स्वास्थ्य पर हमला है खाद्य पदार्थों में थूक मिलाना
इन दिनों एक मुद्दे पर लगातार विवाद मचा हुआ है। यह मुद्दा सभी के स्वास्थ्य के साथ जुड़ा हुआ है और साथ ही धार्मिक अधिकार, भोजन की शुचिता और शुद्धता के साथ भी जुड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में देखा जा रहा है कि कुछ लोग जानबूझ कर भोजन की शुद्धता को बर्बाद कर रहे हैं। पिछले दिनों गाजियाबाद में एक ऐसा मामला आया था, जिसने सभी को हैरान कर दिया। जूस में पिशाब मिलाकर ग्राहकों को दिया जा रहा था। इसके बाद सभी के मन में प्रश्न उठा कि आखिर वह क्या सोच है जो इतना घिनौना काम करने के लिए प्रेरित करती है। दूसरों के भोजन में थूकने का विचार रखती है।
गाजियाबाद के इस मामले के अतिरिक्त न जाने कितने ऐसे वीडियो और समाचार आए जिसमें रोटियों में लोग थूकते दिखे, सब्जियों को मूत्र से धोते दिखे और सब्जियों को नाली के पानी से धोते हुए दिखे। चूंकि इन सभी मामलों में एक खास मजहब के लोगों का नाम सामने आया तो भारत का लिबरल और कथित सेक्युलर वर्ग इसे विकृत मानसिकता और हिंदुओं के प्रति घृणा न बताते हुए बीमारी बताने लगा। जबकि सभी उदाहरणों से यह प्रमाणित होता जा रहा था कि यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि अपने मजहब से ताल्लुक न रखने वाले सभी समुदायों के प्रति घृणा थी। यह घृणा इस सीमा तक थी कि वे अपने पेशे के साथ भी अन्याय करने लगे थे। उनके पेशे में ग्राहक के प्रति कुछ जिम्मेदारियाँ भी शामिल थीं मगर ये जिम्मेदारियाँ दूसरे समुदाय के लोगों के प्रति घृणा से हार गईं। कौन भूल सकता है वह वीडियो, जिसमें एक युवक का फेशियल करते समय पानी के स्थान पर एक आदमी थूक इस्तेमाल कर रहा है।
जिस भारत में तहजीबी अतिक्रमण की विकृत मानसिकता के कारण इन दिनों खाद्य पदार्थों में थूक, पेशाब आदि मिलाए जा रहे हैं, उसी भारत में खानपान को लेकर शुद्धता के जो मानक हैं, वह सहज किसी भी संस्कृति में नहीं पाई जा सकते हैं। चरक संहिता में आहार को जीवों का प्राण कहा गया है। ऐसा कहा गया है कि वह अन्न प्राण-मन को शक्ति देता है, बल, वर्ण और इंद्रियों को प्रसन्नता देता है। छान्दोग्य उपनिषद् में आहार विषयक मंत्र है, “आहारशुद्धौ सत्वशुद्धि। सत्वशुद्धौ धु्रवा स्मृतिः। स्मृति लाभै सर्व ग्रन्थीनां विप्रमोक्षः– आहार की शुद्धि से हमारे जीवन की सत्व शुद्धि है। सत्व शुद्धि से स्मृति मिलती है।” भोजन का अर्थ हमारे परिप्रेक्ष्य में कभी मात्र पेट भरना नहीं था। देह को मंदिर माना जाता है, जिसमें उस परमात्मा का वास है। यदि देह मंदिर है और इसमें परमात्मा का वास है, तो क्या इस परमात्मा को कुछ भी अर्पित कर दिया जाएगा? जब आत्मा तृप्त होगी तभी इस देह में उपस्थित परमात्मा संतुष्ट होंगे। हमारा भगवान किसी आसमान पर बैठ कर हमें नहीं देखता, हमारे यहाँ तो हम सभी उन्हीं का अंश हैं, तभी देह को मंदिर की संज्ञा दी गई है। जैसे हम मंदिर को स्वच्छ रखते हैं, वैसे ही अपनी देह को स्वस्थ और स्वच्छ रखना चाहिए। तभी हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं। मगर क्या हो जब देह से लेकर आहार तक दूषित हो जाए?
भोजन और खाद्य पदार्थों को थूक या पेशाब के माध्यम से दूषित करने का कुकृत्य अपराध है। यह धार्मिक अधिकारों का भी हनन करता है। जहां हिन्दू धर्म में हर वस्तु पवित्र रूप में देवों पर अर्पण की जाती है, तो वहीं इस प्रकार सब्जी, फल आदि को थूक और पेशाब से दूषित करना, धार्मिक अधिकारों पर बहुत बड़ा हमला है। यह घिनौना कार्य सामाजिक अपराध है। यह समाज में समुदायों के प्रति अविश्वास व घृणा को उत्पन्न करता है। यह उस अविश्वास को जन्म देता है, जिसकी परिणिति नाम देख कर सामान खरीदने के रूप में आती है। भोजन की शुद्धता ही स्वस्थ जीवन और स्वस्थ समाज का आधार है और जो भी इसमें खिलवाड़ करता है उसे कठोर सजा मिलनी चाहिए।