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कुम्भ को एनजीटी का कोई फायदा नहीं हुआ

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खून, चर्बी से बजबजाते नाले भी बताने लगे कि फैक्ट्रियों पर अफसरों का नियंत्रण खत्म हो गया, उनकी चैकीदारी अपराध के कब्जे में जा चुकी है मगर कुंभ के समय भी करोड़ों लीटर खून पानी यमुना में मिल रहा। संगम पहुंचने से नहीं बच रहा तो साफ है कि एनजीटी की सुनवाई का स्तर तेजी से गिरा है। एनजीटी का आदेश हो, गाइडलाइन हो, कोई फायदा नहीं मिला।
केन्द्रीय प्रदूषण ने लिखा कि गंगा का पानी नहाने लायक भी नहीं बचा। उ0प्र0 प्रदूषण ने रिपोर्ट दी कि गंगा का पानी पीने लायक है इससे यह तो साफ हो गया कि 2 में एक झूठी है, चूंकि सुनवाई में झूठ रिपोर्ट दी, इसलिए एनजीटी को कड़ा फैसला लेना चाहिए, केन्द्र और राज्य प्रदूषण में एक को खत्म करना चाहिए या सुप्रीम कोर्ट को सिफारिश लिखनी चाहिए क्योंकि अफसरों की रिपोर्ट कानून के कान मरोड़ने लग जाए, नदियों के नाश की निशानी बनने लगे, तो कानून की लगाम सुप्रीम कब्जे में जानी चाहिए, या एनजीटी को अपनी सुनवाई, अपने आदेश दोंनो का रूप बदलना चाहिए।
एक तरफ दुनिया में सबसे ज्यादा भीड़ वाला मेला कुंभ आस्था का प्रतीक बन रहीं, दूसरी तरफ उसी आस्था पर सुप्रीम कोर्ट की एजेंसियां, उनकी निगरानी कलंक साबित हो रहीं। यही जानने के लिए राष्ट्रीय समस्या टीम ने 5 जिलों की फैक्ट्रियां देखीं, उनके उत्पात की फोटो वीडियो बनाईं जो सच्चाई सामने आई, वह डरावनी है। अदालती सुनवाई का हिस्सा बनने लायक हैं चूंकि पक्ष विपक्ष के तर्क वितर्क हो सकते हैं। कुम्भ के समय शरारती तत्व गलत तथ्य निकाल सकते हैं लिहाजा जिला, फैक्ट्री, नाला, नदी साफ साफ लिखने से बचा गया, मगर हालात डरावने हैं।
क्योंकि एक तरफ कुंभ के चलते अफसरी ने अति दूषित फैक्ट्रियों की तालाबंदी यानी कागजों में बंद दिखाईं, दूसरी तरफ जमीन पर कोई फैक्ट्री बंद नहीं। दारूमिल हो, स्लाॅटर हाउस हों, सभी चल रहे, रातों रात करोड़ो लीटर खून, पानी कहीं काली नदी में मिल रहा, कहीं यमुना में मिल रहा। मगर एक तरफ एनजीटी लगातार माॅनीटरिंग कर रही, दूसरी तरफ उसी एनजीटी की सुनवाई अपराध के भरोसे छोड़ी जा रही। जो चिंता का विषय है। जिस मेले में सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के जज पहुंचे, जिसमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति नहाए, जिसमें सीएम पीएम नहाए, जिसमें आदित्यनाथ जैसे संन्यासी की मेहनत और मंशा दांव पर लगी है उसी कुंभ की रक्षा करने में एनजीटी नाकाम हुई, उसकी गाइडलाइन का कोई फायदा नहीं मिला, लिहाजा हमारे हिसाब से तो सुप्रीम कोर्ट को सख्त होना चाहिए। अपनी एजेंसियों की सफलता असफलता पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।