शैलेश सिंह
बिना ढूंढ़े मिल गयी सरस्वती, सदियों खोज की, ज्ञान-विज्ञान सब फेल हो गया, मगर आई तो बिना बताये जमीन पर बहने लगी। अगर लिखें कि 28-29 दिसम्बर आजाद भारत का शुभ दिन रहा, तो बिल्कुल सही हैै। पहले तो सरस्वती नदी मिली, फिर ऐसी जगह मिली जहां पानी का अकाल है, धार भी ऐसी कि 4 से 6 फीट ऊंची, और चैड़ाई ऐसी, जैसे गंगा या यमुना बह निकली। मित्रो! जैसलमेर के मोहनगढ़ नहरी क्षेत्र में पानी की नदी उस समय बह निकली, जब वहां ट्यूबवेल खोदने के लिए ट्रक लगाया गया, मगर यह क्या हुआ कि कुछ ही समय बाद ना मोटी मोटी पाईपें मिलीं, ना ट्रक। सब जमीन में समा गया, और पाताल से निकली तो पानी की ऐसी धार कि रूकने का नाम ही नहीं ले रही। फिलहाल एक तरफ अफसरी ने यहां आधे से एक किमी. के दायरे में आने-जाने पर रोक लगायी, दूसरी तरफ भोैचक्की भीड़ वहां जाने-देखने-घुसने से रोके नहीं रूक रही। फिलहाल ट्यूबवेल की खुदाई करने वाले कर्मचारी हों या ग्रामीण, वहां से भाग गये। लगभग 800 से 900 फीट गहरी बोरिंग होने के बाद अब वहां सिर्फ पानी कहें या नदी बहती दिखने के अलावा, दूर-दूर तक कुछ नहीं दिखायी दे रहा। फिलहाल विज्ञान ने अपना चलन शुरू किया है, कारण खोजने की बात कह रहे हैं, पानी के साथ, बिना जोखिम वाली गैस भी निकलने की बात कही जा रही।