अगर किसी राष्ट्र का प्रमुख अपने नागरिकों से कहे कि आप काम के दौरान शारीरिक संबंध बनाएं और बच्चा पैदा करें तो इसका क्या मतलब है। ऐसा रूस के राष्ट्रपति ब्लादमीर पुतिन ने रूसी जनता से कहा। यह वास्तव में मजाक नहीं है। यह अत्यंत गंभीर विषय है, जिस पर एक देश के राष्ट्राध्यक्ष ने चिंता व्यक्त की है। महिलाओं की घटती जन्मदर ने आज भारत सहित अनेक देशों के पेशानी पर बल पैदा कर दिए हैं।
एक समय था जब जनसंख्या विस्फोट देश और समाज के विकास में अवरोधक माना जाता था लेकिन आज जिस तरह महिला जन्मदर कम हो रही है, उससे अनेक देश चिंतित हो गए हैं। विकसित देश रूस, अमेरिका और चीन सहित अनेक इस समस्या का सामना कर रहे हैं। आबादी की रेस में भारत से पिछड़ने वाले चीन ने सिंगल चाइल्ड पॉलिसी पहले ही बदल दी थी, अब तो उसने ज्यादा बच्चा पैदा करने वाली महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष पैकेज देने का ऐलान भी किया है।
आज यह समस्या सिर्फ रूस और चीन की नहीं है बल्कि भारत भी इससे जूझ रहा है। भारत में भी प्रजनन दर दो से भी कम हो गई है और यह दर वर्ष 2050 तक घटकर 1.29 रह जाएगी। अहम सवाल यह है कि अगर भारत को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना है तो उसे पर्याप्त श्रमबल की भी आवश्यकता पड़ेगी लेकिन अभी तक जो प्रजनन दर का रुझान है, उसके अनुसार वृद्ध और युवाओं के बीच असंतुलन हो जाएगा। ऐसी स्थिति में क्या भारत का एक विकसित राष्ट्र बनने का सपना पूरा हो सकेगा? अगर प्रजनन दर इसी तरह घटती रही तो इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
रूस के राष्ट्रपति ने अभी हाल ही में कहा कि नागरिक काम के बीच शारीरिक संबंध बनाएं और बच्चे पैदा करें। ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि आबादी पर हमारा भविष्य टिका हुआ है। हालांकि पुतिन ने दिसंबर 2023 में भी घटती जन्म दर को लेकर चिंता जताई थी और रूस की महिलाओं से कहा था कि वे कम से कम 8 बच्चों को जन्म दें। रूसी घरों में बड़े परिवारों की परंपरा शुरू किए जाने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1999 के बाद रूस में जन्म दर अब तक के सबसे निचले स्तर पर है। आबादी के मामले में दुनिया के टॉप 10 देशों में शामिल रूस में 2024 की पहली छमाही में करीब 6 लाख बच्चों का जन्म हुआ। यह पिछले साल की तुलना में 16 हजार कम है।
रूस ने अपने उत्तर-पूर्वी क्षेत्र करेलिया में मां बनने वाली कॉलेज छात्राओं के लिए विशेष योजनाएं जारी की हैं। इसके तहत स्थानीय कॉलेज और विश्वविद्यालयों में 25 साल से कम उम्र की जो छात्राएं स्वस्थ बच्चों को जन्म देंगी, उन्हें करीब 92 हजार रुपये की सहायता दी जाएगी। इससे पहले 2022 में पुतिन ने घोषणा की थी कि वे 10 बच्चे पैदा करने वाली महिलाओं को ‘मदर हिरोइन’ नाम का अवॉर्ड देंगे। यह अवॉर्ड सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान भी महिलाओं को दिया जाता था। उस समय भी रूस की जनसंख्या तेजी से घट रही थी।
इसी तरह चीन ने जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए 1979 में वन चाइल्ड पॉलिसी लागू की थी। इसमें एक से अधिक बच्चा पैदा करने पर सख्त रोक थी। इससे चीन की आबादी नियंत्रित हुई और आर्थिक तरक्की की रफ्तार भी बढ़ी। लेकिन वन चाइल्ड पॉलिसी के दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं। चीन में बुजुर्गों की तादाद तेजी से बढ़ रही है और श्रमबल लगातार घट रहा है। 1978 के बाद से चीन की औसत वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 9% से ज़्यादा रही है। चीन में स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सेवाओं तक पहुंच में काफ़ी सुधार हुआ है। लेकिन चीन को डर है कि अगर उसकी आबादी ऐसे ही घटती रही तो औद्योगिक श्रम की कमी हो जाएगी। इसीलिए चीन ने एक-बच्चा नीति को खत्म कर दिया और अब जन्म दर बढ़ाने के लिए कई नीतियां लागू की हैं। इनमें माता-पिता के लिए लचीले काम के घंटे, घर से काम करने की सुविधा और पारिवारिक अवकाश शामिल हैं। चीन में बच्चों के लिए नकद सब्सिडी, मातृत्व अवकाश और घर खरीदने के लिए सब्सिडी दी जा रही है। चीन में आईवीएफ जैसे प्रजनन उपचारों के लिए भी भुगतान किया जा रहा है। चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन ने उचित उम्र में शादी और बच्चे पैदा करने की वकालत की है।
वहीं, भारत में 2050 में बच्चे पैदा होने की संख्या गिरकर 1.3 करोड़ होने का अनुमान है। वर्ष 1950 में 1.6 करोड़ से अधिक और 2021 में 2.2 करोड़ से अधिक बच्चे पैदा हुए थे। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा का कहना है कि भारत के लिए इन निष्कर्षों के गहरे मायने हैं। इसमें बूढ़ी होती आबादी और श्रमबल की कमी जैसी चुनौतियां शामिल हैं। लैंगिक प्राथमिकताओं के कारण सामाजिक असंतुलन भी उत्पन्न हो सकता है। हालांकि ये चुनौतियां कुछ दशक दूर हैं। लेकिन, हमें भविष्य के लिए अभी से कार्यवाही शुरू करने की जरूरत है।
अगर इसी तरह आबादी कम होती रही तो भारत को भी आबादी कम होने से कई तरह की चुनौतियां ये जूझना पड़ेगा। जानकारों का मानना है कि विकसित राष्ट्र बनने में कम होती आबादी बड़ा अवरोधक बन सकती है। इसके चलते युवा उद्यमियों और कामगारों की संख्या कम हो जाती है, जिससे रोज़गार के अवसर कम होंगे। बुज़ुर्गों की संख्या बढ़ने पर उनके लिए रिटायरमेंट फ़ंड और दूसरी योजनाएं चलानी पड़ेंगी। इससे सरकारी खज़ाने पर सीधा असर पड़ेगा। इसके अलावा महंगाई बढ़ेगी, सुविधाओं की कमी होगी और नवाचार पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसलिए आवश्यक है कि भारत सरकार इस समस्या को लेकर गंभीरता से मंथन करे और ऐसी जनसंख्या नीति और उसे लागू करने के लिए समुचित रणनीति बनाए ताकि महिला जन्मदर दो तक बनी रही।