बुन्देलखण्ड हो या मध्य प्रदेश का सिवनी जिला। हरियाणा रहा या महाराष्ट्र का लातूर। ऐसा विकास हुआ कि प्यास से बिलखते मासूम और बुजुगों को एक कटोरा पानी नसीब नहीं। सरकारी राशन नहीं मांगा, पेंशन या आवास नहीं मांगे, कुदरत ने दिया पानी भी छिन गया, फिर क्या उच्चतम न्यायालय में केन्द्र और राज्य सरकारों की तरफ से हुयी बेइंसाफी उस समय फंस गई जब सूखे पर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश, भारत से केन्द्र का सामना हो गया। सर्वोच्च शक्ति ने कड़क आवाज में केन्द्र से पूछ दिया कि आप सूखे को आपदा क्यों नहीं मानते? सूखा ग्रस्त क्षेत्र में राशन कार्ड क्यों जरूरी हैं? ऐसे ही कुछ सवाल एक दिन पहले भी केन्द्र से उस समय किये गये जब सुप्रीम पावर ने केन्द्र की नियत में छेद भांप लिया। न्याय ने सवाल किया कि पन्द्रह बीस हजार के कर्जदार किसानों के खिड़की दरवाजे उखाड़ लिये जाते हैं, मगर लाखों करोड़ का कर्ज लेने वाले बड़े गुनहगारों पर सरकार की दरियादिली क्यों? ऐसे ही कुछ सवाल हरियाणा सरकार से उस समय हुये, जब राज्य ने उच्चतम न्यायालय में घुन लगा हुआ यानी पुराना हलफनामा थमाने की कोशिश की। फिलहाल हम आपको बता दें कि महाराष्ट्र के लातूर में बूंद बूंद पानी के लिए मचे हाहाकार के बाद केन्द्र सरकार ही नहीं बल्कि सारा देश उस समय शर्मसार हुआ जब कुछ प्यासे लोगों तक पंाच लाख लीटर पानी पहुंचने में तीन दिन लग गये, बहरहाल अप्रैल 2016 अन्तर्गत ऐसा पहली बार हुआ जब कानून ने प्यासे लोगों और देशवासियों के हित से जुड़े अहम दो मामलों पर तल्ख टिप्पणी में पूछा कि लोग प्यास से भटक रहे, आप कह रहे राज्य सरकारों पर हमारी चलती ही नहीं है। अब आप खुद समझ लीजिये कि सच्ची अवतार शक्तियों की एक छलक देखने के लिए देशवासी बेचैन रहते हैं, मगर झूठे बेईमान और विकास का ढ़ोल पीटने वालों से अखबार और चैनल चलते है।
सूखे पर हाहाकार क्या हुआ लगभग 7 जिलों में म.प्र. सरकार की पोल खुल गई, महामाया और इन्दिरा आवास जहां कोसों दूर नहीं दिख रहे, वहीं बूंद बूंद पानी के लिए पचासों गांव में हाहाकार मचा हुआ है। कई जिलों के बीसों गांव ऐसे देखे गए जहां खरपतवार और मिट्टी के घर बनाकर जिंदगी गुजारते लोंगो को जानकारी ही नहीं है कि सरकार उनके लिए कोई भी योजना चला रही है। ऐसे में इसी साल नहीं बल्कि हर साल पीने के पानी के लिए लोग कई कई किमी. दूर जाकर डब्बा कनस्तरों में पानी लाते हैं, किसी तरह जीवन बसर करते हैं। अगर यह कहें कि मध्य प्रदेश की आधी पुलिस सिर्फ पानी बटवारे और पानी की पहरेदारी में लगी है, फिर भी तीन नदियों पर ज्यादातर पानी माफियाओं का ही कब्जा है तो कतई गलत नहीं होगा। भले ही शिक्षक भर्ती घोटाले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पोल खुल गई, 40 तक अफसर, समाज सेवी व खुलासा पत्रकार को जान गवानी पड़ी, मगर सूबे के दर्जन भर जिलों से अलग अलग दिख रहीं तश्वीरों की हकीकत यह बयां करती है कि विकास का नगाड़ा पीटने वाले हुक्मरान और अफसरशाही को सूखे जैसे हालात पर जरूर कुछ न कुछ शर्म करनी चाहिए। एक तरफ वह तश्वीर कि प्यास से बिलखते लोग जो कई किलोमीटर दूर आकर गहरे कुंए में घुसकर भी सूखे मुंह प्यासे निकलते हैं, दूसरी तरफ मुख्यमंत्री की तश्वीर लगे वह छपे हुए अखबार जिन्हें देखकर हुक्मरान खुश ही नहीं होते हैं बल्कि पीडि़त और प्यासे लोंगो को मुंह चिढ़ाते हैं।