जिंदगी भर कारोबार… कारोबार… बस कारोबार। जिद, जुनून और लगन के चलते बिजनेस के सिवा कुछ नहीं किया। ठोस फैसले लेते गए, सही साबित भी करते गए। दुनिया इन्हें रतन नवल टाटा के नाम से जानती-पहचानती है। भारत के सबसे बड़े और बेहद ईमानदार उद्योगपतियों में से एक रतन टाटा इतनी कमाई के बावजूद दुनिया के धनकुबरों की सूची में इसीलिए शुमार नहीं हो पाए, क्योंकि वह अपनी कमाई का 65 प्रतिशत हिस्सा दान कर देते थे।
श्री टाटा यूं तो कम ही बोलते थे लेकिन जब बोलते थे, बेलौस। किसी को बुरा लगे तो लगे। हकीकत से उन्होंने कभी मुंह नहीं मोड़ा। वह महामारी के चलते कॉर्पाेरेट जगत में छंटनी, उद्योगपतियों की नैतिकता सरीखे फैसलों पर आहत रहे। कहते थे, कॉर्पाेरेट जगत की टॉप लीडरशिप में सहानुभूति की कमी हो गई है। कोरोना के मुश्किल दौर में उद्यमियों और कंपनियों के लिए लम्बे समय तक काम करने और अच्छा प्रदर्शन करने वाले कारिंदों के प्रति संवेदनशीलता जरूरी है। ये वे लोग हैं, जिन्होंने अपना पूरा करियर कंपनी के लिए लगा दिया है। संकट के समय आप इन्हें सपोर्ट करने की जगह बेरोजगार कर रहे हैं। श्री टाटा मानते थे कि मुनाफा कमाना गलत नहीं है, लेकिन यह काम भी नैतिकता से करना जरूरी है। यह सवाल बहुत जरूरी है, आप मुनाफा कमाने के लिए क्या-क्या कर रहे हैं? यह सवाल खुद से लगातार पूछते रहना चाहिए, वे जो फैसले ले रहे हैं, क्या वे सही हैं? वह कंपनी ज्यादा दिन सर्वाइव नहीं कर सकती, जो अपने स्टाफ को लेकर संवेदनशील नहीं है। कर्मचारियों की छंटनी समाधान नहीं है। इससे पता चलता है, भारतीय कॉर्पाेरेट जगत की टॉप लीडरशिप में हमदर्दी का अभाव है।
टाटा ग्रुप की कंपनियों में एयरलाइन्स, होटल बिज़नेस, फ़ाइनेंशियल सर्विसेज, ऑटो बिज़नेस शामिल हैं। ये ऐसे सेक्टर हैं, जहां कोरोना महामारी का सर्वाधिक असर हुआ था। एविएशन और होटल इंडस्ट्री की सूरत से हरेक वाकिफ है। ऑटो सेक्टर की भी हालत पतली थी। कारों की बिक्री में रिकॉर्ड गिरावट देखी गई। बावजूद इसके टाटा ग्रुप ने एक भी कर्मी को नौकरी से नहीं निकाला था। सिर्फ सॉफ्टवेयर समूह ने अपने शीर्ष मैनेजमेंट के वेतन में 20 पर्सेंट की कटौती की थी। दरियादिली में पीछे नहीं रहे। कोरोना से निपटने के लिए टाटा समूह ने पीएम केयर्स फंड में 1500 करोड़ का दान किया। नामचीन उद्योगपति श्री रतन टाटा मानते रहे, बिज़नेस का मतलब सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं होता है। देशभर में लाखों-लाख लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया। क्या इससे समस्या का हल हुआ? वह खुद ही जवाब देते थे, उन्हें नहीं लगता-ऐसा हो सकता है। आपको बिजनेस में नुकसान हुआ है, ऐसे में लोगों को नौकरी से निकाल देना विकल्प नहीं है, बल्कि उनके प्रति आपकी जिम्मेदारी बनती है। आप इस माहौल में तब तक ज़िंदा नहीं रह पाएंगे, जब तक आप संवेदनशील नहीं रहते हैं। सबसे पहले लोगों के कार्यस्थल के बारे में आपको चिंतित होना चाहिए।
श्री टाटा साफ मानते रहे, मंदी के दौर में बने रहने के लिए आपको जो उचित और आवश्यक लगता है, उसके सन्दर्भ में आपको बदलना होगा। कोरोना संकट के दौर में कोई निश्चित तरीके से व्यापार करना जारी नहीं रख सकता है। इस महामारी के दौरान वर्क फॉर्म होम अच्छा उपाय है। ले-ऑफ कंपनी की समस्याओं को हल करने में मदद नहीं करेगा। आय का कोई सोर्स न होने के कारण लॉकडाउन के दौरान प्रचंड गर्मी में बिना साधन के श्रम शक्ति ने घर वापसी की। देश की सबसे बड़ी श्रम शक्ति को एक ही झटके में कह दिया गया, आपके लिए कोई काम नहीं है। उनके घरों तक भेजने की व्यवस्था नहीं की गई। रहने-खाने का बंदोबस्त नहीं किया। इससे क्षुब्ध श्री टाटा ने सवाल किया, ऐसा करने वाले आप कौन होते हैं? आप अपनी लेबर फोर्स के साथ इस तरह का बर्ताव क्यों करते हैं? क्या आपकी नैतिकता की यही परिभाषा है? टाटा ने इंडस्ट्री के शीर्ष अफसरों से पूछा, इस मुश्किल समय में उनका क्या कर्तव्य बनता है? उनके लिए नैतिकता की क्या यही परिभाषा है? जिन्होंने आपके लिए दिन-रात काम किया, आपने उन्हें ही छोड़ दिया।
श्री टाटा का मानना रहा था कि कोई भी बिजनेस करते समय दो चीजों पर ध्यान देना हमेशा जरूरी है- पहला, किसी भी सिचुएशन में अपने स्टेक होल्डर्स या शेयर होल्डर्स से सामना करना। दूसरा, निचले तबके के कर्मचारियों को भी समझना। अगर कंपनी से जुड़ा कोई भी व्यक्ति नाराज है तो उसका कोई न कोई कारण होता ही है। उसका सॉल्युशन निकालना भी जरूरी है। उन्होंने बताया था कि जिस वक्त उन्हें टाटा मोटर्स का चेयरमैन बनाया गया था, उसके कुछ समय बाद कंपनी में बहुत बड़ी स्ट्राइक हुई थी। उन्होंने उन दिनों 3 से 4 दिन प्लांट में ही बिताए। सभी को यह भरोसा दिलाया था, हम एक हैं। उन्होंने कहा कि वास्तविकता यही है कि किसी भी कंपनी को उसके प्रॉफ़िट्स और परफॉरमेंस के आधार पर ही जज किया जाता है। प्रॉफ़िट कंपनी की आतंरिक स्थिति को कवर करता है। आजकल की कंपनियां वर्कर्स की खुशियों से ज्यादा अपने प्रॉफिट पर ध्यान देती हैं। ऐसा ही कुछ वर्कर्स के साथ भी है। ग्राहकों को भी सोचना चाहिए कि जिस कंपनी से वे डील कर रहे हैं, वे गुणवत्ता और कस्टमर सर्विस के अनुसार फेयर हैं या नहीं। एक कंपनी के तौर पर सोचना होगा कि क्या आप अपने कस्टमर्स के प्रति फेयर हैं? अगर कोई भी कंपनी, कस्टमर या वर्कर अपने एथिक्स भूल जाता है तो उसे एक वक़्त पर उसका खामियाज़ा भुगतना ही होगा। कोविड की स्थिति में आपके पास भागने का विकल्प नहीं था। आपको बस यह स्वीकार करना था कि कोई भी कारण हो आपको परिस्थितियों के मुताबिक बदलना ही होगा। इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण है ‘वर्क फ्रॉम होम’। ऐसा पहली बार हुआ जब वर्कर्स को उनके वर्कप्लेस से फर्क नहीं पड़ा। किसी भी परिस्थिति में काम चालू रखना एक बड़ी बात है, इसीलिए लोगों ने ‘वर्क फ्रॉम होम’ को अपनाया।
बकौल श्री टाटा, आपके पास छिपने और भागने के लिए कोई जगह नहीं है। आप जहां भी जाते हैं, कोविड-19 महामारी आपको हिट करती है। ऐसे में बेहतर है कि हालात को स्वीकारें। पद्मभूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित श्री टाटा ने कोरोना महामारी के दौरान एक पोर्टल से पहली बार अपनी बहुमूल्य राय साझा की थी। बोले, आपको उन बातों में बदलाव करना होगा, जिन्हें आप अच्छा मानते हैं या जो जिन्दा रहने के लिए जरूरी है। किसी भी व्यक्ति को अपनी ख़्याली दुनिया से ज्यादा सच्ची असफलता के बारे में चर्चा करनी चाहिए। दुनिया का एक और कटु सत्य यह है कि हर कोई स्पॉटलाइट के पीछे है। उस सफलता को लोग प्रॉफिट से ही नापते हैं, इसीलिए आप प्रॉफिट को कभी भी इग्नोर नहीं कर सकते। सवाल यह उठता है कि उस प्रॉफिट को कमाने के लिए करना क्या है? कड़वी सच्चाई यह है, आप डिफिकल्ट सिचुएशन से भाग नहीं सकते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई थी, भारत की युवा शक्ति नैतिकता और रचनात्मकता के आधार पर दुनिया में पॉवरहाउस बनकर उभरेगी। हमें ज्यादा क्रिएटिव और इनोवेटिव बनने की दरकार है। श्री टाटा अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन इस महान हस्ती की हजारों-हजार प्रेरक कहानियां अनुकरणीय हैं।