूम क्षेत्रीय किषोरी, गर्भवती महिलायें, और रजिस्टर में दर्ज आंगनबाड़ी केन्द्र के मासूम। हां यह सच जरूर है कि 80 फीसदी से ज्यादा केन्द्रों पर कहीं 3 बच्चे, कहीं 7 बच्चे, ज्यादातर केन्द्रों पर एक भी बच्चा नहीं और तमाम केन्द्र ऐसे हैं जहां महीनों में कभी कभी ताला खोला जाता है। मगर उपस्थिति रजिस्टर में रोज कहीं 46, कहीं 36, कहीं 52, कहीं 38 बच्चे, वहीं क्षेत्रीय किषोरी और गभर्वती उन महिलाओं से रजिस्टर पटे पड़े हैं जिन्हें पुश्टाहार का पोशाहार दूर दूर तक नहीं मालूम, और जगह जगह खुले केन्द्र सिर्फ बूत बन कर ही नहीं रह गये, बल्कि पुश्टाहार के दुकानदारों ने लाखों की संख्या में फर्जी दाखिला दिखाकर जेबें भर लीं। हालांकि सूबे में हजारों की संख्या में जरूरतमंदों को इससे लाभ हुआ और हो रहाख् मगर यह भी सच है कि लाखों फर्जी पात्रों के मुंह का स्वाद इस योजना ने कसैला कर दिया। यूं तो समस्या टीम ने 9 जिलों में 86 वीडीयो बनाई हैं। मगर फर्रूखाबाद के तीन, आगरा के सात, मैनपुरी के छह, सीतापुर के नौ, हरदोई के ग्यारह, और षाहजहांपुर के 16 आंगनबाड़ी केन्द्र जो कैमरे में कैद हुये, उसमें सबसे बुरा हाल षाहजहांपुर का है। अब समझिये पुश्टाहार के भ्रश्ट अफसरों के पाप से पटी पड़ी वह सैकड़ों डायरी व रजिस्टर जो समस्या टीम ने कैमरे में कैद किये हैं और जिन्हें बस बेवस कार्यकत्री, सहायिकाएं भरने की आदी हो गई हैं। मगर यह हैरत की बात जरूर देखी गई कि लोकतंत्र के पर्व में जहां बीसों ईमानदार, मेहनती और हण्टरबाज जिलाधिकारी बीस बीस घंटे जाग जागकर अपने कंधों पर लदी जिम्मेदारी को संभालने में जुटे रहे व जुटे हैं, वहीं महिला एंव बाल विकास विभाग के भ्रश्ट अफसरों को नोंचने खाने का अवसर मिल गया है। आये दिन सालों साल नोंचने खाने वाला पोशाहार में ही नहीं बल्कि पुश्टाहार की स्लोगन नारा यानी वाॅल पेंटिंग, हाॅट कुक वितरण, बच्चों के लिये सालों साल मिलने वाली स्लेटें, पेंसिल, रबड़, नेल कटर, कंघा, बाल्टी, मग जैसी योजनाएं भी अछूती नहीं रह गईं यानी एनजीओ संस्थाओं से मिलकर इस कदर सेंध लगाई गई कि बीसों निर्दोश जिलाधिकारी भी इस भ्रश्टाचार में सन गये, मगर उन्हें पता भी नहीं कि जिन पोथियों पर उन्होंने हस्ताक्षर किये हैं वह 80 फीसदी से ज्यादा पाप से पटी पड़ी हैं।
षाहजहांपुर के 16 केन्द्रों में छह केन्द्रों पर महीनों तालाबंदी, चार केन्द्रों पर एक भी बच्चा नहीं, सहायिका कार्यकत्री कुछ समय के लिये जरूर आती देखी गईं। वहीं 6 केन्द्रों पर कहीं मात्र 3 बच्चे उपस्थिति 36 बच्चों की, किसी पर 7 बच्चे उपस्थिति 52, किसी पर एक ही बच्चा उपस्थिति 48 बच्चों की, कहीं 4 बच्चे उपस्थिति 46। ऐसे में अगर यह कहा जाये कि प्रमुख सचिव पुश्टाहार के आंगन में 80 फीसदी से ज्यादा फर्जीवाड़ा है, तो गलत नहीं है। न बच्चे न पोशाहार यह एक दो जगह नहीं 9 जिलों के 103 केन्द्र जो कैमरे में कैद हुये उनमें 43 केन्द्र ऐसे हैं जहां एक भी बच्चा नहीं, क्षेत्रीय किषोरी और गर्भवती महिलाएं जो यह योजना भी नहीं जानतीं मगर उनके नाम से भी रजिस्टर-डायरी इस कदर पुती पड़ी हैं कि अगर जनहित के तहत कोई भी समाजसेवी या नागरिक पुश्टाहार का फर्जीवाड़ा अदालत के पटल पर रखे और गरीबों से जुड़ी इस योजना की बारीकी से यानी सीबीआई जांच कराई जाये तो न सिर्फ सरकार व भ्रश्ट नौकरषाहों में ही हाहाकार मच जायेगा बल्कि केन्द्रीय धन बंदरवाट करने के लिये जो हजारों की संख्या में कार्यकत्री व सहायिका बेवजह रखी गईं हैं, सरकार के गले में जंजाल बनकर लटक सकतीं हैं, यानी नरेगा से भी बड़ा स्कैंडल हो गया मंत्री और प्रमुख सचिव का महिला एवं बाल विकास विभाग। यूं तो किषोरी षक्ति, धनलक्ष्मी, पोशण, राजीव गांधी किषोरी सषक्तिकरण व इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना सहित तमाम प्लान दौड़ रहे हैं मगर सच तो यह है कि हर योजना भ्रश्टतंत्र ने लंगड़ी कर दी और सूबे के लाखों दलित, पिछड़े व गरीब मासूमों गर्भवती महिलाओं व 17 साल से कम उम्र की लड़कियों के मुंह का स्वाद कसैला कर दिया। कुपोशण भगाओ, भैंस को दलिया खिलाओ। बच जाये तो दुकानों पर बेच दो, फिर भी बच जाये तो प्रधान जी के दरबार में उड़ेल दो, खुद व खुद पहुंच जायेगा मध्यान्ह भोजन तक, जेबें भी भरेंगी, बच्चे भी भूखे रह जायेंगे। वह पढ़कर तो कहानी लगेगी, मगर सच्चाई जानकर आंखे फट जायेंगी। पुश्टाहार की पंजीरी, दाल-चावल, चीनी, लइया-चना और दलिया किस तरह दलितों, पिछड़ों व गरीब मासूमों को मुंह चिढ़ाता है, काष मुख्यालय व षासन में बैठे बड़े आका भी समझ पाते, जो एसी में बैठकर कार्यकत्री, सहायिकाओं, सुपरवाइजरों, सीडीपीओ के माध्यम से गरीबों के विभाग में डाका डलवाते हैं। अब आपका सवाल होगा कि डीएम कैसे फंसेंगे? तो देखिये षासन का षासनादेष जिसे मंतर भी कहा जा सकता है कि 04 मार्च 2014 को षासनादेष जारी हुआ जिसमें आई.सी.डी.एस योजना के अंतर्गत वितरित किये जाने वाले पोशाहार की गुणवत्ता सुनिष्चित करेंगे सभी जिलाधिकारी/जिला कार्यक्रम अधिकारी/प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी, वहीं निदेषक आनंद कुमार ने भी अपना पल्ला झाड़ते हुये खूब ही जिम्मेदारी निभाई और 21 मार्च को सूबे भर के लिये निदेषालय आदेष साथ में षासनादेष लगवाकर भिजवा दिया कि जिम्मेदार अधिकारी जांच करेंगे पोशाहार की वह गुणवत्ता जो हर आंगनबाड़ी केन्द्र के बच्चों को, क्षेत्रीय गर्भवती महिलाओं व किषोरियों को। मगर यह उससे भी बड़ी हैरानी की बात रही कि तकरीबन जिलाधिकारियों ने भी निदेषालय व षासनादेष की औपचारिकता सिर्फ कागजों में ही पूरी भी कर दी मगर जमीनी हकीकीत क्या है यह तो सिर्फ विभागीय दुकानदारों के मुखौटों और पाप से पटी पड़ी डायरी रजिस्टरों से ही पूरा हो गया। हालांकि दसों आई.ए.एस अफसरों ने यह योजना नरेगा से भी बड़ा स्कैंडल माना यानी यह योजना कर्णधारों के लिये पूरी तरह काला धन बन गई मगर वह आई.ए.एस अफसर सिर्फ मोहरा बनकर रह गये जो भ्रश्टाचार से कोसों दूर मगर उनके हस्ताक्षर से यह योजनाएं खूब दौड़ रहीं।