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 बढ़ रहा स्वर्ण ऋण का चलन

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इसलिए बढ़ रहा स्वर्ण ऋण का चलन

किसी भी देश के आर्थिक विकास को गति देने में पूंजी की आवश्यकता रहती है। तेज आर्थिक विकास के चलते यदि किसी देश में वित्तीय बचत की दर कम हो तो उसकी पूर्ति ऋण में बढ़ोतरी से की जा सकती है। भारत में ऋण सकल घरेलू अनुपात अन्य विकसित एवं कुछ विकासशील देशों की तुलना में अभी बहुत कम है। परंतु, हाल ही के समय में भारत का सामान्य नागरिक ऋण के महत्व को समझने लगा है एवं भौतिक संपत्ति के निर्माण में अपनी बचत के साथ साथ ऋण का भी अधिक उपयोग करने लगा है। कुछ बैंक सामान्यजन को ऋण प्रदान करने हेतु प्रतिभूति की मांग करते हैं। भारत में सामान्यजन के पास स्वर्ण के रूप में प्रतिभूति उपलब्ध रहती है अतः स्वर्ण ऋण बहुत अधिक चलन में आ रहा है। विशेष रूप से गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा ऋण की प्रतिभूति के विरुद्ध स्वर्ण ऋण आसानी से उपलब्ध कराया जा रहा है।

भारत में वित्तीय वर्ष 2022-23 की प्रथम तिमाही में विभिन्न गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा 39,687 करोड़ रुपये के स्वर्ण ऋण स्वीकृत किए गए। स्वीकृत की जाने वाली यह राशि वित्तीय वर्ष 2023-24 की प्रथम तिमाही में बढ़कर 62,835 करोड़ रुपये हो गई एवं वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में और आगे बढ़कर 79,218 करोड़ रुपये हो गई। गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा वित्तीय वर्ष 2024-25 की प्रथम तिमाही में स्वर्ण ऋण के मामले में 26 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर हासिल की है जबकि अन्य प्रकार के ऋणों में इसी अवधि के दौरान औसत वृद्धि दर 12 प्रतिशत की रही है। भारतीय नागरिक स्वर्ण ऋण के प्रति बहुत अधिक आकर्षित हो रहे हैं। आज भारत के विभिन्न गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों एवं विभिन्न बैंकों द्वारा भारी मात्रा में स्वर्ण ऋण स्वीकृत किए जा रहे हैं।

अगस्त 2024 में बैंकों एवं गैर बैकिंग वित्तीय कम्पनियों ने मिलकर 41 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करते हुए 1.4 लाख करोड़ रुपये के स्वर्ण ऋण स्वीकृत किए हैं। आज गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के कुल ऋण में स्वर्ण ऋण का प्रतिशत में हिस्सा सबसे अधिक है, दूसरे स्थान पर स्कूटर एवं चार पहिया वाहनों के लिए प्रदान किए गए ऋणों का ऋण हैं, इसके बाद तीसरे स्थान पर व्यक्तिगत ऋण 14 प्रतिशत के भाग के साथ है एवं इसके बाद जाकर गृह ऋण का नम्बर आता है जो कुल ऋण का 10 प्रतिशत भाग है। बैकों एवं गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा प्रदान किए जाने वाले स्वर्ण ऋण पर पूंजी पर्याप्तता सम्बंधी शिथिल नियमों का पालन करना होता है। अन्य प्रकार के ऋणों की तुलना में स्वर्ण ऋण पर जोखिम का भार (रिस्क वेट) तुलनात्मक रूप से कम रहता है। इससे बैंक एवं गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियां भी स्वर्ण ऋण प्रदान करने की ओर आकर्षित होते हैं।

यहां स्वाभाविक रूप से प्रश्न उभरता है कि पिछले लगभग 3 वर्ष के दौरान भारत के नागरिकों में स्वर्ण ऋण के प्रति इतना रुझान क्यों बढ़ा है? भारतीय रिजर्व बैंक के पास स्वर्ण का भंडार बढ़कर 822 मीट्रिक टन से भी अधिक हो गया है परंतु विश्व स्वर्ण काउन्सिल के एक अनुमान के अनुसार, भारतीय नागरिकों के पास स्वर्ण का भंडार बढ़कर 25000 टन से भी अधिक है। इसकी बाजार कीमत वर्ष 2020 में 109 लाख करोड़ रुपये थी। भारत में नागरिकों के पास स्वर्ण भंडार विश्व के कुल स्वर्ण भंडार का 11 प्रतिशत है। भारत में प्रतिवर्ष 750 से 800 टन स्वर्ण का आयात होता है और पिछले 25 वर्ष के दौरान भारत में 17,500 टन स्वर्ण का आयात हुआ है और मार्च 2019 से मार्च 2024 के दौरान भारत में स्वर्ण भंडार 40 प्रतिशत बढ़ गया है।

दरअसल, भारत में दीपावली (धनतेरस) के शुभ अवसर पर स्वर्ण की खरीद को शुभ माना जाता है एवं मध्यमवर्गीय परिवार भी धनतेरस के दिन स्वर्ण की खरीद प्रति वर्ष करते हैं। इससे भारत के करोड़ों परिवारों के पास स्वर्ण का स्टॉक उपलब्ध रहता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों द्वारा स्वर्ण ऋण प्रदान करने के सम्बंध में नियमों को बहुत सरल बनाया है एवं अब भारतीय नागरिकों को स्वर्ण के स्टॉक के विरुद्ध ऋण बहुत ही आसान शर्तों पर उपलब्ध होने लगा है। भारत में प्रचिलित परम्पराओं के अनुसार मध्यमवर्गीय परिवारों द्वारा स्वर्ण को बेचना शुभ नहीं माना जाता है जबकि स्वर्ण की खरीद को शुभ माना जाता है। अतः स्वर्ण को बाजार में बेचने के स्थान पर स्वर्ण को बैंक में गिरवी रखकर उसके विरुद्ध बैंक से आसानी से स्वर्ण ऋण प्राप्त करना ज्यादा उचित माना जाता है।

हाल के वर्षों में भारतीय शेयर बाजार बहुत ही तेज गति से आगे बढ़ रहा है और विभिन्न कम्पनियों के शेयरों में किए गए निवेश पर 12 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक की आय प्रतिवर्ष होने लगी है। इससे बहुत बड़ी मात्रा में भारतीय नागरिक (खुदरा निवेशक) शेयर बाजार में निवेश करने हेतु आकर्षित हुए हैं। चूंकि स्वर्ण ऋण बहुत ही आसानी से उपलब्ध होने लगे हैं अतः मध्यमवर्गीय परिवार स्वर्ण ऋण लेकर पूंजी बाजार में निवेश अथवा चार पहिया वाहन खरीदने एवं गृहों का निर्माण करने लगे हैं। स्वर्ण ऋण की राशि आसान किश्तों में जमा करानी होती है, अतः स्वर्ण लेने वाले नागरिकों पर कोई बहुत अधिक दबाव भी नहीं पड़ता है। उक्त कारणों के चलते भारत में हाल ही वर्षों में स्वर्ण ऋण प्राप्त करने वाले नागरिकों में अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है।

चूंकि बैंकों एवं गैर गैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा प्रदान किया जा रहे स्वर्ण ऋण में वृद्धि दर अतुलनीय रही है अतः भारतीय रिजर्व बैंक ने स्वर्ण ऋण स्वीकृति करने सम्बंधी नियमों के कठोर अनुपालन के लिए गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों को हाल ही में चेताया है ताकि इन बैंकों द्वारा स्वर्ण ऋण स्वीकृत करने में किसी भी प्रकार की ढील नहीं दी जा सके तथा स्वर्ण ऋण के खाते गैर निष्पादनकारी आस्तियों (एनपीए) में परिवर्तित नहीं हों। यदि बैंकों एवं गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा स्वर्ण ऋण सम्बंधी नियमों का अनुपालन अक्षरश: किया जाता है तो स्वर्ण ऋण खाते का गैर निष्पादनकारी आस्ति में परिवर्तितत होना सम्भव नहीं है। हां, यदि असली स्वर्ण के स्थान पर नकली स्वर्ण के विरुद्ध ऋण स्वीकृत किया जाता है तो स्वर्ण ऋण खाते की गैर निष्पादनकारी आस्ति में परिवर्तित होने की सम्भावना बन जाती है। इसलिए स्वर्ण ऋण प्रदान करते समय बैंकों को ऋण असली है इसकी पक्की जानकारी होना आवश्यक है। इसके लिए स्वर्ण की जांच पुख्ता तरीके से की जानी चाहिए।