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बड़े धोखे हैं इस राह में

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दुनिया में ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स इस्तेमाल करने में भारत शीर्ष पांच देशों में शामिल है। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका पहले और चाइना दूसरे स्थान पर है। भारत में डेटिंग के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय ऐप टिंडर, बम्बल, हप्पन और ट्रूली मैडली हैं। ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स की चर्चा में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के महरौली इलाके का श्रद्धा हत्याकांड का जिक्र जरूरी हो जाता है। 18 मई 2022 को श्रद्धा के लिव-इन पार्टनर आफताब पूनावाला ने उसकी गला घोटकर हत्या कर दी थी। हत्या के बाद उसने श्रद्धा के शव को अलग-अलग टुकड़ों में काटकर ठिकाने लगाया। उसके कुबूलनामे से जुड़े तमाम साक्ष्य इकट्ठा करने के बाद पुलिस ने उसे 12 नवंबर को गिरफ्तार किया। इस हत्याकांड का जिक्र इसलिए अहम हो जाता है कि इन दोनों की दोस्ती ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स के जरिये हुई थी।

हाल ही में फ्रांस बेस्ड एक्सट्रा मैरिटल डेटिंग ऐप ग्लीडेन ने बताया कि भारत में उसके 20 लाख यूजर्स हैं। ऐसे में मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या ऑनलाइन डेटिंग ऐप के लिए भारत में कोई कायदा-कानून है या नहीं? इसका जवाब यह है कि भारत में डेटिंग ऐप्स के रूल्स और रेगूलेशन को लेकर कोई स्पेसिफिक कानून नहीं है। माना जा रहा है कि देश में तीन करोड़ से ज्यादा लोग डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं। इनमें 67 फीसदी पुरुष और 33 फीसदी यूजर्स महिलाएं हैं। ऐप यूज करने वालों ऐसे यूजर्स अधिक हैं जिनका जन्म 2000 के बाद हुआ है। यह बड़ा तथ्य है कि भारत में हर साल डेटिंग ऐप्स के सब्सक्रिप्शन से 500 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई होती है। देश में दो करोड़ से ज्यादा डेटिंग ऐप्स के पेड सब्सक्राइबर्स हैं। यूजर्स पर नजर रखने वाली वैश्विक कंपनी ग्लीडेन के मुताबिक, भारत में सितंबर 2022 से यह आंकड़ा 11 प्रतिशत बढ़ा है। अधिकांश नए ग्राहक (66 प्रतिशत) टीयर 1 शहरों से आते हैं। शेष (44 प्रतिशत) टीयर 2 और टीयर 3 शहरों से आते हैं। इस कंपनी का दावा है कि ऐप्स इस्तेमाल करने वाले पुरुष और महिला दोनों इंजीनियर, उद्यमी, सलाहकार, प्रबंधक, अधिकारी और चिकित्सक जैसे पेशेवर हैं।

देश में डेटिंग ऐप्स को निजता के अधिकार के तहत रेगुलेट किया जाता है। मगर सूचना प्रौद्योगिकी (उचित सुरक्षा प्रथाओं और प्रक्रिया और संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा या सूचना) नियम, 2011 निजता के अधिकार को एनेबल करते हैं, लेकिन यह केवल क्रेडिट, डेबिट कार्ड, बॉयोमेट्रिक जानकारी, पासवर्ड, स्वास्थ्य जानकारी, मेडिकल रिकॉर्ड जैसी संवेदनशील जानकारी तक ही सीमित है। ऐसे में डेटिंग ऐप्स को अन्य जानकारी जैसे कि उम्र, लिंग, धर्म और राजनीतिक संबद्धता को संवेदनशील जानकारी की श्रेणी के रूप में रखने की जरूरत नहीं होती है। बावजूद इसके भारतीय यूजर्स चिंताओं से घिरे रहते हैं। एक्सक्लूसिव सिंगल्स क्लब जूलियो ने वैश्विक जनमत कंपनी यूगोव के साथ मिलकर भारत के आठ बड़े शहरों में 1,000 से ज्यादा एकाकी (सिंग्लस) लोगों का सर्वे किया। इस सर्वेक्षण का चौंकाने वाला तथ्य यह है कि सिंगल्स के प्रोफाइल ऑनलाइन तो मैच हो रहे हैं, लेकिन वे असल जिंदगी में एक-दूसरे से नहीं मिलते। यूजर्स 24 घंटे सुरक्षा, प्रोफाइल की सच्चाई और डेटिंग ऐप्स की जटिलता से घिरे रहते हैं। कभी-कभी तो इसका मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है और लोग अवसाद से घिर जाते हैं। सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ है कि

इन ऐप्स और वेबसाइट्स का इस्तेमाल करने वाले ती में से दो लोगों ने कभी अपने संभावित साथी से आमने-सामने मुलाकात नहीं की। यह असली जीवन में जुड़ाव की कमी को दिखाता है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या सही प्रोफाइल न मिलना और फेक पहचान का होना है। सर्वेक्षण में शामिल 78 फीसदी महिलाओं ने माना कि उन्हें इन प्लेटफार्मों पर फेक प्रोफाइल की समस्या का सामना करना पड़ा। इसलिए, वह चाहती हैं कि उनकी प्रोफाइल पर गोपनीयता और नियंत्रण बेहतर हो। वहीं, 74 फीसदी पुरुष और महिलाएं मानते हैं कि उनकी प्रोफाइल सिर्फ उन्हीं को दिखनी चाहिए, जिन्हें वे चुनते हैं। 82 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि डेटिंग या शादी के ऐप्स पर सुरक्षा के लिए सरकारी आईडी से प्रोफाइल की जांच जरूरी होनी चाहिए। सरकारों को इन प्लेटफार्मों पर होने वाले स्कैम्स को ध्यान में रखते हुए इस नियम को अनिवार्य बनाने पर विचार करना चाहिए।

इसके अलावा, युवाओं को इस प्रक्रिया में भावनात्मक और मानसिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि यह अनुभव मुश्किल और थकाने वाला हो सकता है। सर्वे में शामिल करीब आधे लोगों ने माना कि डेटिंग या शादी के प्लेटफार्मों के इस्तेमाल से उनकी मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ा। ऑनलाइन बातचीत की सुविधा लोगों पर पहली मुलाकात में अच्छा प्रभाव डालने का दबाव डालती है। 62 प्रतिशत ने कहा कि वे बातचीत को मजाकिया या हल्का-फुल्का रखने का दबाव महसूस करते हैं। सर्वेक्षण का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि चार में से तीन महिलाएं डेटिंग या शादी के ऐप्स और वेबसाइटों पर अपने अनुभव से खुश हैं। हालांकि, लगातार स्वाइप करते रहने से भावनात्मक थकान हो जाती है। 70 फीसद पुरुष और महिलाएं मानते हैं कि यह फीचर बेकार है और इससे उनकी परेशानियां बढ़ती हैं।

मशहूर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट और टेड एक्स की वक्ता कामना छिब्बर का कहना है कि “आजकल रिश्ते निभाना मुश्किल हो गया है। बहुत सारे विकल्प होने की वजह से एक मजबूत और खास रिश्ता बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। साथ ही, जब लोग एक-दूसरे से मिलने की कोशिश करते हैं तो उनकी सुरक्षा को लेकर भी खतरे होते हैं। इसलिए जरूरी है कि एक ऐसा सिस्टम बनाया जाए जो लोगों को सुरक्षित महसूस कराए, चाहे वह शारीरिक, भावनात्मक या मानसिक रूप से हो।

जूलियो के संस्थापक सीईओ वरुण सूद ने कहा, ”यह रिपोर्ट आज के युवाओं को प्यार की तलाश में होने वाली मुश्किलों को सामने लाती है। असली रिश्तों की बुनियाद आमने-सामने की बातचीत और मुलाकातों से ही बनती है। मिलने से ही बात आगे बढ़ती है। इसलिए हमने जूलियो के जरिए सिंगल लोगों के लिए एक सुरक्षित, भरोसेमंद और जिम्मेदार तरीके से प्यार पाने की प्रक्रिया को बदलने के लिए एक वैश्विक मुहिम शुरू की है।”