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हाईकोर्ट ने कार्यरत पुलिस कर्मियों के खिलाफ जारी विभागीय कार्रवाई पर लगाई रोक

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प्रयागराज, 07 सितम्बर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद, मेरठ, वाराणसी, मैनपुरी, सिद्धार्थनगर, बस्ती. आगरा, गोरखपुर एवं प्रयागराज में तैनात पुलिस इंस्पेक्टर, दरोगा, हेड कांस्टेबल एवं कान्स्टेबलों के विरुद्ध जारी विभागीय कार्रवाई पर अग्रिम आदेशों तक रोक लगा दी है।

यह आदेश जस्टिस जे जे मुनीर ने सुधीर कुमार सिंह, गौरव सिंह, यशवीर सिंह, हरिश कुमार, योगेश कुमार, राजीव चौधरी, दीपक कुमार सिंह, इमरान खॉन व अन्य पुलिस कर्मियों के विरूद्ध प्रचलित उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली-1991 के नियम 14(1) के अन्तर्गत विभागीय कार्यवाही को अग्रिम आदेशों तक स्थगित करते हुए दिया है। कोर्ट ने इसी के साथ पुलिस विभाग के आला अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए उनसे जवाब तलब किया है।

न्यायाधीश जे जे मुनीर ने पुलिस विभाग में कार्यरत दर्जनों अलग-अलग पुलिस कर्मियों की याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया है। कोर्ट ने इस तरह की दाखिल अन्य याचिकाओं को कनेक्ट करते हुए सभी पर एक साथ सुनवाई करने का निर्देश दिया है।

याची पुलिस कर्मियों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम एवं अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम का कहना था कि जिन आरोपों में याचीगणों के विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई गयी है, उन्हीं आरोपों के सम्बन्ध में विभागीय कार्यवाही सम्पादित की जा रही है। क्रिमिनल केस के आरोप व साक्ष्य एवं विभागीय कार्यवाही के आरोप व साक्ष्य एक समान है। वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि पुलिस रेग्यूलेशन के पैरा 483, 486, 489, 492 एवं 493 में यह व्यवस्था दी की गयी है कि पुलिस कर्मियों के विरूद्ध अगर क्रिमिनल केस प्रचलित है तो उन्हीं आरोपों में विभागीय कार्यवाही नहीं की जा सकती। जब तक कि क्रिमिनल केस में ट्रायल पूर्ण न हो जाय या फाइनल रिपोर्ट में अपचारी बरी न हो जाय। पुलिस रेग्यूलेशन के पैरा को सर्वोच्च न्यायालय ने जसवीर सिंह के केस में अनिवार्य माना है तथा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि पुलिस रेग्यूलेशन का पालन किये वगैर की गयी कार्यवाही विधि सम्मत नहीं है एवं नियम तथा कानून के विरूद्ध है।

मामले के अनुसार उप्र पुलिस विभाग के याची निरीक्षक, उपनिरीक्षक व आरक्षियों के विरूद्ध भ्रष्टाचार व अन्य मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट विभिन्न थानों में दर्ज कराई गयी है। तथा उक्त क्रिमिनल केस के आरोपों के सम्बन्ध में उप्र पुलिस अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली-1991 के नियम 14(1) के तहत विभागीय कार्यवाही सम्पादित करते हुए अधिकारियों द्वारा आरोप पत्र भी निर्गत किये गये है। इन पुलिस कर्मियों द्वारा धारा 14(1) की विभागीय कार्यवाही के विरूद्ध हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकायें दाखिल कर चुनौती दी गई है।

याचियों की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कैप्टेन एम पॉल एन्थोनी बनाम भारत गोल्ड माईन्स लिमिटेड तथा हाईकोर्ट के निर्णय में यह व्यवस्था प्रतिपादित की गयी है कि यदि क्रिमिनल केस के आरोप एवं विभागीय कार्यवाही के आरोप एक समान है तो विभागीय कार्यवाही क्रिमिनल केस के समाप्त होने तक याचियों के विरूद्ध नहीं की जा सकती। हाईकोर्ट के इस आदेश से पुलिस कर्मियों को राहत मिली है।

हाईकोर्ट के इस स्थगन आदेश को सम्बन्धित जिलों के पुलिस अधिकारियों को अवगत कराने के लिये सम्बन्धित जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा रजिस्ट्रार अनुपालन इलाहाबाद हाईकोर्ट को 48 घण्टे के अन्दर सूचित करने के लिये आदेशित किया गया है।