प्राकृतिक आपदा कब आ जाए, कुछ नहीं पता। देश में पूरे साल कहीं न कहीं कुदरत का रौद्र रूप कहर बरपाता रहता है। बिहार का मिथिला क्षेत्र इस वक्त बाढ़ से प्रभावित है। असम में तेज बारिश ने कमोबेश कुछ वैसी ही स्थिति उत्पन्न की हुई है। सवाल उठता है कि इस तरह की आपदा से निबटने के लिए हमारा सिस्टम पहले से कितना बेहतर हुआ या आत्मनिर्भरता के शोर में कुछ फीका पड़ गया है। प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए सरकारी तंत्र के अलावा आमजन को भी आगे आने की जरूरत है। सिर्फ एनडीआरएफ और अन्य राहत-बचाव दलों के भरोसे नहीं रहना चाहिए।
पिछले वर्ष के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में विभिन्न किस्म की प्राकृतिक घटनाओं में सरकारी तंत्र ने डेढ़ लाख से अधिक लोगों को बचाया और 8 लाख लोगों तक राहत एवं बचाव कर उन्हें आपदाग्रस्त क्षेत्रों से बाहर निकालने का काम किया। अचानक आई आपदा से निपटने के लिए हमारा तंत्र पूरी तरह एनडीआरएफ पर निर्भर है। क्योंकि ये विभाग भरोसे का प्रतीक बन गया है। एनडीआरएफ भारत ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी सेवाएं देने से पीछे नहीं हटता। फिर चाहे वह वर्ष-2015 में नेपाल में आया विनाशकारी भूकंप हो या साल 2023 में तुर्किये का भूकंप। हर जगह एनडीआरएफ दल के कर्मी वहां भगवान का दूत बनकर खड़े दिखाई दिए।
आपदाएं किसी को बताकर नहीं आती लेकिन अब ऐसे बहुत से साइंटिफिक संसाधन मौजूद हैं, जिससे हम प्राकृतिक आपदाओं का समय रहते आकलन और बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं। साल-2005 के बाद से सरकारी स्तर पर हालात बदले और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा मोचन बल अथवा एनडीआरएफ का गठन किया गया। एनडीआरएफ के गठन के बाद से प्राकृतिक ही नहीं मानव जनित आपदाओं के प्रबंधन की दशा भी बेहतर हुईं। अब संकट के समय अलग अतिरिक्त बल है जिसके पास अलग-अलग तरह के संकटों से निपटने की क्षमता और दक्षता दोनों है।