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एक आखिरी मौका दे रहे हैं, पूर्व सीजीआई चंद्रचूड का आदेश नहीं माना तो भडकी सूप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (27 जनवरी) को जेलों में होने वाले जातीय भेदभाव से जुडे स्वत: संज्ञान मामलें की सुनवाई हो रही थी। इस दौरान जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महावेदन की पीठ ने इस बात पर नाराजगी जताई कि राजेयों और केंद्र शासित प्रदेशों ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेश की अनुपालन रिपोर्ट दाखिल क्यों नहीं की। जैसे ही बेंच के सामनें केस आया, वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एस. मुरलीधर ने कोर्ट को बताया कि पिछली पीठ के आदेश के मुताबिक अनुपालन रिपोर्ट 3 महीने के अंदर दायर की जानी थी लेकिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने फैसले के अनुसार अपने जेल मैनुअल को संशोधित किया है या नहीं। इसकी कोई अनुपालन रिपोर्ट रिकॉर्ड में नहीं आ सकी।

यह सुनते ही जस्टिस पारदीवाला की अगुवाई वाली बेंच भडक गई और कहा कि एक आखिरी मौका दे रहें है। पीठ ने NALSA को भी अनुपालन के संबंध में एक संयुक्त स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने इस मामले में हुए घटनाक्रम पर डॉ. मुरलीधर द्वारा दायर आवेदन को भी स्वीकार कर लिया है।

पिछले साल अक्टूबर में, देश के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश () डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने फैसला सुनवाया था कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के संबंधित जेल मैनुअल/नियमों के तहत कैदियों के जाति-आधारित अलगाव के प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17, 21 और 23 का उल्लंगन हैं।

कोर्ट ने पिछले साल जो आदेश पारित किेए थे, उनमें साफ तौर पर कहा गया था कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस फैसले के तीन महीनें के अंदर जेल मैनुअल/नियमों को संशोधित करना होगा। केंद्र शासित प्रदेशों को इस फैसले के तीन महीने के अंदर मॉडल जेल मैनुअल 2016 और मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम, 2013 में जाती-आधारित भेदभाव को दूर करने के लिए आवश्यक परिवर्तन करने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि जेलों के अंदर बंद विचाराधीन और दोषी कैदियों के रजिस्टर में ‘जाति’ कॉलम और जाति का उल्लेख हटाना होगा।

इस आदेश के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जेलों में कैदियों के साथ उनकी जाति के आधार पर भेदभाव और वर्गीकरण की जांच करने के लिए पिछले साल के अंत में ही जेल नियमावली में संशोधन किया है। केंद्रिय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और इस आदेश के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जेलों में कैदियों के साथ उनकी जाति के आधार पर भेदभाव और वर्गीकरण की जांच करने के लिए पिछले साल के अंत में ही जेल नियमावली में संशोधन किया है। केंद्रिय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजे गए पत्र में कहा है कि कैदियों के साथ किसी भी तरह के जाति आधारित भेदभाव के मुद्दे को सुलझाने के लिए आदर्श कारागार नियमावली, 2016 और आदर्श कारागार एवं सुधार सेवा अधिनियम 2023 में संशोधन किया गया है।

केंद्र ने राज्यों से ये भी कहा था कि कैदियों के साथ जाति आधारित भेदभाव पर उच्चतम न्यायालाय के तीन अक्टूबर 2024 के आदेश के मद्देनजर ये बदलाव किए गए हैं और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से भी जेल मैन्युअल में संशोधन करने को कहा था लेकिन अभी तक राजयों ने ऐसा नही किया। कारागार नियमावली में किए गए नए संशोधन के अनुसार, जेल अधिकारियों को सख्ती से यह सुनिश्र्चित करना होगा कि कैदियों के साथ उनकी जाति के आधार पर कोई भेदभाव,वर्गीकरण या अलगाव न हो।

इसमों कहा गया है, यह सख्ती से सुनिश्र्चित किया जाएगा कि जेलों में किसी भी डयूटी या काम के आवंटन में कैदियों के साथ उनकी जाती के आधार पर कोई भेदभाव न हो। आदर्श कारागार एवं सुधार सेवा अधिनियम 2023 के विविध में भी बदलाव किए गए हैं, जिनमें धारा 55 ए के रूप में नया शीर्षक कारागार एवं सुधार संस्थानों में जाति आधारित भेदभाव का निषेध जोड़ा गया है। गृह मंत्रालय ने यह भी कहा कि हाथ से मैला उठाने वालों के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013 के प्रावधानों का जेलों एवं सुधार संस्थानों में भी बाध्यकारी प्रभाव होगा। इसमें कहा गया है, जेल के अंदर हाथ से मैला उठाने या सीवर या सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई की अनुमति नहीं दी जाएगी।

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