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श्रीलंका में एनपीपी की प्रचंड जीत

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श्रीलंका में एनपीपी की प्रचंड जीत, भारत के लिए कितनी अहम

श्रीलंका के संसदीय चुनाव में राष्ट्रपति एकेडी यानी अनुरा कुमारा दिसानायके की अगुवाई वाले गठबंधन का प्रचंड बहुमत से जीतना चीन की खुशी का कारण हो सकता है। इसे पहली नजर में वामपंथी दिसानायके का कम्युनिस्ट चीन के करीब होना समझा जायेगा। इस राय के पक्ष में जाने वाले लोग इतिहास में थोड़ा पीछे जाने की राय दे सकते हैं। वर्ष 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते का दिसानायके की पार्टी जेवीपी ने विरोध किया था। तब श्रीलंका में तमिल समस्या उभार पर थी और समझौते के तहत वहां लिट्टे की गतिविधि से निपटने के लिए भारतीय शांति सेना उतरी थी। लिबरेशन तमिल ईलम के खिलाफ असर डालने वाले समझौते पर तब के राष्ट्रपति जेआर जयवर्धने और भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हस्ताक्षर किए थे। दिसानायके उसके विरोध के चलते चर्चा में आए। वर्ष 2001 में वे पहली बार श्रीलंकाई संसद के लिए चुने गये थे। हाल में वे राष्ट्रपति चुने गये किंतु उनकी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं था। राष्ट्रपति ने संसद भंग कर चुनाव की घोषणा की थी। अब उस चुनाव का नतीजा है कि संसद में उनका गठबंधन एनपीपी ने दो तिहाई बहुमत हासिल कर लिया है।

खास बात यह है कि इस चुनाव में श्रीलंका की राजनीति में लंबे समय से प्रभावी रही परिवारवादी पार्टियों के प्रतिनिधियों को मतदाताओं ने खारिज कर दिया। पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे परिवार की पार्टी पोदुजना पेरामुना को सिर्फ तीन सीटें मिली। वहीं, दूसरे पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के समर्थन वाला न्यू डेमोक्रेटिक फ्रंट सिर्फ 5 सीटों पर कब्जा जमा सका। विपक्ष के नेता सजीथ प्रेमदासा की समागी जन बालवेगया पार्टी के खाते में जरूर 40 सीटें आईं। हालांकि यह 159 सीटों के साथ दो तिहाई बहुमत पाने वाले दिसानायके के मुकाबले कहीं बहुत पीछे है। स्वाभाविक है कि उनकी सरकार को बहुतेरे मामलों में ‘खुले हाथ’ काम करने की स्वतंत्रता हासिल हो गयी है। तो क्या एक वामपंथी नेता का अपने पड़ोसी भारत के मुकाबले कम्युनिस्ट चीन के साथ जाने के रास्ते प्रशस्त हो गये हैं? यह बात इतनी आसानी से नहीं कही जा सकती। इसे समझने के लिए दिसानायके के हालिया रुख को देखा जाना चाहिए।

दिसानायके की पार्टी भारत विरोधी और चीन समर्थक के रूप में पहचानी जाती रही है। इसके बावजूद वह भारत को दरकिनार नहीं कर सकते। देशों के बीच रिश्तों में विचारधारा का प्रभाव धीरे-धीरे कम होता गया है। आपसी जरूरतों के साथ अंतरराष्ट्रीय दबाव भी कारक बनते गये हैं। इसे ध्यान में रखते हुए ही दिसानायके ने कुछ समय से भारत विरोधी बयान देने काफी कम कर दिये। वे नई दिल्ली के साथ बेहतर रिश्ते की भी वकालत करते हैं। पिछले महीने ही उन्होंने कहा था कि उनका देश चीन और भारत के बीच सैंडविच नहीं बनना चाहता। यह बयान भावनाओं में बहते किसी सामान्य व्यक्ति का नहीं है। फिर हमें भी नहीं भूलना चाहिए कि दिसानायके का बयान सिर्फ श्रीलंका नहीं, भारत के भी अनुकूल है।

हमारे दक्षिणी प्रांत तमिलनाडु के नजदीक होने से श्रीलंका हमारी सुरक्षा और व्यापारिक रणनीति, दोनों नजरिए से अहम है। श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में तमिल कुल आबादी के करीब 11 प्रतिशत हैं। भारत सरकार श्रीलंका पर दबाव बनाती रही है कि वह अपने संविधान के 13वें संशोधन को लागू करे। यह संशोधन श्रीलंकाई सत्ता में तमिलों की भागीदारी सुनिश्चित करता है। तमिल डरते हैं कि दिसानायके सरकार इस संशोधन को रद्द कर सकती है। इसके विपरीत चुनाव परिणाम जिस ओर संकेत करते हैं, उससे ऐसा नहीं लगता। जाफना जैसे तमिल अल्पसंख्यकों के गढ़ में भी दिसानायके के गठबंधन एनपीपी की प्रचंड जीत देश में सामुदायिक सौहार्द की मांग रखती रहेगी। वर्ष 1948 में ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद दिसानायके की पार्टी को तमिल बहुल जाफना जिले में यह रिकॉर्ड वोट है। सिंहली प्रभावी देश में तमिलों के भी साथ मिलने से नई सरकार उनके प्रति अपने दायित्व को याद रखेगी। तमिलों की शिकायत रही है कि सिंहली बहुमत वाली सरकारें उनकी उपेक्षा करती हैं। निश्चित ही जाफना जैसे क्षेत्रों में भी बहुमत पाने वाली सरकार 1983 से 2009 तक श्रीलंका में गृह युद्ध के दिनों को नहीं भूलेगी।

बात सामुदायिक सौहार्द तक नहीं है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के लिए भारतीय सहयोग जरूरी है। ऐसा भारत ने सिद्ध भी किया है। अभी 2022 में श्रीलंका के ऐतिहासिक आर्थिक तंगी में भारत ने उसकी मदद की। तब जन आक्रोश के चलते गोटाबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा था। भारत ने श्रीलंका को 4 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद दी है। श्रीलंका में रुकी हुई कई भारतीय परियोजनाओं को भी फिर से शुरू किया गया है। पर्यटन से लेकर बैंकिंग क्षेत्र तक, भारत की मदद श्रीलंका के लिए बहुत मायने रखती है। यह मदद चीन से किसी भी मायने में अधिक है। ऐसे ढेर सारे बिंदु हैं, जो भारत-श्रीलंका के बीच रिश्ते मजबूत ही बनाएंगे। चुनाव के ठीक बाद इसके संकेत भी मिले हैं। श्रीलंका में भारतीय उच्चायुक्त संतोष झा ने विजयी पार्टी के नेता राष्ट्रपति दिसानायके से मुलाकात की। इस भेंट में दिसानायके ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भारत से सहयोग मांगा है। श्रीलंका के राष्ट्रपति के इस रुख पर भारत और चीन, दोनों ही नजर रखेंगे।