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नटो के सर्कस में फसी खारी बावली

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राष्ट्रीय समस्या टीम

निकम्मा शासक हो या नाकारा अफसरी… व्यापारियों को तो सड़क पर लाकर ही रहेंगे, पैर टूटें या मर जाओ ये तेरी मर्जी! वोट हमे दे दो ये मेरी मर्जी। तो क्या नटो के सर्कस में फस गयी खारी बावली? मगर एलजी साहब की दफ्तरी भी कम नहीं है, झउवा भर शिकायतें जाएं या ट्रकों में लदकर व्यापारी चले जाये, पब्लिक कम्प्लेन तो कूड़ेदान में ही जायेंगी। तो क्या निकम्मा शासक या नाकारा अफसरी कहना गलत है, या दोनों बातें सही हैं? मित्रों बड़बोलो की सरकार हो या डिजिटल भारत, जनता की शिकायतें और गलियों की दुर्दशा को तो सिर्फ उन्ही के हाल पर रहना है। मित्रों यूँ तो खारी बावली, सदर बाजार और चांदनी चैक वो नाम हैं जो ना सिर्फ दिल्ली और सरकार दोनों का ही पेट भरती है, बल्कि दुनिया में चर्चित ये बाजारें हमारे देश से ज्यादा विदेशों में जानी जाती है। ये सब हम क्यों लिख रहे, ये जानने के लिए सबसे पहले आप जानिये खारी बावली की आजीवन समस्या।
खारी बावली है, या ताल तलैया? सीवर यमुना में है या खारी बावली में? खारी बावली की सड़क है या दया बस्ती की गंधाती गली? हाथ- पैर खिलाड़ियों के टूटते है या खारी बावली के ठेली मजदूरों के? यही नहीं पेयजल लाइन हो या सीवर लाइन हो, खारी बावली में सब कुछ सुभानअल्लाह है। मित्रों खारी बावली में जो दुर्दशा सालों साल से है उसकी एक दो नहीं दर्जनों शिकायतें जाती है और ये भी नहीं कि पार्षद और साहनी जैसे निदासे लोगों को ही जाती हों, शिकायतें तो सीधे सीधे नगर निगम, जल निगम से लेकर आतिशी, केजरीवाल और एलजी साहब को भी जाती है। मगर न जाने कितने बड़े कूड़ेदान है कि वहां सब अलोप हो जाती हैं। मित्रों दर्जनों मजदूरों के पैर टूट गए, सैकड़ो में ठेलियां पलट चुकी हैं, टनों में माल बर्बाद हो गया, ऊबड़ खाबड़ सड़क, उसमे भरा सीवर, सीवर में मिला पेयजल, ऐसे में एक वक्त के खाने के लिए जो भी मजदूर ठेली खींचते हैं या रिक्शे चलाते हैं, वो जब उनके हाथ पैर टूट जाते है, वो दुर्घटना होने के बाद पता चलता है।
यही नहीं मित्रों खारी बावली कि माल लदी ठेलिया अगर सीवर जैसी गंदगी में लुढ़क जायें या पानी में भीग जायें, ऐसे में मजदूरों कि जान और व्यापारियों की जीविका दोनों ही नाश होती है। मगर चलन हो गया है कि चुनाव आये तो वोट के बाद कराएँगे, और वोट लेने के बाद कफन से निकल पाएंगे, तो कराएँगे, ये हाल उस केजरीवाल और उसकी पल्टन का है, जो नेताओं की थकान बता-बताकर दिल्ली की सत्ता में लायी गयी है। बहरहाल खारी बावली वो जगह है जहां से करोड़ों में टैक्स जाता है, अरबों में व्यापार होता है, मगर एशिया की आँखों वाली खारी बावली आज अपनीं ही दुर्दशा पर रो रही है, फिलहाल केजरीवाल कि नाकारा पल्टन पर सिर पटक रही है।
मित्रों नगर निगम की तनख्वाह टैक्स से मिलती है, जल निगम के घोटाले टैक्स से ढके जाते है, डीएम, कमिश्नर और चेयरमैन जल निगम के बड़पेटे मेहमानों की आवोभगत टैक्स के पैसे से की जाती है, मगर काम के नाम पर दुष्ट अफसरों ने जैसे आबादी, व्यापारी, सभी को अपना चपरासी बना कर छोड़ दिया है। यह हम नहीं कह रहे है, बल्कि 1600 उन व्यापारियों की चीख पुकार है, जिनकी मेहनत और मंशा से खारी बावली चलती है। जिससे दिल्ली का पेट भरता है। फिलहाल श्री नन्द किशोर बंसल (प्रधान किराना कमिटी दिल्ली), श्री ललित कुमार गुप्ता (महामंत्री), विजय गुप्ता (एग्जीक्यूटिव मेंबर), जितेन्द्र भारद्वाज (मार्केटिंग कमेटी), जय सिंह यादव (प्रधान मजदूर संघ), संत कुमार गुप्ता (संचालक मजदूर संघ), प्रवीण कसेरा (एग्जीक्यूटिव मेंबर मजदूर संघ) ने अब चेतावनी दी है कि अगर उनके व्यापार को, उनके मजदूरों को, उनके ग्राहकों को अब नुकसान और तकलीफें देनी बंद नहीं करायी गयीं, तो उन्हें सरकार बनाना, बिगाड़ना भी आता है और किसी भी हद तक जाना भी आता है। राष्ट्रीय समस्या टीम को बताते हुए कमिटी प्रधान, जनरल सेक्रेटरी, एग्जीक्यूटिव मेंबर व कई मजदूर नेता सहित पचासों व्यापारियों ने स्पष्ट कर दिया कि जो अनगिनत शिकायतें पहले दी गयी और उनमें जो स्पष्ट लिखा गया कि महिला हो या पुरुष, दोनों के लिए शौचालय, सीवर लाइन, पेयजल लाइन, सड़कें, और अपाहिज हुए मजदूरों कि सुध नहीं ली गयी, तो चक्का जाम भी होगा और अफसरी हो या हुक्मरान उनके नाम से व्यक्तिगत कानूनी लड़ाई भी लड़ी जाएगी।