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खारी बावली है या मगरमच्छ का मुंह

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मेवा बाजार को बदबूदार बनाने वाले अफसर, नेताओं पर फंड गबन का मामला क्यों नहीं चलना चाहिए। आखिर ऐसे बेलगाम अफसर, नेताओं के लिए कानून अलग क्यों है?

विधायक, चेयरमैन जल बोर्ड की दिमागी हरकतें संकट बन गयी दिल्ली की सेहत पर

(राष्ट्रीय समस्या टीम)

दिल्ली। खारी बावली है या मगरमच्छ का मुंह! तो क्या 300 करोड़ टैक्स देने वाला मेवा बाजार अकेला मगरमच्छ का मुंह है! तो जवाब है कि जब 4900 करोड़ टैक्स देने वाली पूरी दिल्ली ताल-तलैया है, खारी बावली तो सिर्फ 300 करोड़ ही देती है, इसमें तो एक के साथ एक बोतल मुफ्त में भी नहीं बट पायेगी। मित्रों हम अपने हिसाब से कहें तो खाली बावली ने 300 करोड़ दिये, क्या किया? अफसरों का जवाब है कि एक के साथ एक फ्री बांट दी। खारी बावली बोली अब पेशाब करने कहां जाये, अफसर बोले पानी पीना ही बंद कर दो, ये दशा है खारी बावली और अफसर, नेताओं के कारनामों की। इसीलिए खारी बावली है या मगरमच्छ का मुंह, अगर नहीं तो देश भर से आयात-निर्यात करने वाला बाजार आखिर क्यों डराने लगा। जो बाजार हमारी देश से ज्यादा विदेशों में चर्चित है, वही खारी बावली आज शारीरिक, आर्थिक और मानसिक, तीनों तरह से सताने लगी है। शारीरिक नुकसान यह कि ना जाना सुरक्षित, ना वापस लौटना सुरक्षित बचा, ना जानें कब हाथ पैर टूट जायें, यह जिन पर बीतती है वही जानते हैं। मानसिक दुख यह कि घंटा-आधा घंटा भी फंस गये तो शौचालय ना होने की पीड़ा दिमाग में खुजली करने लगती है, ऐसे में कोई शुगर मरीज अथवा भूलकर भी महिलायें पहुंच जायें तो पेट दबा कर भागते बनती हैं। आर्थिक नुकसान ये कि सैकड़ों में ठेलियां पलट जाती हैं, टनों में माल भीग जाता है, करोड़ों का नुकसान होता है, इसके बाद भी चिल्लाना मना है, क्योंकि केजरीवाल कुनवा की दिमागी हरकतें संकट बन गयी दिल्ली की सेहत पर, कितनी भी मुसीबत हो, सुनने वाला कोई नहीं। इसलिए आसान हो गया कहना कि खारी बावली को मगरमच्छ का मुंह बनाने में हुक्मरान और अफसरी, दोनों ने कसर नहीं छोड़ी।

इसीलिए खारी बावली ना मगरमच्छ का मुंह है, ना सुरसा का फन! सच यह कि 300 करोड़ टैक्स देने वाली खारी बावली को कटोरा देने पर तुली है नौकरशाही। मगर सवाल यह कि एशिया का चर्चित बाजार आखिर नौकरशाही अकेले कटोरा छाप कैसे बना सकती है, तो क्या चर्चित बाजार को बदबूदार बनाने पार्षद, विधायक और सांसद भी मिले हुये हैं? जवाब है हां और सिर्फ हां। मगर सवाल है कि क्या खारी बावली अकेली नर्क है या 4900 करोड़ टैक्स भरने वाली पूरी दिल्ली ताल-तलैया है? जी हां। खारी बावली भी नर्क बना दी, पूरी दिल्ली ताल-तलैया बना दी और इससे भी आगे लिखें तो केजरीवाल की पल्टन ने पूरे सिस्टम को तमाशा बनाया, अगर कहें कि नियम शर्तों को जेब में डाले टहल रहे जेब विकास अधिकारी, तो बिल्कुल गलत नहीं है।

मित्रों! बचपन सहित लिखूं तो 155 साला, अगर जवानी से लिखूं तो 62 साला खारी बावली, जो अपने देश में कम और विदेशी मेहमानों में ज्यादा चर्चित है, उसी बाजार को मात्र आठ लोग ने कटोरा पकड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

तो आइये हम समझाते हैं, उन नौ लोगों के बारे में जिन्होने ताकतवर मेवा बाजार को भी टीबी का मरीज बना दिया है। मगर कौन हैं वो नौ लोग, तो उनमें पांच नेता जिन्हें पार्षद, विधायक, सांसद, चेयरमैन तथा वाइस चेयरमैन दिल्ली जल बोर्ड के रूप में जानते हैं। नाम से बतायें तो पूरनदीप सिंह साहनी पुत्र प्रहलाद सिंह साहनी, पार्षद। प्रहलाद सिंह साहनी, विधायक। प्रवीण कुमार खण्डेलवाल, सांसद। डीजेबी चेयरमैन मनीश सिसोदिया, आतिशी मर्लेना, वाइस चेयरमैन सोमनाथ भारती और सौरभ। अन्य चार लोगों में ए0 अनवारासू चीफ इंजीनियर दिल्ली जल बोर्ड, कमिश्नर नगर निगम, डीएम, अभियंता पीडब्ल्यूडी में किसका गुनाह कम और कौन सरगना है, ये मैं आपको नियमानुसार इनके काम और इनके द्वारा खर्च किया जाने वाला धन के हिसाब से समझाता हूं।

ना मोदी जी ने रोका, ना गाइडलाइन में इजाजत है। फिर सांसद खण्डेलवाल को वायदा-खिलाफी का अधिकार किसने दिया! खारी बावली जैसे चर्चित बाजार में ना सड़कें, ना गलियां, ना मजबूत ड्रेनेज, ना सीवेज, शौचालय का नाम निशान नहीं। अगर फंड खर्चने में, काम करने में मन नहीं लगता है, तो विचलित व्यापारी और कराहतें मजदूरों की चीख पुकार तो सुनी ही जा सकती थी, क्षेत्र में आकर झूठी शान्त्वना तो दी ही जा सकती है। जो मनमानी पिछली बार की गई, जिसने मोदी जैसे विश्व पसंदीदा को 2024 में झकझोर डाला, वहीं नाइंसाफी खण्डेलवाल फिर दोहराने लगे। मगर सवाल यह कि आधुनिक दौर में वो भी राजधानी के दिल में वायदा-खिलाफी ज्यादा दिन, ज्यादा सस्ती बनी रहे, इसका दिमागी आंकलन भारी पड़ सकता है।