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सांसद निधि से मांगिये घर

शैलेश सिंह

सांसद जी से मांगिये घर! पूछिये 562 लाख लिये, फिर क्यों नहीं दिये घर। तो क्या एमपीएलएडीएस की गाइडलाइन फर्जी है? या डीएम, सांसद दोनों मिलकर अंधेरे में रखे हैं जिला, राज्य और देश। अगर एक लाख दें तो 562, अगर 50 हजार देते हैं तो 1125 आवास मिलेंगे एक ही जिले में। मगर गरीबों ने मांगे नहीं, सांसदों ने दिये नहीं। इसलिये आज ही मांगिये अपना हिस्सा, सांसद जी जिले में नहीं तो डीएम से मांगिये अपना घर। अगर बीस साल पहले से भी मांगते तो अब तक हर जिले में मिल सकते थे 45 सौ आवास। अगर पूरे यूपी की बात करें तो अब तक मिलते 3 लाख 60 हजार आवास। यूं तो 562 लाख रूपये हर सांसद को इसलिये मिलते हैं ताकि वह अपने जिला/ क्षेत्र में दलितों, पिछड़ों, गरीबों को आवास दे सकें, यही नहीं इसके लिये गाइडलाइन की नियम शर्तें भी सख्त हैं कि आवासों के नाम पर ली गई रकम कहीं और खर्च नहीं की जा सकती, इसके लिये पैरा 2.5 के तहत पाबंदी लगायी गई है, यही नहीं जिले के डीएम भी नियम शर्त में बंधे हैं पैरा 3.16 व अन्य स्पष्ट हैं कि जिले में जिन पात्रों को सांसद निधि से आवास मिलेंगे उनके नाम, पते, विवरण वेबसाइट पर अपलोड करना बेहद जरूरी है, अगर इसमें लापरवाही हुई तो डीएम और सांसद दोनों ही कटघरे में आते हैं। मगर न तो यूपी भर में कहीं आवास दिए गए, न ही किसी भी डीएम ने आपत्ति उठाई, यहां तक कि 75 जिलों के किसी भी कलेक्ट्ेट में कहीं भी बोर्ड तक नहीं लगाया गया कि सांसद निधि से आवास दिए गए हैं और जिन अनुसूचित जाति, जनजाति एंव अति गरीबों को घर मिले, उनके नाम पते स्पष्ट लिखे हैं। यही नहीं इस बुराई पर संसद में भी आज तक न तो चर्चा हुई, न ही किसी भी सांसद ने यह बुराई खत्म करने के लिए सवाल उठाए। बात करें आवास निधि से हटकर तो विकलांक सहायता के लिए भी हर सांसद कोे 50 लाख रूपए मिलते हैं, इसी तरह बाढ़, ओलावृष्टि जैसी आपदा से निपटने के लिए अलग से 50 लाख मिलते हैं, ताकि विकलांग हो या पीड़ित किसान उनकी मदद की जाए। मगर यह बुराई न जाने कब से दफन है और 2014 से यानी मोदी शासन में ही खत्म नहीं की जा रही है, यह न तो सांसदों की छवि के लिए अच्छे संकेत हैं, न ही राज्य और जनता की सेहत के लिए। फिलहाल हम आपको बता दें कि रायबरेली, कन्नौज, सीतापुर, मैनपुरी, मथुरा सहित तकरीबन बंुदेलखण्ड के सभी जिले ऐसे हैं जहां हर साल सैकड़ों में नहीं हजारों में मौतें होती हैं, मगर ना तो पीड़ितों को बताया जाता है कि सांसद निधि से भी आवास मिलते हैं ना ही किसी भी डीएम ने अब तक इसकी शुरूआत कराई। यूं तो यूपी में इन्दिरा, महामाया, लोहिया, सीएम और पीएम आवास योजना के तहत ना जाने कब से आवास बांटे जा रहे, मगर बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट जैसे जिलों की बदसूरती, गरीबों की पीड़ायें सिर्फ जमीन पर ही रखी गई। फिलहाल बात करें राज्यसभा सांसदों की तो इस माननीयों को और भी ज्यादा रकम मिलती है, अगर यह रकम भी जोड़ी जाये तो सिर्फ उ0प्र0 राज्य से ही लगभग 25 सौ करोड़ की रकम गायब है वह भी मात्र बीस साल से। यूं तो हर विकलांग की मदद के नाम पर हर सांसद को 10 लाख रूपये सालाना मिलते हैं, और इस तरह 5 साल से 50 लाख लेकर भी अपाहिजों को मदद नहीं मिलती। जबकि गाइडलाइन के पैरा 3.26 के तहत पाबंदी है कि यह रकम सिर्फ अपाहिजों की मदद पर ही खर्च की जा सकती है। अगर एक अपाहिज को दस हजार की भी मदद मिलती है तो एक साल में 100 और पांच साल में 500 विकलांगों की मदद हो सकती है, कुछ सांसद यह रकम खर्च भी करते हैं, अपाहिजों की मदद की जाती है, मगर 40 करोड़ से 40 हजार पात्रों की मदद सिर्फ पांच साल में पूरी की जाती तो अब तक गली, शहर, गांव से इस तरह के शिकवे कम हो सकते थे, और बीस साल से अब तक की बात करें तो दो लाख अपाहिजों की मदद हो सकती थी। फिलहाल शैलेश सिंह द्वारा 09 अप्रैल 2019 के दिन एक शिकायत लिखी गई थी, राष्ट्पति महोदय और लोकसभा अध्यक्ष को शिकायत देने के बाद भारत सरकार के एमपीएलएडीएस विभाग को निर्देश दिए गए कि यह शिकायत निस्तारण कराई जाए, यही नहीं 31 जनवरी 2020 के दिन भारत सरकार द्वारा यूपी के 7 जिलों के जिलाधिकारियों के लिए निर्देश लिखे गए कि जांच कर उचित कार्यवाही की जाए मगर 8 महीने गुजर जाने के बाद भी रायबरेली, मैनपुरी, मथुरा, नोएडा, गाजियाबाद, बुलंदशहर एंव कन्नौज मतलब सभी 7 जिलों के जिलाधिकारियों पर जू तक नहीं रेंगी। यहां तक कि नोएडा डीएम की तो अलग ही कहानी सामने आई, शैलेश सिंह के लिए जबाब दिया गया कि जो कार्यवाही भारत सरकार द्वारा लिखी गई वह डीएम गौतमबुद्धनगर के लिए आई ही नहीं। अब आप समझ सकते हैं कि भारत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड एंव वायां ईमेल प्रेषित की गई कार्यवाहीं पर जिलाधिकारियों की मनमानी इस तरह की हैं तब आप खुद ही समझ सकते हैं कि अफसरशाही न सिर्फ शिकायतों एंव जनता को ही कूड़ा समझती है बल्कि कानून से खेलने में भी कतई संकोच नहीं लगता।

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