एनजीटी आदेश को सींग लगाकर चिढ़ाया जाता है

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जीवनदायिनी काली का गला घोंट दिया मेरठ प्रशासन ने

शैलेश सिंह
काली नदी के सीने में रोज 900 टन कचरा दफन किया जाता है। एनजीटी आदेश की किस तरह धज्जियां उड़ाईं जातीं हैं यह हकीकत देखनी है तो मेरठ जिले से बेहतर और कहीं नहीं देखा जा सकता है। यूं तो गाजियाबाद भी अछूता नहीं है मगर बुलंदशहर और अलीगढ़ भी ऐसा महानगर है जहां काली नदी को ही काला नहीं किया जाता है बल्कि नदी का दम इस तरह घोंटा जा रहा है कि मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, कासगंज, फरूखाबाद और कन्नौज तक की खेती किसानी पूरी तरह चैपट कर दी गई है। यूं तो गंगा, यमुना के दोआब में बसे शहर मेरठ खुशहाल रखने में काली नदी ने अपनी भूमिका सालों साल अलग निभाई, 6 जिलों के लोेगो की जीवनदायिनी कही गई काली नदी का गला किस तरह घोटा गया इसकी हकीकत भी जान लीजिए। औद्योगिक कचरे और सीवेज में काली को किस तरह तब्दील किया गया और खास बात यह जिन विभागों ने इस नदी को सीवर में बना दिया वही पिभाग काली नदी को साफ रखने के लिए जिम्मेदारी लिए हुए हैं। काली के तट पर कूड़ा निस्तारण प्लांट की योजना बनाई गई थी, कूड़ा निस्तारण प्लांट तो नहीं बना लेकिन मेरठ शहर का हजारों टन कूड़ा नदी के तट पर रोज पाट दिया जाता है और उसमें आग लगा दी जाती है हालांकि इस गंभीर मसले पर एनजीटी ने प्रशासन को जमकर लताड़ लगाई, नदियों के भूजल रिचार्ज के लिए भी निर्देश हैं कि किनारे नदी के तट कचरे से मुक्त किए जाएं मगर मेरठ प्रशासन है कि 20 लाख की आबादी से रोजाना करीब 900 टन कचड़ा जो निकलता है वह सीधा सीधा काली के सीने पर ही बोझ बनकर लाद दिया जाता है। यही नहीं कई किमी. जमीन में वर्षो से फेकी जा रही पाॅलीथिन, मेडिकल कचरा, पशु अवशेष और सड़ी गली चीजों से आस पड़ोस की धरती विषैली हो चुकी है, आस पास के खेत पाॅलीथिन एंव अस्पतालों के बेस्टेज से भरे पड़े हैं। देश के बड़े अखबार जागरण की पड़ताल में भी डंपिग ग्राउन्ड में हैपेटाइटस बी.सी एंव एचआइवी की संक्रमित सुईयों के बीच मासूम बच्चे कूड़ा बीनते हुए नजर आए, यही नहीं खूंखार कुत्तों के झुण्ड के झुण्ड मांस के लोथड़ नोचते खाते देखे गए, आस पास किसानों ने भी माना कि यहां धरती में विष पूरी तरह घुल चुका है और तीन फुट गहराई में सिर्फ कचरा और पाॅलीथिन ही निकलती है। बात करें मेडिकल वेस्टेज में खतरनाक बैक्टीरिया फसल से कई जानलेवा संक्रमण हो सकते हैं जबकि कूड़ा जलाने पर निकलने वाली हाइड्रोफ्लोरो कार्बन वायु मंडल में 150 वर्ष तक बनी रहती है। जबकि कचरे में पड़ी पाॅलीथिन एक हजार साल तक नष्ट नहीं होती, यह जमीन की उर्वरा शक्ति एंव सूक्ष्म जीवांश कार्बन को खत्म कर देती है। एनजीटी ने साफ किया है कि नदी के किनारे कचरा जमा नहीं किया जाएगा मगर मेरठ शहर में कई किमी. तक काली नदी का तट बयां कर रहा है कि यहां प्रशासन या तो निजी हित के लिए या सिर्फ सरकार की अर्दली के रूप में काम कर रहा है।