Home राष्ट्रीय बकस्वाहा जंगल: मसला पहुंचा देश की सबसे बड़ी अदालत

बकस्वाहा जंगल: मसला पहुंचा देश की सबसे बड़ी अदालत

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समस्या टीम

जंगल कटवाएंगे हुक्मरान! 62.5 हेक्टेयर खोदकर किया जाएगा पाताल। यही नहीं लाखों चिड़ियां पंक्षी, कई हजार जानवरों के आषियाने भी उजाड़े जाएंगे। एक बिड़ला साहब ने निर्वस्त्र आबादी को कपड़े पहनाये, सारा देष पूजता था, दूसरे बिड़ला साहब सांसे छींनने पर आमादा। खैर एक तरफ सांसों के लिए मारामारी, सारी दुनिया से भीख आ रही, दूसरी तरफ जंगल बर्बाद करने के लिए हेराफेरी करके की जा रही कागजी खानापूर्ति। यूं तो 392 हेक्टेयर बक्सवाहा जंगल खत्म कराने के लिए एस्सेल माइनिंग समूह मतलब बिरला ग्रुप को ठेकेदारी दी गई है, मगर इसके लिए वन अफसरों को कितनी असत्य रिपोर्टे बनानी पड़ रही, कितनी तरह की हेराफेरी करनी पड़ रहीं, यह देखने समझने वाले मतलब षासन अथवा मंत्रालय जैसे हैं ही नहीं, पढ़कर तो अजीब लगेगा मगर इसी बक्सवाहा जंगल की पूर्व जांच रिपोर्ट और आदित्य बिरला गु्रप के लिए हेराफेरी करके बनाई गई मौजूदा रिपोर्ट भी मिलाने वालो ने जैसे आंखे ही बंद कर लीं। यूं तो बक्सवाहा क्षेत्र अतिदोहित एरिया है, बूंद बूंद पानी के लिए स्वयं बक्सवाहा गांव में न जाने कबसे मारामारी चीख पुकार उठती आ रही, मगर हीरे के लिए 60 एकड़ से ज्यादा जमीन पाताल करने, उससे भी न जाने कितनी गहराई का भूजल सुखाने, 2 लाख से ज्यादा पेड़ कटवाने, जंगल की जमीन 50 साल के लिए खनन माफिया को सौंपने में अफसर और षासक को षायद इसलिए कुछ नहीं दिख रहा, क्योंकि देष को बड़ा खजाना मिलने की संभावना है। फिलहाल हीरों के लिए अब पेड़ो की बलि देना आसान नहीं होगा, क्योंकि यह मसला अब देष की सबसे बड़ी अदालत में पहुंच चुका है। समाजसेविका नेहा सिंह ने अपने वकील प्रीति सिंह और संकलन पोरवाल के माध्यम से 09 अप्रैल 2021 के दिन सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है, जिसमें स्पश्ट लिखा गया है कि हीरों के लिये हम अपने जीवन दायी लाखों पेड़ों की बलि नहीं दे सकते। लाखों पेड़ कटने से पर्यावरण को अपूर्णनीय क्षति होगी, हम एक भी पेड़ नहीं कटने देंगे। उन्होने हीरा खनन के लिये आादित्य बिड़ला गु्रप को दी जा रही लीज निरस्त करने की मांग की है। उन्होने याचिका में स्पश्ट किया है कि हीरा खनन हो लेकिन एक भी पेड़ न काटा जाए, इस बड़े जंगल में रहने वाले वन्य प्राणियों को किंचित मात्र भी क्षति नहीं पहुंचनी चाहिए। इसके साथ ही याचिका में उल्लेख किया गया है कि जिस क्षेत्र को हीरा खनन के लिये अनुमति दी गई है, वह न्यूनजल क्षेत्र है। इसे पानी के लिहाज से डार्क एरिया, अतिदोहित क्षेत्र माना गया है। यह क्षेत्र पहले से ही कम पानी वाला है।
कंपनी के कार्य के लिये बड़ी मात्रा में इसी क्षेत्र से पानी का दोहन किया जाएगा। इससे पूरा क्षेत्र ड्ाई हो जाएगा। परिणाम स्वरूप आसपास का जलस्तर प्रभावित होगा। वन्य प्राणी प्यासे मर जाएंगे। इन सब तथ्यों को देखते हुए कंपनी का अनुबंध निरस्त किया जाए। समाजसेविका नेहा सिंह ने बताया कि उन्होंने एनजीटी भोपाल में भी याचिका दायर की थी, लेकिन लाॅकडाउन में तकनीकी कारण के चलते वह लग नहीं पाई। इसके बाद उन्होने सुप्रीम कोर्ट में याचिका पेष कर दी है। बता दें कि इस एरिया में 40 हजार पेड़ सागौन के हैं, इसके अलावा केम, पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे औशधीय पेड़ भी बड़ी संख्या में है। मप्र सरकार द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक छतरपुर जिले के बकस्वाहा के जंगल में 3.42 करोड़ कैरेट के हीरों का भंडार दबा हुआ है। इन हीरों को निकालने के लिये सरकार द्वारा आदित्य बिड़ला गु्रप को लीज दी जा रही है। हीरा खदान के 62 हैक्टेयर जंगल चिन्हित है, जबकि हीरा प्रोजेक्ट के लिये 382 हेक्टेयर जंगल को लिया गया है। इस विषाल क्षेत्र में लगे लाखों हरे भरे पेड़ काटे जाने की तैयारी की जा रही है। बता दें कि हीरों के लिये देष में मषहूर पन्ना की मझगवां खदान में 22 लाख कैरेट हीरें हैं, जबकि बकस्वाहा की जमीन में उससे 15 गुना ज्यादा हीरें हैं।

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