Home संपादकीय स्मृति शेषः सीताराम येचुरी

स्मृति शेषः सीताराम येचुरी

स्मृति शेषः सीताराम येचुरी

डॉ. रमेश ठाकुर

भारतीय राजनीति में वंचितों, जरूरतमंदों व आदिवासियों की एक और मुखर आवाज गुरुवार को शांत हो गई। सीताराम येचुरी के रूप में देश ने संवेदनशील और ऊर्जा से भरा नेता खो दिया। जीवन के 72वें वसंत पूरे कर येचुरी ने गुरुवार को दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल में अंतिम सांसें लीं। उनका निधन देश की राजनीति, खासकर वामपंथी विचारधारा के लिए गहरे आघात जैसा है। येचुरी वामपंथ की सियासत में ही लोकप्रिय नहीं थे, वे भारतीय राजनीति के भी चर्चित चेहरे थे।

सीताराम येचुरी का संपूर्ण जीवन जन सरोकारों के लिए जूझते नेता के रूप में बीता। इमरजेंसी में उन्हें भी जेल में डाला गया। इंदिया गांधी की सरकार को आगे बढ़ कर ललकारने वाले वह ऐसे नेता थे, जिन्होंने इंदिया गांधी के सामने उनसे इस्तीफा मांगा था। दरअसल, आपातकाल के बाद 1977 में इंदिरा गांधी की चुनावी हार के बावजूद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलाधिपति के पद पर वे जमी हुई थीं। जबकि जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष सीताराम येचुरी इंदिरा को तानाशाह बताते हुए उनके इस्तीफे की मांग को लेकर इंदिरा गांधी के आवास पर पहुंच कर डट गए। इंदिरा गांधी के सामने उन्होंने ज्ञापन पढ़कर सुनाया जिसमें इंदिरा गांधी से इस्तीफा मांगा गया था। घटना के बाद इंदिरा गांधी ने कुलाधिपति के पद से इस्तीफा दे दिया।

सीताराम येचुरी भारतीय राजनीति का बेहतरीन दौर जीकर गए। जीवनकाल के अंत तक राजनीति में सक्रिय रहे। बीते कुछ समय से वह ‘एक्यूट रेस्पिरेटरी टैक्ट इंफेक्शन’ से पीड़ित थे, जिसने उनके अंगों को धीरे-धीरे कमजोर कर दिया था। पिछले माह 19 अगस्त को उन्हें एम्स में भर्ती करवाया गया। हालात में कुछ सुधार हुआ भी था लेकिन 10 सितंबर को स्थिति ज्यादा बिगड़ी तो चिकित्सकों ने उन्हें आईसीयू में रखा। लेकिन शायद उनकी जीवन की यात्रा पूरी हो चुकी थी। येचुरी का निधन उनके चाहने वालों के लिए निजी क्षति जैसा है। भारतीय राजनीति में वह उन राजनीतिज्ञों में गिने जाते थे जिनकी विचारधारा की सीमाओं से परे भी स्वीकार्यता थी।

12 अगस्त 1952 में एक तमिल ब्राह्मण के घर में जन्मे येचुरी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए किया था। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एमए किया। पीएचडी भी कर रहे थे लेकिन इमरजेंसी में जेल जाने के बाद पढ़ाई बीच में छूट गई। उनका सपना सीए बनने का था। अर्थशास्त्र उनका प्रिय सब्जेक्ट था। लेकिन किस्मत शायद उन्हें राजनीति की ओर खींच रही थी।

वर्ष-1975 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य बनकर राजनीतिक सफर शुरू किया। 1984 में वह सीपीआई एम की केंद्रीय समिति में शामिल हुए। 2005 में वह पार्टी की ओर से पश्चिम बंगाल से राज्यसभा सांसद चुने गए। वहीं, साल 2015 में पार्टी का महासचिव बनाया गया। तब से लेकर आजतक वह वामपंथ की राजनीति के प्रमुख चेहरों में एक रहे थे। उनके संबंध सभी दलों के नेताओं से मधुर रहे। विभिन्न राजनीतिक मामलों पर अपनी बात मुखरता से रखते थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी नेता पर निजी हमला नहीं किया। ओछी राजनीति से उन्होंने हमेशा परहेज किया।

येचुरी का परिवार मूल रूप से आंध्र प्रदेश के काकीनाडा से था। उन्होंने तमिल महिला से प्रेम विवाह किया था। कोरोना के दौरान जब उनके बड़े पुत्र का निधन हुआ तो वह पूरी तरह से टूट गए, शरीर भी तभी से ढलना आरंभ हुआ। येचुरी की अंतिम इच्छा थी कि मौत के बाद उनका शरीर दान कर दिया जाए। उनकी इच्छा के मुताबिक परिवार वालों ने येचुरी के पार्थिव शरीर को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान में मेडिकल छात्रों को रिसर्च के लिए दान करने का निर्णय लिया।

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