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राजस्‍थान में गाय आवारा नहीं

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राजस्‍थान में गाय आवारा नहीं, अच्‍छी पहल, पर इस तरह की चूक अच्‍छी मंशा पर भी प्रश्‍न खड़ा करती है 

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायकों ने अपने मुख्‍यमंत्री भजनलाल शर्मा के सामने यह मांग रखी कि गाय को ‘राज्यमाता’ का दर्जा दिया जाए और गोवंश के संरक्षण को लेकर सरकार बड़ा काम करे, इससे जुड़े कुछ अहम फैसले ले। जिसके बाद भजनलाल सरकार ने सबसे पहला निर्णय गायों को लेकर यह लिया कि उन्‍हें जो आवारा पशु कह दिया जाता है, उस पर रोक लगा दी गई। गौमाता के लिए सम्मानजनक शब्दों के इस्तेमाल रोकने को लेकर आदेश जारी कर दिए गए। उन्‍हें आवारा न कहते हुए बेसहारा और असहाय जैसे शब्‍दों का इस्‍तमाल आगे से होगा, गोपालन विभाग ने इसके लिए गाइडलाइन जारी कर दी। कहना होगा कि यह बहुत अच्‍छी शुरुआत है। किंतु इसी के साथ जो एक घटना राजस्‍थान से जुड़ी गायों को लेकर घटी है, वह बेचैन भी करती है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के करौली जिले में कुख्यात गौ तस्कर नाजिम खान को जमानत दे दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में बताया कि राजस्थान सरकार की ओर से कोई काउंसलर कोर्ट में उपस्‍थ‍ित नहीं हुआ और न ही कोई वकालतनामा जमा किया गया, जिसके चलते उसे जमानत देनी पड़ी है। एक राज्‍य सरकार जहां सत्‍ता से जुड़े अधिकांश जन गाय को ‘राज्यमाता’ का दर्जा दिए जाने के पक्ष हों, वहां इस तरह की चूक होनी चाहिए? वास्‍तव में यह एक बड़ा प्रश्‍न इस दृष्‍ट‍ि से है। क्‍योंकि नाजिम खान कोई छोटा गो तस्‍कर नहीं था, जिसे हाथ से यूं ही निकल जाने दिया जाना था। वस्‍तुत: राजस्थान पुलिस ने उसे व उसके सहयोगियों को 2021 में गौ तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया था। उन पर कई धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया था।

नाजिम खान और उसके सहयोगियों को जब करौली से गिरफ्तार किया गया था, तब उसके पास से 26 गौवंश बरामद हुए थे, जिन्‍हें वे बहुत बेदर्दी के साथ उत्तर प्रदेश लेकर जा रहे थे। पुलिस ने उनके खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था। नाजिम ने पहले सेशन कोर्ट और फिर हाई कोर्ट में जमानत की कोशिश की थी, पर उसे दोनों ही जगह सफलता नहीं मिली थी, यहां राजस्‍थान पुलिस ने बहुत ही संवेदनशील एवं साक्ष्‍यों के आधार पर बहुत अच्‍छा काम किया, जिसके चलते जज को भी अपना निर्णय इस गौ तस्‍कर के विरोध में सुनाना पड़ा था और उसे इस मामले में दोनों जगह में से किसी एक में भी कोई राहत नहीं मिली थी। इसके बाद यह आरोपित जमानत के लिए उच्‍चतम न्‍यायालय का रुख करता है, अब वहां भी इसकी जमानत नहीं हो पाती यदि राजस्‍थान की ओर से यहां कोई वकील जिरह के लिए उपलब्‍ध होता! जो नहीं हुआ।

इस संबंध में जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा, वह बहुत सोचने लायक और ऐसे विषयों पर गंभीर रहने के लिए प्रेरित करता है। उच्‍चतम न्‍यायालय का कहना था कि दिनांक 8 अक्टूबर 2024 को राज्य सरकार को नोटिस दिया गया था, किंतु इस मामले में सरकार की ओर से किसी ने केस का प्रतिनिधित्व नहीं किया। जिसके कारण उक्‍त आरोपित के पुराने आपराधिक रिकॉर्ड भी उच्‍चतम न्‍यायालय में प्रस्तुत नहीं किए जा सके और नाजिम खान इस केस के साथ पूर्व में भी इसी प्रकार के कृत्‍यों में संलग्‍न रहने का अपराधी, हजारों गायों के कत्‍लेआम में जिसकी भूमिका अब तक रही हो, सामने आती रही, वह साक्ष्‍य के अभाव में छोड़ दिया जाता है। अब न जाने ऐसे कितने आरोपित होंगे जो इसी तरह कानून का लाभ उठाते होंगे।

वास्तव में यह राजस्‍थान सरकार के लिए बहुत सोचनीय विषय है कि जिसे राज्‍य में जमानत नहीं मिली, उस अपराधी को उच्‍चतम न्‍यायालय से इ‍सलिए जमानत मिल जाती है, क्‍योंकि वहां राज्‍य का कोई प्रतिनिधि नहीं होता। यह अच्‍छी बात है कि सरकार ने गौ माता को उसके संबोधन में सम्‍मान रखने के लिए तत्‍परता दिखाई है लेकिन इससे अधिक जरूरी आज यह लगता है कि जो गौ हत्‍या करता और उन्‍हें कटने के लिए बेचता है, वह किसी भी हालत में कानून की सख्‍त कार्रवाई से नहीं बचना चाहिए। आगे राज्‍य सरकार ऐसे मामलों में संवेदनशील रहते हुए गंभीरता दिखाएगी, यही आशा है ।