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एनजीटी को अपनी पावर और प्राकृतिक संपदाओं पर गम्भीर होना चाहिए

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समस्या टीम
एनजीटी को अपनी पावर, और अपनी प्राकृतिक संपदाओं पर गम्भीर होना चाहिए…! पवित्र संस्था को उसकी आलोचनाओं से बचाने के लिए, जज को अपनी सुनवाई अपने आदेश दोनों का रूप बदलना चाहिए…! उनके आदेश में उनके जजमेंट में इंसाफ होना चाहिए…! इनलीगल को लीगल कर दिखाने वाले अफसर जिला के हों, राज्य या केन्द्र के हों, दंड देना ही चाहिए।

ऐसा कई केसों में देखा गया जब एनजीटी में सुनवाई होती रहती है, अफसर अधूरी-असत्य रिपोर्ट देकर, मनचाहे आदेश ले जाते हैं…! कभी इंपैक्ट शुल्क लेकर अवैध को वैध दिखाया जाता है, कभी उनसे दोस्ती करके अवैध को वैध दिखाया जाता है, यहां तक कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसर भी अपराध करने से नहीं बचते, पहले उन्हें कई तरह से दोषी दिखाते, फिर उन्हें बचाने के लिए, या अपने किए आदेश खुद ही मिटा लेते हैं, या एनजीटी में झूठी अधूरी रिपोर्ट देकर मनचाहे आदेश लेकर बचा लेते हैं…! अमीरों की दोषी फैक्ट्रियां बचाने के लिए कानूनी कागज लिखे जाते हैं…। दोषी जिला और राज्य हों, उनके अफसर हों, केन्द्रीय प्रदूषण या केन्द्रीय भूजल बोर्ड के हों, उन्हें बचाने का चलन उपलब्धी समझा जा रहा, ओ0ए0 नं0. 710/2017 और 176/2015 आदि मजबूत प्रमाण हैं।

राष्ट्रीय समस्या ने जब कुछ विशेषज्ञों से, कुछ अधिवक्ताओं से, कुछ पर्यावरण के जानकारों से और कुछ जनता से पूछना चाहा, एनजीटी की पावर, पर्यावरण के नौ कानून, और प्राकृतिक संपदाओं के हालात पर सवाल किये…? तो 80 फीसदी लोगों ने एनजीटी की तीखी आलोचना की, असफलता और एनजीटी की आलोचनाओं के लिए भी सिर्फ जज को जिम्मेदार बताया…! कई लोगों ने अफसरों की आमदनी का जरिया बताया, कुछ अधिवक्ताओं ने साफ कहा एनजीटी को अपनी पावर इस्तमाल करनी चाहिए…! अपने पुराने आदेश, पुरानी गाइडलाइन का कम्पलाइंस करना चाहिए…! कुछ ने कहा, जब एनजीटी खुद अपने आदेश, अपनी गाइडलाइन की रक्षा नहीं करेगी, तो अफसर से उम्मीद कैसे की जा सकती है…! क्योंकि आदेश और गाइडलाइन तो अफसर की असफलता की वजह से ही हुए हैं, कुछ ने कहा, एनजीटी की ड्यूटी है नदी की रक्षा करना, पीने वाली नदी दिखाना, एनजीटी की जिम्मेदारी बननी चाहिए, शुद्ध सांस, शुद्ध प्यास दिलाना, एनजीटी को अपनी ड्यूटी समझनी चाहिए, अन्यथा एनजीटी बनाने के मकसद बच पाना संभव नहीं होगा…! कुछ लोगों ने कहा एनजीटी प्रदूषण का कुछ नहीं कर पाएगी…! कुछ ने कहा, एनजीटी बहुत कुछ कर सकती है, पाताल से आसमान तक बदलाव करने की ताकत रखती है, मगर भूखी अफसरी, भूखे नेता, भूख मंत्रालय कुछ नहीं करने देंगे। कुछ लोगों ने कहा इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को गम्भीर होना चाहिए, सांस-प्यास के मसले पर सुप्रीम कोर्ट को गम्भीरता से सुनवाई करनी चाहिए, संस्थाओं को असफल करने वाले अफसर को दंडित करना चाहिए…!

देश की कोई प्राकृतिक संपदा सुरक्षित नहीं बची, फिर भी किसी को सजा नहीं हुई, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को अपनी निचली अदालतें हों, अपनी बनाई हुई संस्थाएं हों, उनकी सफलता-असफलता पर, गम्भीरता से विचार करना चाहिए…!

सूखी नदियां, प्यासे गांव, देश-दिल्ली की पहचान बनते जा रहे…! यह लोकतंत्र की जीत नहीं, हार है…? आजाद देश में गुलामी का कब्जा है।