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कोरोना से डरे सहमे हो? अब अस्पताली कचरे पर सिर पटको

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शैलेश सिंह

कोरोना से डरे सहमे हो? कोई बात नहीं अब अस्पताली कचरे पर सिर पटको। घरों में हो? अच्छा है क्योंकि न दिखने वाली महामारी मतलब कोरोना के पैर भी नहीं हैं लिहाजा सुरक्षित हो, मगर अस्पताली कचरा तो बहुरूपिया है, इसके तो पाताल से लेकर आसमान तक डंक हैं, लिहाजा घरों में भी मार डालेगा। अब आप समझ गए होंगे कि देश का सामना अब और कितनी बड़ी महामारी से होने वाला है खैर ऐसा गंभीर संक्रमण बांटने वाले अस्पतालों पर देश भर के डाक्टर मौनी बाबा बने हैं, यह समझना तो आसान है क्योंकि धरती के भगवान कहे जाने वालों का असली रूप कुछ और ही हो गया मतलब व्यवसायी हैं मगर इस मौत पर देश के दोंनो मंत्रालय आपातकाल में भी मुंह पर टेप और आंखों में पट्टी बांधे हैं, लिहाजा आसान है कहना कि न देश से मोहब्बत, न इंसानी सेहत से प्यार! अगर कहें कि अंधेरपुर में चैपट सिंह तिलकधारी हैं तो 100 फीसदी सच है, फिलहाल हम आपको बता दें कि भले ही देश गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा, भले ही सिस्टम, सरकार अपने चलन से बाहर नहीं आ पा रही मगर अब इस बड़ी चुनौती से बचाने के लिए एनजीटी ने अपने दरवाजे खोल दिए हैं, बिना किसी शिकायत के ही अस्पताली कचरे की दुर्दशा पर अदालत 21 अप्रैल के दिन सुनवाई करेगी, यह देश भर के लिए अच्छी खबर है। फिलहाल हम आपको बता दें कि एक तरफ कोरोना जैसी महामारी पर सिस्टम, सरकार अपना दम खम लगा रही है, देश भर में आइसोलेशन वार्ड, कलेक्शन सेंटर, टेस्टिग लैब, क्वारंटीन सेंटर और होम क्वारंटीन आदि कई तरह से काम कर रही है, दूसरी तरफ अस्पतालों से निकलने वाले कई तरह के कचरे के निस्तारण पर सिस्टम सरकार आज भी अंजाम है, फिलहाल हम आपको बता दें कि कोरोना से निपटने के लिए ग्लब्स, मास्क, हैंडवाश, सेनीटाइजर, बाॅटल्स, टोपी, सीरिंज, दवाइयां, टिशू, ड्ेस, कवर्स, ये सब घातक मेडिकल वेस्ट हैं मगर इससे भी ज्यादा खतरनाक वह वेस्ट हैं जो मरीजों को टेस्ट करने के लिए उनके नाक, गला आदि से निकाला जाता है, फिलहाल हम आपको बता दें कि कहना आसान है, सुनना भी आसान है कि कोरोना संदिग्ध और कोरोना मरीजों का टेस्ट हो रहा है मगर इस प्रक्रिया की वजह से देश भर में निकलने वाला 20 से 30 टन बाओ मेडिकल वेस्ट व हर्जाड्स वेस्ट इंसानी सेहत पर और बड़ा संकट बनने वाला है, अब आप सोच रहे होंगे कि कोरोना जैसी महामारी से भारत देश जीतने वाला है तो अस्पताली कचरा हमारे लिए क्यों संकट बनने वाला है? तो आप स्पष्ट समझिए कि बीमारी से निपटना तो आम इंसान से लेकर सिस्टम तक सभी को पता है मगर दूसरी मौत मतलब अस्पताली कचरे से निपटना सिर्फ सिस्टम, सरकार और इसे देने वाले व्यवसायी ही जानते हैं जो तीनों ही सोये पड़े हैं। यही नहीं एक तरफ डाक्टर, स्वास्थ्य कर्मचारी, सफाई कर्मी आदि की सुरक्षा के लिए पीपीई किट की उपलब्धता चुनौती बना हुआ है दूसरी तरफ सरकार की नाकामी का फायदा कुछ कबाड़ी, कुछ दर्जी आदि उठा रहे हैं। अगर शुद्ध भाषा में समझाए तो पीपीई किट क्या हुई पहलवानी का लघोंट हो गया, और इसे बनाने वाले कुछ दर्जी जैसे मनोज मेरठ से जो बैंडमिंटन कवर से बनाते बेचते मिले, आलम सीलमपुर से कोट कवर से बनाते मिले, समीर दिल्ली से सूटकेस बनाने वाले पीपीई किट बनाते मिले मतलब पजामा सिलने वाले, सूटकेस सिलने वाले पीपीई किट बना भी रहे हैं और धड़ल्ले से बेच भी रहे हैं। यही नहीं सिस्टम की नाकामी का फायदा किस तरह उठाया जा रहा तो इसके लिए सिर्फ एक आदमी एक लाख मास्क को सुखाते हुए ठाणे में 10 से 12 मार्च के बीच पकड़ा गया जो इन मास्क को दुबारा से बेचने की फिराक में था, इसी तरह पुणे में एक कबाड़ी 20 से 23 मार्च के बीच पकड़ा गया जो 2000 तक ऐसे मास्क के साथ धरा गया जो क्वारंटीन लोंगो द्वारा इस्तेमाल करके फेके गए थे, इसी तरह दिल्ली के शरण बिहार एरिया में कूड़े के ढेर पर मास्क, टोपी, सीरिंज आदि मिले। यूं तो देश भर में सरकारी व निजी मिलाकर 2 लाख 38 हजार 259 स्वास्थ्य केन्द्र हैं जिनसे 559 टन सालाना बाओ मेडिकल वेस्ट निकलता है, इसी तरह अस्पताली कचरे का निस्तारण करने के लिए 198 निस्तारण प्लांट हैं मगर इनमें 1 लाख 53 हजार 454 स्वास्थ्य केन्द्र अवैध तरह से चल रहे हैं, यह स्वास्थ्य मंत्रालय की ही नाकामी नहीं है बल्कि पर्यावरण मंत्रालय की भी बहुत बड़ी मनमानी के सिवाय कुछ और नहीं है। फिलहाल हम आपको आसानी से समझाने के लिए उत्तरप्रदेश की स्थिति बताते हैं कि 8366 स्वास्थ्य केन्द्र यूपी में हैं जिनमें 3362 अवैध तरीके से चल रहे, इसी तरह 20 निस्तारण प्लांट हैं जिनमें 17 अवैध तरीके से चल रहे और यह स्थिति उस समय है जब 13500 टन बाओ मेडिकल वेस्ट सिर्फ यूपी में निकलता है। अब आप देश भर की बाओ मेडिकल वेस्ट की स्थिति से रूबरू अवश्य हो गए होंगे और इन हालात में 20 से 30 टन वेस्ट महामारी के कारण और भी बढ़ गया है।