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भारत ने दिया पाकिस्तान को करार जवाब

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संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान को भारत का करार जवाब

-शहबाज शरीफ को जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाने पर कड़ी फटकार

-तीखी प्रतिक्रिया,यूएन में ‘जवाब देने के अधिकार’ का इस्तेमाल किया

-भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद का परिणाम भुगतना पड़ेगा

-ओसामा की दी पनाह, दुनियाभर में आतंकवादी घटनाओं में हाथ

न्यूयॉर्क, 28 सितंबर। भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र की आम बहस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाने पर करारा जवाब दिया है। भारत ने इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए अपने ‘जवाब देने के अधिकार’ का शुक्रवार को इस्तेमाल किया। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में प्रथम सचिव भाविका मंगलानंदन ने भारत के जवाब देने के अधिकार के तहत प्रतिक्रिया दी।

उन्होंने कहा, ” यह महासभा आज सुबह खेदजनक रूप से हास्यास्पद घटना की गवाह बनी। आतंकवाद, मादक पदार्थ के कारोबार और अंतरराष्ट्रीय अपराध के लिए दुनियाभर में पहचाने जाने वाले एवं सेना से संचालित एक देश ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र पर हमला करने का दुस्साहस किया। दुनिया जानती है कि पाकिस्तान अपने पड़ोसियों के खिलाफ हथियार के तौर पर सीमा पार आतंकवाद का लंबे समय से इस्तेमाल करता रहा है।”

भारतीय राजनयिक भाविका मंगलानंदन ने जवाब में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों के भारतीय संसद पर 2001 के हमले और मुंबई के 26/11 आतंकी हमलों का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ”उसने हमारी संसद, हमारी वित्तीय राजधानी मुंबई, बाजार तथा तीर्थस्थलों पर हमला किया है। यह सूची लंबी है। ऐसे देश का हिंसा के बारे में कहीं भी बोलना पूरी तरह पाखंड है।”

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ ने कहा था कि स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए भारत को अनुच्छेद 370 को बहाल करना होगा और जम्मू-कश्मीर के मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए बातचीत शुरू करनी होगी। इस पर भाविका मंगलानंदन ने कहा कि भारत आपसी ”सामरिक व्यवस्था” के उनके देश के प्रस्ताव को ठुकरा चुका है। भारत कह चुका है कि आतंकवाद के साथ किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं हो सकता। बल्कि पाकिस्तान को यह पता होना चाहिए कि भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद के अनिवार्य रूप से परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

मंगलानंदन ने वैश्विक समुदाय को स्मरण कराया कि यह वही देश है जिसने लंबे समय तक अल-कायदा नेता ओसामा बिन लादेन को पनाह दी। दुनियाभर में कई आतंकवादी घटनाओं में पाकिस्तान का हाथ है। भारतीय राजनयिक ने कहा, इसमें किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि उसके (पाकिस्तान के) प्रधानमंत्री इस प्रतिष्ठित मंच में ऐसा बोलेंगे। बावजूद इसके हमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि उनके शब्द हम सभी के लिए कितने अस्वीकार्य हैं। हम जानते हैं कि पाकिस्तान सच्चाई का सामना और अधिक झूठ से करना चाहेगा। बार-बार झूठ बोलने से कुछ नहीं बदलेगा। भारत का रुख स्पष्ट है। उसे दोहराने की जरूरत नहीं है। चुनाव में धांधली के इतिहास वाले देश के लिए एक लोकतंत्र में राजनीतिक विकल्पों के बारे में बात करना अजीब है।

उन्होंने कहा, सच यह है कि पाकिस्तान की नजर हमारे क्षेत्र पर है। उसने भारत के अविभाज्य और अभिन्न अंग जम्मू-कश्मीर में चुनाव को बाधित करने के लिए लगातार आतंकवाद का इस्तेमाल किया है। यह ऐसा देश है जिसने 1971 में नरसंहार किया। अब भी अल्पसंख्यकों पर लगातार अत्याचार करता है। अब वह असहिष्णुता और भय के बारे में बोलने की हिमाकत करता है। यह हास्यास्पद है। पाकिस्तान की असलियत दुनिया जानती है। इसके बाद पाकिस्तान के एक राजनयिक ने जवाब देने के अधिकार के तहत मंगलानंदन के बयान पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने भारत के दावे को निराधार और भ्रामक बताया। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के नेता हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा में जम्मू-कश्मीर का राग अलापते हैं।

शरीफ ने कहा था…

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अपने संबोधन में जम्मू कश्मीर का मुद्दा उठाने के साथ ही अनुच्छेद 370 और आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी का संदर्भ दिया था। उन्होंने कहा था कि फिलस्तीन के लोगों की ही तरह जम्मू-कश्मीर के लोगों ने भी अपनी आजादी और आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए एक सदी तक संघर्ष किया है। भारत को अगस्त 2019 के एकतरफा और अवैध कदमों को वापस लेना होगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा प्रस्तावों और कश्मीरी लोगों की इच्छाओं के अनुरूप जम्मू-कश्मीर के मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए बातचीत शुरू करनी होगी।

तुर्किये ने नहीं किया कश्मीर का जिक्र

तुर्किये के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोआन ने साल 2019 में अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के बाद से पहली बार इस साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबंधोन में कश्मीर का जिक्र नहीं किया। लगभग 35 मिनट के संबोधन में उन्होंने गाजा की मानवीय स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया। एर्दोआन के कश्मीर का उल्लेख न करने को तुर्किये के रुख में आए स्पष्ट बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इस समय तुर्किये भारत की सदस्यता वाले ब्रिक्स समूह में शामिल होने की कोशिश कर रहा है। इस पर पाकिस्तान की पूर्व राजनयिक और संयुक्त राष्ट्र में देश की राजदूत रह चुकीं मलीहा लोधी ने एक्स पर लिखा, ” एर्दोआन ने पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर का जिक्र नहीं किया। उन्होंने 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 में कश्मीर का उल्लेख किया था।”