Home संपादकीय सात्विक राजनीति के उन्नायक बन कर उभरे योगी आदित्यनाथ

सात्विक राजनीति के उन्नायक बन कर उभरे योगी आदित्यनाथ

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सनातन संत के संयोजन में प्रयागराज कुंभ का अद्भुत स्वरूप उभर रहा है। वैश्विक पटल पर सनातन की गूंज है। विश्व आश्चर्यचकित है। कई देशों की उतनी आबादी नहीं है जितने श्रद्धालु प्रतिदिन पवित्र त्रिवेणी में स्नान कर रहे हैं। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिसंबर में कुंभ का आरंभ किया उसके बाद की व्यवस्था सम्भाल रहे योगी आदित्यनाथ वास्तव में सात्विक शासक बन कर उभरे हैं। इसे सात्विक राजनीति का उन्नयन काल भी कहा जा सकता है। एक तरफ विश्व संत्रस्त है। अनेक देश युद्ध की विभीषिका में घिरे हैं। मानवता कराह रही है। स्त्रियों, वृद्धों, मासूम बच्चों की लाशें गिनती से बाहर हैं। पश्चिम में बारूद ही बारूद है। भारत के पास पड़ोस में भी बारूदी धुएं से वातावरण दूषित है। मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन बनकर रक्तपिपासु हो गया है। कई वर्षों से आसमान में तोप, रॉकेट और सुपरसोनिक युद्धक विमान कोहराम मचाए हुए हैं। ऐसे माहौल में भारत की सनातन संस्कृति अपने सृष्टि पर्व के माध्यम से विश्व के कल्याण का उदघोष कर रही है।

सनातन संत परंपरा और सात्विक राजनीति के उन्नायक योगी आदित्यनाथ के संयोजन में प्रयागराज के त्रिवेणी तट से जो संदेश विश्व को प्रसारित हो रहा है वह नए भारत के प्राचीन गौरव के साथ बहुत कुछ कह रहा है। योगी आदित्यनाथ ने इस महा आयोजन को उतना ही गौरवशाली बना दिया है। योगी के अथक परिश्रम से यह कुंभ विश्व को भारत के सात्विक सनातन और समन्वय की राजनीति का भी संदेश दे रहा है। यह भारत के अध्यात्म की ध्वज तरंग को डिग दिगंत तक प्रसारित करने वाला है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सभी अखाड़ों, संप्रदायों, जगद्गुरुओं और शंकराचार्यों के साथ ही समस्त नागा एवं संत समाज इस समय योगी आदित्यनाथ के इस परिश्रम और उनके दिव्य संयोजन की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहा है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि समस्त विद्वत और संत समाज एक स्वर से अपने शासक की तारीफ कर रहा हो। भारत की प्राण मां गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी तट पर प्रयागराज में करोड़ों लोग आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। यह अद्भुत है। प्रधानमंत्री मोदी का विश्वगुरु भारत का सपना साकार हो रहा है। प्रयाग की धरती से भारत विश्व को मानवता और लोक कल्याण का संदेश दे रहा है। भारत की संस्कृति, अध्यात्म और आस्था के आगे विश्व नतमस्तक है। धरती का हर कोना प्रयागराज से आकर्षित है। सभी यहां आना चाहते हैं। सभी पवित्र त्रिवेणी में डुबकी भी लगाना चाहते हैं। यह वास्तव में विश्व के अन्वेषकों और चिंतनशील शोधार्थियों के लिए कौतुक जैसा है।

ऐसा क्यों है, यह विचारणीय है। अभी कुछ ही दिन हुए, 26 दिसंबर 2024 को द हिंदू ने हिंसाग्रस्त विश्व के हालातों पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2024 में कई ऐसे अंतरराष्ट्रीय संघर्ष हुए, जिन्होंने भू-राजनीतिक परिदृश्य और वैश्विक स्थिरता को चुनौती दी। यूक्रेन में चल रहे युद्ध से लेकर मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव तक , इस वर्ष गठबंधनों में बदलाव और विनाशकारी सैन्य अभियान देखने को मिले। इन संकटों का प्रभाव उनके तत्काल क्षेत्रों से कहीं आगे तक फैला, जिसने दुनिया भर में राजनयिक संबंधों और रणनीतिक प्राथमिकताओं को प्रभावित किया। रिपोर्ट में कहा गया कि बीते वर्ष की शुरुआत रूस द्वारा यूक्रेन के विरुद्ध 2022 के युद्ध को जारी रखने के साथ हुई , जिसका उद्देश्य उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) को अपनी सीमाओं की ओर बढ़ने से रोकना था। गाजा पट्टी, लेबनान और लेबनान का खूनखराबा सामने है। हमास, हिजबुल्ला, हूथी का खौफनाक चेहरा दुनिया देख रही है। इजराइल सबसे मुकाबला कर रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के साथ ही यूक्रेन को अमेरिका से मिलने वाले समर्थन में बदलाव आने की संभावना बनी। इस बीच, क्षेत्र में ईरानी प्रॉक्सी कमजोर हो गए हैं, जिससे इजराइल को अपनी क्षेत्रीय स्थिति को और मजबूत करने का मौका मिल गया है। 12 दिसंबर 2024 से पहले के 12 महीनों के लिए 10 देशों को चरम संघर्ष वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है। ये हैं – फिलिस्तीन, म्यांमार, सीरिया, मैक्सिको, नाइजीरिया, ब्राज़ील, लेबनान, सूडान, कैमरून और कोलंबिया। 2024 में साल एक जनवरी से 13 दिसंबर तक, युद्ध, विस्फोट, दूरस्थ हिंसा और नागरिकों के खिलाफ हिंसा में 200,000 से अधिक लोग मारे गए। इस मृत्यु दर का लगभग आधा हिस्सा मुख्य रूप से तीन देशों से आता है: यूक्रेन, फिलिस्तीन और म्यांमार। हालांकि वास्तविक मौतों का आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है। पिछले वर्षों में, अफगानिस्तान में संघर्ष से संबंधित मौतों का एक बड़ा हिस्सा रहा है, खासकर तालिबान द्वारा सरकार पर कब्जा करने से पहले। यह संकट अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, संघर्ष समाधान और मानवीय हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता की कड़ी याद दिलाते रहे। इस रिपोर्ट में सब कुछ सत्य नहीं है किंतु सत्य के काफी निकट अवश्य है। वैश्विक परिदृश्य में सनातन भारत की यह खगोलीय महावैज्ञानिक घटना अपने 46 दिनों की इस अवधि में बहुत कुछ स्थापित करने वाली है। यह सनातन भारत की आत्मिक शक्ति है जिसके आगे दुनिया नतमस्तक है। यही है कुंभ और यही है भारत की वह भारतीय सनातनी परंपरा जो भारत को विश्वगुरु बना देती है।