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स्क्रीन टाइम पर कड़ा प्रहार करने की जरूरत

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ऑनलाइन गेम्स अर्थात् मारधाड़, तनाव आदि । जीत का अजीबोगरीब जुनून। न खाने-पीने की सुध और न ही समय का ध्यान। ऐसे गेम्स जिनमें बच्चे, किशोर और युवा डूबे रहते हैं। कभी-कभी तो अधेड़ उम्र के लोगों या बुजुर्गों का भी इन गेम्स में लगाव देखा जाता है। इन गेम्स के कारण हो रहे हादसों से कौन नहीं वाकिफ है। टारगेट इतना खौफनाक होता है कि रूह कांप जाये। कई देशों ने इसीलिए इन पर प्रतिबंध भी लगाया। इस चिंताजनक स्थिति के बीच अब कुछ सुखद चीजें भी सामने आ रही हैं। यानी ऑनलाइन गेम्स एक पक्ष एकदम स्याह ही नहीं, कुछ श्वेत भी है और यह श्वेत पक्ष इस कदर धीरे-धीरे धवल हो रहा है कि नयी पीढ़ी को मानो पुरानी कविता की उन खूबसूरत पंक्तियों की मानिंद संदेश दे रहा हो, ‘नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो।’

असल में तनाव पैदा करने वाले ऑनलाइन गेम्स के बीच ही अनेक ऐसे खेल भी अब आ रहे हैं जो बहुत कूल हैं। कोई फिक्स टारगेट नहीं। बैकग्राउंड में शांत सा म्यूजिक चल रहा है, आप एक वस्तु को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। साथ में हैं पहाड़, पेड़, नदियां। उसी तरह जैसे गूगल मैप पर आप डेस्टीनेशन लगाते हैं, गलत मुड़ गए तो वह आपको परेशान नहीं करता, री-रूटिंग कर देता है। एक मोड़ गलत मुड़ गए हो तो आगे से रास्ता मिल जाएगा। हालांकि कूल गेम्स भी बाजार का ही नया रूप है, इसमें भी उलझने का उतना ही खतरा बरकरार है, लेकिन कम भयावह। ऐसे ज्यादातर गेम्स में टारगेट नहीं हैं। हिंसा नहीं है। अलग-अलग तरह के इन गेम्स में किसी में समूह में खेलने का नियम है और किसी में एकल तौर पर।

अब कई गेम्स तनाव कम करने के लिए बनाये जाने लगे हैं। घरों में बच्चे कभी-कभी अपने बड़ों तक को सलाह दे डालते हैं कि इस गेम को डाउनलोड कर लीजिए, कुछ देर खेलिए आनंद आएगा। ऐसे ही गेम का ही एक प्रारूप है जिसमें अगर आपने गूगल खोला, अगर इंटरनेट नहीं चल रहा हो तो वह आपको कूल रहने की सीख देता है। एक आइकन सामने आ जाएगा। आप उसको आगे बढ़ाते रहिए। छोटे-छोटे टारगेट आएंगे। नेटवर्क आते ही वह गेम खत्म हो जाएगा। हालांकि अच्छी प्रैक्टिस नहीं है तो यह गेम भी झुंझलाहट पैदा कर सकता है। बात करें विभिन्न गेम्स की तो उनमें से कुछ हिंसक हैं, मसलन-मॉर्टल कॉम्बेट, कॉल ऑफ ड्यूटी, पबजी, फ्री फायर आदि। इसी तरह कुछ कूल गेम्स हैं जैसे, पियानो किड्स,ट्रक गेम्स फॉर किड्स, यूनिकॉर्न शेफ, ड्रेसअप, कलरिंग एंड लर्न, लिटिल पांडा, चिल्ड्रेन्स डॉक्टर, द घोस्ट पेपर चेंज, ऑल्टो एडवेंचर, कास्टिंग अवे सिनामोन चैलेंज, आइस एंड सॉल्ट चैलेंज या कुछ हद तक ब्रेन डॉट्स, कैंडी क्रश।

पिछले दिनों एक खबर आई कि गेमिंग कंपनी नजारा टेक्नोलॉजीज ने ब्रिटेन स्थित आईपी-आधारित गेमिंग स्टूडियो फ्यूजबॉक्स गेम्स को 228 करोड़ रुपये में खरीदने का ऐलान किया है। इस बारे में कंपनी की तरफ से बयान आया, ‘हम एक आईपी आधारित वैश्विक गेमिंग व्यवसाय बनाने में बड़ा अवसर देखते हैं, जिसे भारत में हमारे मुख्य आधार से लाभ मिलेगा।’ माना जाता है, इस वक्त ऑनलाइन गेम्स का कारोबार करीब 2340 करोड़ रुपयों का है। दिन-प्रतिदिन नए-नए गेम्स आ रहे हैं। कंपनियों की ओर से रिसर्च करवाई जाती हैं और जैसा ट्रेंड या पसंद उनके सामने आती है उसी तरह का सॉफ्टवेयर डेवलप कर नये गेम्स बनाए जाते हैं।

यूं तो हर वर्ग के लोगों को अपने स्क्रीन टाइम, यानी कितनी देर मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, डेस्कटॉप पर लगे हैं, पर ध्यान देना चाहिए, लेकिन बच्चों के मामले में ज्यादा सतर्कता चाहिये। बेशक कोविड के बाद बच्चों के स्क्रीन टाइम में इजाफा हुआ है। यह जरूरत भी बन गया है, लेकिन फिर भी इसे लिमिटेड करना बहुत जरूरी है। विशेषज्ञों के मुताबिक, स्क्रीन टाइम बच्चों को सीखने, रचनात्मकता विकसित करने और सामाजिक संपर्क बढ़ाने में मदद करता है, लेकिन बहुत अधिक स्क्रीन टाइम नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। एक शोध के मुताबिक, दो से पांच साल के बच्चों के लिए एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं होना चाहिए, पांच से 17 वर्ष तक स्कूल के काम के अलावा दो घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम नहीं हो। लेकिन ज्यादातर मामलों में इस समयसीमा की अवहेलना ही होती है। जानकार कहते हैं, अधिक स्क्रीन टाइम वाले बच्चों में बिना सोचे-समझे खाने और अधिक खाने की आशंका होती है। जब बच्चे स्क्रीन पर होते हैं, तो वे अपने मस्तिष्क से पेट भर जाने के संकेतों को ग्रहण करने से चूक सकते हैं,कई बच्चे जंक फूड खाना पसंद करते हैं। ऐसे में कई विकार पनपने की आशंका रहती है। अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के बाद हाल ही में स्वीडन ने भी स्क्रीन टाइम के लिए सख्त परामर्श जारी किया है।