शैलेश सिंह
सुप्रीम कोर्ट को कुछ नहीं समझ रही अफसरी! यह पढ़ने-सुनने के लिए तो ठीक है, मगर इसके दुष्प्रभाव देशभर की अदालतों पर क्या हो रहे, एनजीटी की सुनवाई की तश्वीर कितनी सुंदर होगी, यह सुप्रीम कोर्ट को ख्याल रखना चाहिए। अगर कहें कि सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं कर पायेगा प्रदूषण का, तो प्रदूषण से होने वाली हत्यायें हों या आज के हालात, इसे 100 फीसदी सच बताती हैं, और अगर लिखें कि सुप्रीम कोर्ट ने मैलाप्रथा पर जो आदेश जारी किया था, उसकी अवमानना साल भर बाद भी सुप्रीम कोर्ट देख रहा है, ये भी 100 फीसदी सही है। मित्रो! मैला ढ़ोना हो, गंदे शौचालय साफ करना हो, या फिर सीवर लाइन की सफाई हो, आज भी सब कुछ हाथों से ही कराया जा रहा, और तो और इससे होने वाली हत्यायें भी सिर्फ देखी जा रही हैं। अगर कहें कि पीएम से मंत्री तक, और सीएम से डीएम तक सबने सिर्फ नारा रट लिया, मगर सच्चाई यह कि डिजिटल दौर में यह नारा देने वाले लोग इंसान, समाज, देश, कानून, चारों पर बोझ साबित हो रहे हैं।
हाथ से सीवर सफाई दण्डात्मक अपराध है, तो क्या कानून को कुंए में झोंक दिया है, किताबों में पढ़ें तो 1993 और 2013 के अधिनियम में प्रावधान है, सीआरपीसी में देखें तो धारा 306 इसके लिए सजा बताती है, सुप्रीम कोर्ट का आदेश देखें तो 20.10.2023 में निर्देश दिये गये, संघ की रिपोर्ट 31 जनवरी देखी जाये, तो जैसे कुछ हुआ ही नहीं। इसके बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिक्रिया तो की, मगर कार्यवाही के नाम पर कुछ भी नहीं किया अफसरी का। जस्टिस सुधांशू धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार ने कड़ाई से बोला कि इस मामले में हम किसी भी हद तक जा सकते हैं, मगर कार्यवाही नहीं की, इससे वही पुरानी प्रक्रिया, जो प्रदूषण की सुनवाई के समय की गई थी, वही दोहराई गई। इससे चिंता हो रही कि क्या सुप्रीम कोर्ट का आदेश और कानून, किसी का कोई महत्व नहीं रह गया, इसीलिए इस आफत पर सुप्रीम कोर्ट को गम्भीरता से विचार करना चाहिए।