बेखौफ होकर जम्मू-कश्मीर में जिस तरह से मतदाताओं ने राज्य विधानसभा के तीन चरणों में हुए चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग किया उससे दूर तक संदेश चला गया है कि अब वहां हालात लगभग सामान्य हो चुके हैं। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान किसी तरह की हिंसा भी नहीं हुई। चुनाव में राजनीतिक दलों ने भी निर्भीकतापूर्वक खुलकर प्रचार भी किया। रैलियां भी कीं और जमकर अपने-अपने मतों को खुलकर जनता के सामने रखा भी । यह सब पिछले कई दशकों से ठप पड़ा हुआ था । बेशक, निर्वाचन आयोग राज्य विधानसभा का चुनाव सफलतापूर्वक आयोजित करने का श्रेय ले सकता है। याद रहे कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव था। यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि 1980 के दशक में जम्मू और कश्मीर में उग्रवाद के बढ़ने का एक कारण 1987 का विधानसभा चुनाव था, जो कि पूरी तरह से फर्जी था और जिसने चुनावी लोकतंत्र के प्रति भारी निराशा पैदा की थी और उग्रवाद को बढ़ावा देने में भरपूर मदद की थी।
देश को अब उम्मीद जगी है कि राज्य विधानसभा के आगामी आठ अक्टूबर को मतगणना भी इसी भावना से होगी और उसके बाद राज्य में नई सरकार का गठन बिना किसी पक्षपात या शिकायत के होगा। अब लगता तो यही है कि जम्मू-कश्मीर अपना अतीत भूलकर नया इतिहास रचने के लिए मन बना चुका है। गांधी जयंती के मौके पर राजभवन में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा, “बापू हमेशा जम्मू-कश्मीर में शांति और प्रगति देखना चाहते थे। उन्होंने नई पीढ़ी से बापू के आदर्शों से प्रेरणा लेने का आग्रह किया।” दरअसल राज्य के नौजवान भी समझ चुके हैं कि हिंसा और अशांति से उन्हें ही नुकसान होगा। इसलिए उनके हाथों में अब बंदूक और पत्थर नहीं हैं, बल्कि उनकी आंखों में शांति और आकांक्षाओं के सपने दिखाई देते हैं। आप कह सकते हैं कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र का महापर्व संपन्न हुआ है। सबसे पहले बीती मई में लोकसभा चुनाव हुए और फिर विधानसभा चुनाव के लिए मतदान शांतिपूर्ण, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष तरीके से संपन्न हुआ। यह भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भर में चर्चा का केंद्र बिंदु बन गया है।
केन्द्रशासित प्रदेश के 1.40 करोड़ नागरिकों ने संवैधानिक मूल्यों में अपनी आस्था दोहराई है और अपने मतदान के माध्यम से जम्मू-कश्मीर और देश के विकास में योगदान देने का संकल्प लिया है। यह प्रमाण है कि पिछले चार-पांच वर्ष में भयमुक्त जम्मू-कश्मीर बनाने में बड़ी सफलता मिली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले पांच वर्ष में किए गए कार्य, चाहे वह जमीनी स्तर पर लोकतंत्र का सशक्तीकरण हो या शांतिपूर्ण चुनाव कराना हो या विकास कार्य हो, इस बात का प्रमाण हैं कि जम्मू-कश्मीर अब विकास और खुशहाली के रास्ते पर चल पड़ा है। अब राज्य में स्कूल पूरे साल खुले रहते हैं। बच्चे पढ़-लिखकर आगे बढ़ रहे हैं।
हालिया चुनाव में, उन जगहों में जमकर मतदान हुआ जिन्हें अब तक आतंकवादी संगठनों के गढ़ के रूप में देखा जाता था। तीन चरणों में क्रमशः 61.38%, 57.31% और 69.65% मतदान हुआ। जम्मू-कश्मीर में देश के अन्य भागों की तरह ही इतने भारी मतदान से साफ है कि कश्मीर की जनता भी चुनावी लोकतंत्र को गंभीरता से लेनी लगी है। उच्च मतदान दर का एक कारण यह भी हो सकता है कि घाटी में लगभग सभी राजनीतिक मतों और विचारधाराओं की पार्टियों ने चुनाव में भाग लिया। अपने स्तर पर जमात-ए-इस्लामी भी शामिल रही चुनावों में, जिसने बीते समय के दौरान राज्य में चुनावों का बहिष्कार करने की पुरजोर वकालत की थी। कुल मिलाकर 90 सीटों के लिए 873 उम्मीदवार मैदान में थे।
जमात ने स्वतंत्र उम्मीदवारों के रूप में या इंजीनियर रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी के सहयोगियों के रूप में चुनाव लड़ा। यह महत्वपूर्ण है , क्योंकि यह संगठन नेशनल कॉन्फ्रेंस का मुख्य वैचारिक दुश्मन रहा है। सीमापार से बार-बार आतंकवादी हमलों के कारण सुरक्षा बल, विशेष रूप से पीर पंजाल रेंज के दक्षिण में, तनाव में रहे हैं। लेकिन, सुरक्षा बलों की चौकसी ने निश्चित रूप से चुनाव बिना किसी हिंसा के सम्पन्न करवा दिए।
यह तो मानना होगा कि जम्मू-कश्मीर तेजी से बदल रहा है। राज्य में 370 के हटने से पहले पत्थरबाजी की घटनाओं में सैकड़ों लोग घायल हो रहे थे और मारे जा रहे थे। सुरक्षाबलों पर हमले हो रहे थे, जिसमें अब 80-85 फीसद तक की कमी आई है। अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद केन्द्र सरकार ने घाटी में राज्य की पुरानी सभ्यता और संस्कृति को फिर से जीवित करने के लिए बड़ी योजना पर काम शुरू किया। इसके तहत आस्था के केंद्रों और आध्यात्मिक स्थलों को नया रूप दिया गया। स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के मेले और महोत्सव लगाए गए। यह मेले और महोत्सव आतंकवाद पनपने के कारण सालों से बंद थे। 2023 में नियंत्रण रेखा के पास स्थित मां शारदा देवी मंदिर का नवनिर्माण कराकर आजादी के बाद पहली बार पूजा के लिए खोला गया। सालों से बंद खीर भवानी मंदिर में फिर से दर्शन-पूजन का काम शुरू हुआ। खीर भवानी का मेला लगाया गया। इसमें पर्यटकों के साथ स्थानीय लोग भी बड़ी संख्या में पहुंचे। सरकार ने 123 पुराने स्थलों का व्यवस्थित रूप से जीर्णोद्धार और मरम्मत कराकर जनता के लिए फिर से खोल दिया।
केन्द्र सरकार ने ऐतिहासिक हजरत बल दरगाह के विकास के लिए 42 करोड़ रुपये दिए। राज्य में जगह-जगह मेगा सांस्कृतिक कार्यक्रम कराए गए। महत्वपूर्ण यह भी है कि जम्मू-कश्मीर में 370 खत्म होने के बाद राज्य में पंचायती राज अधिनियम 1989 को लागू किया गया। इसके तहत लोकतंत्र के तीनों स्तरों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को लागू करना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाना उद्देश्य था। इसके साथ ही पिछले लोकसभा चुनाव के समय राज्य की पांच लोकसभा सीटों के लिए लगभग 58 फीसद मतदान हुआ। इतना मतदान राज्य में बीते कुछ लोकसभा चुनाव के समय नहीं हुआ था।
श्रीनगर के बाजारों में आम-खास जनों से बात करके लगता है कि अनुच्छेद 370 को राज्य का अवाम अगर पूरी तरह से भूला नहीं है, तो कम से कम उसकी चर्चा करने का उसके पास वक्त नहीं है। अब वह आगे निकलना चाहता है। उसे चाहत है अमन और रोशन मुस्तकबिल की। देश को भरोसा है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद विकास की रफ्तार और तेज होगी।