राहुल गांधी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। संप्रति लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। उनसे अतिरिक्त शालीनता की अपेक्षा रहती है, लेकिन हाल ही में उन्होंने एक खतरनाक वक्तव्य दिया है। उन्होंने कहा है कि, “मैं भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ही नहीं लड़ रहा हूं, बल्कि मेरा संघर्ष भारतीय राष्ट्र राज्य से भी है।“ अंग्रेजी में देश के लिए ‘स्टेट‘ शब्द का इस्तेमाल हुआ है। भारतीय परंपरा, इतिहास और संस्कृति में राष्ट्र का अस्तित्व बहुत प्राचीन है। इतिहास के वैदिक युग से लेकर आधुनिक काल तक राष्ट्र भाव को बढ़ाने की ही बातें राष्ट्रीय विमर्श में रही हैं। किसी शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न संदर्भों में भी हो सकता है। लेकिन ‘स्टेट‘ जैसे शब्द का अर्थ स्वतः स्पष्ट होता है। भारतीय संविधान की मूल धारा में स्टेट (राज्य) का अर्थ राजव्यवस्था है। संविधान भी राजव्यवस्था का अंग है लेकिन सर्वोपरि है। संवैधानिक संस्थाएं राजव्यवस्था का उद्देश्य पूरा करने की माध्यम हैं। न्यायपालिका एक संवैधानिक संस्था है। विधायिका और कार्यपालिका भी संवैधानिक संस्थाएं हैं। भारत के महालेखा परीक्षक (कैग) भी संवैधानिक संस्था हैं। निर्वाचन आयोग भी प्रतिष्ठित संवैधानिक संस्था है। ऐसी सारी संवैधानिक संस्थाओं का गठन संविधान के अनुरूप हुआ है। भारतीय राजव्यवस्था के सिद्धांतों, मान्यताओं, नियमों और विधियों से राष्ट्रजीवन की गतिशीलता है। भारतीय राज्य की सभी संस्थाएं स्टेट का हिस्सा हैं। राष्ट्र राज्य का अर्थ संप्रभु सत्ता है।
भारत संप्रभु राष्ट्र राज्य है। भारत की धरती और आकाश तक इस संप्रभुता की गहन उपस्थिति है। यह संप्रभुता भारत के संपूर्ण जन गण मन के माध्यम से संविधान में प्रकट हुई है। स्टेट का सामान्य अर्थ राजव्यवस्था या राज्य हो सकता है। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका स्टेट के अभिन्न अंग हैं। कोर्ट, कचहरी, विधायिका, कार्यपालिका सहित सभी घटक राजव्यवस्था के अविभाज्य अंग हैं। साधारण सिपाही और विभिन्न संस्थाओं में काम करने वाला लिपिक भी राजव्यवस्था का अंग हैं। राजव्यवस्था में किसी भी अंग से संघर्ष की घोषणा सामान्य अपराध नहीं है। मूलभूत प्रश्न है कि राहुल गांधी की लड़ाई आखिरकार किस स्टेट के विरुद्ध है? बेशक स्टेट राजव्यवस्था के सभी अंग अलग-अलग काम करते हैं। लेकिन वस्तुतः वे स्टेट नाम की संस्था के अभिन्न अंग हैं। भारत के प्राचीन काल में भी खूबसूरत राजव्यवस्था थी। वैदिक साहित्य में राजा के निर्वाचन की विधि मिलती है। राजा के निर्वाचन के समय उत्सव होते थे। ऐसे ही उत्सव में कहते हैं कि, “हे राजा! हम आपको राष्ट्र की भूमि की रक्षा करने, कृषि और पशुपालन की व्यवस्था करने, नागरिकों के लिए शिक्षा का प्रबंध करने के लिए चुनते हैं।“ आगे कहते हैं, “आप अजेय रहें, आपकी कीर्ति और यश फैले। हम आपका अभिषेक करते हैं।“ राजा की भी शपथ होती थी। राजा कहता था कि, “मैं राष्ट्र की रक्षा करूंगा। कृषि और पशुपालन को विकसित करूंगा। इस देश को वैभवशाली बनाऊंगा। यदि मैं ऐसा न कर पाऊं तो मेरे सारे पुण्य नष्ट हो जाएं।“
भारत के सभी नागरिक राजव्यवस्था का संरक्षण पाते हैं। स्टेट का कर्तव्य राजव्यवस्था का संचालन व अनुशासन सुनिश्चित करना है। प्रश्न है कि राजव्यवस्था को नष्ट करने और उससे लड़ने का कोई भी प्रयास राजद्रोह के दायरे में आता है? माओवादी हिंसा करते हैं। निर्दोष मारे जाते हैं। स्टेट माओवादियों से यथानियम निपटता है। माओवादियों और स्टेट के बीच का युद्ध वस्तुतः स्टेट पर ही हमला है और राजद्रोह है। आतंकवादी देश के कई भूभागों में निर्दोष नागरिकों को मारा करते हैं। वे स्टेट की परवाह नहीं करते। स्टेट उनसे लड़ता है। संघर्ष करता है। पूर्वोत्तर के तमाम उग्रवादी संगठन भी इसी श्रेणी में आते हैं। स्टेट सभी हिंसक संगठनों से लड़ने को बाध्य है। राहुल गांधी किस स्टेट से लड़ने की बात कर रहे हैं? श्रीलंका के उग्रवादी संगठन लिट्टे ने राजीव गांधी को मारा था। ऐसे सभी संगठन व्यक्तियों को निशाना नहीं बना रहे थे, वे स्टेट से ही युद्ध कर रहे थे। स्टेट को ध्वस्त करना चाहते थे। राष्ट्र को स्टेटलेस-राज्यविहीन बना रहे थे। महाभारत, रामायण में राजविहीन देश का दशा वर्णन है-व्यापारी व्यवसाय नहीं कर पाते। बच्चे पढ़ नहीं पाते। आचार्य यज्ञ नहीं कर पाते। आदि। सुंदर राजव्यवस्था जरूरी है।
भारतीय स्टेट से लड़ना संभव नहीं है। स्टेट के पास राजव्यवस्था चलाने की शक्ति है। यह शक्ति संविधान ने दी है। राहुल गांधी जी स्टेट से क्या उम्मीद रखते हैं? क्या स्टेट आतंकवादियों, अलगाववादियों की वंदना करे? उन्होंने अपना मंतव्य स्पष्ट नहीं किया है। संविधान की प्रति जेब में रखना और उसके खात्मे का आरोप लगाना आसान है। भाजपा या संघ से लड़ना आसान है। यह सामान्य लोकतांत्रिक कार्यवाही है। हमारे संविधान ने विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार माना। संविधान (अनुच्छेद 19) ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देते हुए लोकव्यवस्था को महत्वपूर्ण उन्मुक्ति दी है। राहुल गांधी लोक व्यवस्था की परवाह नहीं करते और न ही राजव्यवस्था की। कांग्रेस को राहुल गांधी के बयान की निंदा करनी चाहिए। उनके वक्तव्य गंभीर हैं।
1971-72 के साल जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति आंदोलन हुआ था। आंदोलनकारियों का मुख्य नारा ध्यान देने योग्य है, “हमला चाहे जैसा भी हो हाथ हमारा नहीं उठेगा।“ लेकिन आंदोलनकारियों को मारा-पीटा गया। जेल में डाला गया। कांग्रेस की तरफ से बयान आया कि, “यह पुलिस वालों को उत्तेजित करने का प्रयास है। इसलिए यह राजद्रोह है।“ 1975 में आपातकाल लगा। लाखों लोग जेल भेजे गए। इन पंक्तियों के लेखक को भी आपातकाल में 19 माह तक जेल में रखा गया। मौलिक अधिकार निलंबित हो गए। लोकतांत्रिक ढंग से किए गए कार्यों को आपराधिक कार्य मानना गलत है। स्टेट से संघर्ष की घोषणा अच्छी नहीं है। इस संघर्ष का रूप स्वरूप उन्होंने नहीं बताया। उन्हें चिढ़ भाजपा और भाजपा की सत्ता से है। वह स्वयं नेता प्रतिपक्ष हैं। वह भी स्टेट का हिस्सा हैं। स्टेट से लड़ने की घोषणा करना निंदनीय है। लोकतंत्र में इस या उस दल या दल समूह की सरकारें आती हैं और जाती रहती हैं। इस समय मोदी सरकार है तो मोदी के पहले कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी। सरकार के कामकाज की आलोचना विपक्ष का अधिकार है। लेकिन चुनाव मैदान में अपेक्षानुसार सीटें न पाने से आहत कांग्रेस को ऐसी बयानबाजी से बचना चाहिए।
संविधान खतरे में नहीं है। स्टेट या राजव्यवस्था भी नहीं। संविधान को खतरे में बताना न उचित रहा है और न ही इस समय है। संविधान को बचाने निकले नेता प्रतिपक्ष संविधान से ही लड़ाई करने निकल पड़े हैं। नेता प्रतिपक्ष संभवतः इतनी छोटी-सी बात भी नहीं जानते कि संविधान भी स्टेट का हिस्सा है। स्टेट के कार्य संचालन के लिए संविधान ही मार्गदर्शी है। उन्हें और उनके समर्थकों को संविधान की उद्देशिका पढ़नी चाहिए। उद्देशिका इस देश को आर्थिक, सामाजिक न्याय दिलाने की बात करती है। परस्पर भाईचारा बनाने के लक्ष्य के लिए भी उद्देशिका पठनीय है। संविधान की पूरी योजना भारत के भविष्य से जुड़ी हुई है। सभी संस्थाओं को आदर देना और उनके कृतित्व के प्रति सजग रहना आज की आवश्यकता है। स्टेट से लड़ने की घोषणा आहतकारी है। अलगाववादी आतंकवादी संगठन भी राजव्यवस्था से लड़ रहे हैं।