जनजातीय गौरव को बढ़ाने के साथ जनजातीय समुदाय के उत्थान के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने उल्लेखनीय कदम उठाए हैं। विगत 20 वर्षों में जनजातीय योजनाओं का बजट 1000 प्रतिशत बढ़ा है। मध्यप्रदेश पहला राज्य है, जहाँ जनजातीय समुदाय के आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण के लिए पेसा कानून को लागू किया गया है। मध्य प्रदेश की सरकार ने जनजातीय नायकों का गौरव बढ़ाने के लिए उनसे जुड़े स्मारकों का आगे बढ़कर विकास किया है। राजा शंकरशाह और रघुनाथ शाह, रानी कमलापति, रानी दुर्गावती, टंट्या मामा और भीमा नायक से लेकर कई नायकों के योगदान से लोगों को परिचित कराने के उल्लेखनीय कार्य किए हैं। मंडला के मेडिकल कॉलेज का नाम बलिदानी हृदयशाह के नाम पर किया गया। वहीं, छिंडवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम ‘राजा शंकरशाह विश्वविद्यालय’ किया। हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर ‘रानी कमलापति रेलवे स्टेशन’ किया गया। जबलपुर में 100 करोड़ की लागत से ‘रानी दुर्गावती स्मारक’ को विकसित किया जा रहा है।
मध्य प्रदेश के बजट का अध्ययन करें तो ध्यान आएगा कि 2003-04 में जनजातीय कार्य विभाग का बजट 746.60 करोड़ रुपये था। जनजातीय समुदाय के उत्थान के लिए संचालित योजनाओं को बजट की कमी का सामना न करना पड़े, इसके लिए भाजपा सरकार ने सबसे पहला काम यही किया कि जनजातीय कार्य विभाग के बजट में लगातार बढ़ोतरी की। वर्ष 2003-04 के मुकाबले वर्ष 2023-24 में जनजातीय कार्य विभाग का बजट 1000 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 11,768 करोड़ रुपये का हो गया है। इस बजट का उपयोग जनजातीय वर्गों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, रोजगार एवं अन्य बुनियादी व्यवस्थाओं के साथ विकास कार्यों को गति देने में किया गया है। विद्यार्थियों को शिक्षा के समुचित अवसर एवं आर्थिक सहयोग के साथ ही सरकार की ओर से रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण भी दिलाया जा रहा है। कम्प्युटर कौशल सिखाने के साथ जनजातीय युवाओं को पुलिस और सेना में भर्ती का प्रशिक्षण देने का काम भी मध्य प्रदेश में किया जा रहा है। जनजातीय वर्गों के उत्थान एवं सशक्तिकरण के लिए आहार अनुदान योजना, सिकल सेल उन्मूलन मिशन, मुख्यमंत्री राशन आपके द्वार ग्राम, देवारण्य, अनुसूचित जनजाति ऋण विमुक्ति अधिनियम-2020, मिलेट मिशन, प्रधानमंत्री वन-धन योजना, आकांक्षा योजना, प्रतिभा योजना, आवास सहायता योजना, विदेश अध्ययन छात्रवृत्ति, प्री एवं पोस्ट मेट्रिक छात्रवृत्ति, अखिल भारतीय सेवाओं के लिए कोचिंग एवं प्रोत्साहन तथा जनजातीय लोक कलाकृतियों एवं उत्पादों की जीआई टैगिंग जैसे कदम मध्य प्रदेश में उठाए गए हैं।
जनजातीय गौरव दिवस पर यह अवश्य याद रखना चाहिए कि अभारतीय ताकतों ने अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के अंतर्गत जनजातीय समुदाय को भ्रमित करने के लिए 9 अगस्त को ‘वर्ल्ड इंडिजिनियस पीपल्स डे’ को ‘आदिवासी दिवस’ कहकर भारत में बढ़ावा दिया, जबकि इस दिन का भारत और जनजातीय गौरव के साथ कोई संबंध नहीं है। वास्तव में यह तो दु:खद त्रासदी की शुरुआत का दिन है। ब्रिटिश सेना ने अमेरिका के मूल निवासियों का नरसंहार किया। बाद में, उसके अपराध बोध से मुक्त होने के लिए ‘वर्ल्ड इंडिजिनियस पीपुल्स डे’ (International Day of the World’s Indigenous Peoples) के रूप में 9 अगस्त को चुना गया। यहाँ यह भी ध्यान रखें कि वैश्विक षड्यंत्र के अंतर्गत ही ‘वर्ल्ड इंडिजिनियस पीपल्स डे’ का अनुवाद ‘विश्व आदिवासी दिवस’ के रूप में किया गया है। वास्तविकता यह है कि संयुक्त राष्ट्र ने अब तक ‘इंडिजिनियस पीपुल’ (indigenous people) की स्पष्ट परिभाषा तक नहीं की है। यही कारण है कि जब 1989 में विश्व मजदूर संगठन द्वारा ‘राइट्स ऑफ इंडिजिनस पीपल’ कन्वेन्शन क्रमांक-169 घोषित किया गया, तब उसे विश्व के 189 में से केवल 22 देशों ने ही स्वीकार किया। इसका मुख्य कारण ‘इंडिजिनस पीपल’ शब्द की परिभाषा को स्पष्ट नहीं करना ही था।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने भारत माता के महान बेटे बिरसा मुंडा की जयंती (15 नवंबर) को ‘जनजाति गौरव दिवस’ के रूप में मान्यता देकर प्रशंसनीय कार्य किया। जनजाति वर्ग के इस बेटे ने भारत की सांस्कृतिक एवं भौगोलिक स्वतंत्रता के लिए महान संघर्ष किया और बलिदान दिया। अपनी धरती की रक्षा के लिए उन्होंने विदेशी ताकतों के साथ जिस ढंग से संघर्ष किया, उसके कारण समूचा जनजाति समाज उन्हें अपना भगवान मानने लगा। उन्हें ‘धरती आबा’ कहा गया। भगवान बिरसा मुंडा न केवल भारतीय जनजाति समुदाय के प्रेरणास्रोत हैं बल्कि उनका व्यक्तित्व सबको गौरव की अनुभूति कराता है। इसलिए उनकी जयंती सही मायने में ‘गौरव दिवस’ है। जिस प्रकार भगवान बिरसा मुंडा ने विदेशी ताकतों के षड्यंत्रों से भारत को बचाया, उसी प्रकार उनकी स्मृति में मनाया जाने वाला जनजातीय गौरव दिवस भी हमें वर्तमान में चल रही साजिशों से बचाएगा और भारत के ‘स्व’ की स्थापना की प्रेरणा देगा।