Home राष्ट्रीय अजमेर शरीफः तेरी-मेरी की लड़ाई पहुंची अदालत

अजमेर शरीफः तेरी-मेरी की लड़ाई पहुंची अदालत

306

शैलेश सिंह

मानवता की मिशाल कहें या एकता की निशानी, कहने को यह ख्वाजा की दरगाह है, मगर विश्व का यह पहला पूजा स्थल है जहां ईसाई, पारसी, हिन्दू, मुस्लिम, सभी धर्म, सभी आवाज, सभी मांगे मेल खाती हैं, और दूसरी खासियत यह कि यहां इंसानियत के सिवाय जाति, रंग, रूप कोई मायने नहीं रखते।
अगर कहें कि किसकी मुराद पूरी नहीं हुई, कौन है जो ख्वाजा की दरगाह नहीं जानता। पंडित नेहरू से लेकर मोदी तक, सबने मांगा, सबने चादर चढाई, बराक ओबामा हों या अमिताभ बच्चन, सबने विनती कीं और शांत मन लेकर गए। कुल मिलाकर जो भी गया वो हाथ फैलाकर, और लौटा तो झोली भरकर। मुराद स्थल कहें या दरगाह, इसकी तीसरी खासियत कि यह ना जानें कब से है, कुछ विशेषज्ञ तो इसे बादशाह अकबर की मुराद पूरी करने वाली दरगाह भी लिख चुके हैं।
ऐसा कहा गया कि जनवरी 1562 में अकबर पहुंचे, 370 किलोमीटर पैदल जाकर दरगाह पर माथा टेका, कुछ मांग कर वापस लौटे, मगर अगस्त 1569 को जब सलीम यानि जहांगीर का जन्म हुआ, तो लगभग तीन से चार माह बाद बादशाह अकबर फिर नंगे पैर अजमेर गये।
ख्वाजा शरीफ की दरगाह से जुड़ी कहानियां सत्य को विज्ञान और तर्क से परखना संभव नहीं है। आस्था एक ऐसी भावना है, जिसे सिर्फ इंसानियत के रूप में महसूस किया जा सकता है। फिलहाल इस दरगाह को भी नजर लगी है, और यहां भी कानूनी विवाद ने अपना पांव पसार दिया है।
अजमेर शरीफ को शिव मंदिर बताने वाली याचिका दायर की गई है। स्थानीय अदालत ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की पवित्र दरगाह के परिसर में शिव मंदिर होने का दावा सुना और इस मामले में तीन प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया।
मामले की सुनवाई करने वाले सिविल जज मनमोहन चंदेल ने अल्प संख्यक मामलों के मंत्रालय को, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को भी नोटिस देकर जवाब मांगा है। शिकायत की पैरवी करने वाले वकील योगेश सिरोजा के अनुसार सितंबर में मामला दायर किया गया था, जिसके संबंध में नोटिस जारी किए गए हैं।
वहीं याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता ने मांग की है कि दरगाह को आधिकारिक तौर पर महादेव मंदिर घोषित किया जाए। उन्होंने इस स्थल का एएसआई के नेतृत्व में सर्वेक्षण की विनती की है, ताकि इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को स्थापित किया जा सके।