Home संपादकीय  विधानसभा उपचुनाव में  गढ़ बचाने में लगी पार्टियां

 विधानसभा उपचुनाव में  गढ़ बचाने में लगी पार्टियां

राजस्थान में 13 नवंबर को सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे। सात में से पांच विधानसभा सीटें झुंझुनू, दौसा, खींवसर, देवली-उनियारा, चौरासी विधायकों के सांसद बनने से खाली हुई हैं। सलूंबर व रामगढ़ में विधायकों की मृत्यु होने के चलते उपचुनाव हो रहे हैं। हालांकि उपचुनाव के नतीजों से प्रदेश की राजनीति में कोई बड़ा बदलाव होने की संभावना नहीं है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार को भी कोई खतरा होने वाला नहीं है। मगर उपचुनाव के नतीजे का असर प्रदेश की राजनीति में कई पार्टियों व उनके नेताओं के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेगा। 2023 के विधानसभा चुनाव में सात विधानसभा सीटों में से चार सीटों पर कांग्रेस के विधायक थे। वहीं एक सीट पर भाजपा, एक पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) व एक पर भारतीय आदिवासी पार्टी का विधायक था।

राजस्थान की जिन सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें से प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के पास सिर्फ एक सलूंबर की सीट थी। जहां उनके लगातार तीन बार के विधायक अमृतलाल मीणा के निधन के चलते उपचुनाव हो रहा है। भाजपा के लिए सलूंबर की सीट जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। भाजपा ने दिवंगत विधायक की पत्नी शांता मीणा को टिकट दिया है। इसके अलावा प्रदेश की अन्य विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भी भाजपा पूरी मजबूती के साथ चुनाव मैदान में उतरी है। उपचुनाव में हार-जीत के साथ मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा व प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में बहुत अच्छा नहीं रहा था। इसलिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा चाहते हैं कि सभी सात सीटों पर भाजपा जीते, जिससे आला कमान की नजरों में उनकी मजबूत छवि बन सके। भाजपा समय रहते अपने सभी बागियों को मना कर एकजुटता का संदेश देने में सफल रही है। इसमें मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की भूमिका अहम है।

भाजपा ने दौसा सीट पर राजस्थान सरकार में मंत्री डॉक्टर किरोडीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को प्रत्याशी बनाया है। दौसा सीट सामान्य वर्ग की सीट है। भाजपा ने डॉक्टर किरोडीलाल मीणा के दबाव में अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया है। वही 2023 के विधानसभा चुनाव में झुंझुनू से भाजपा के प्रत्याशी निशित कुमार उर्फ बबलू के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले राजेंद्र भांभू व रामगढ़ से भाजपा प्रत्याशी जय आहूजा के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले सुखवंत सिंह को टिकट देकर मैदान में उतार दिया है। देवली-उनियारा सीट पर भी भाजपा ने पिछली बार चुनाव लड़े कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे विजय बैसला का टिकट काटकर पूर्व विधायक राजेंद्र गुर्जर को मैदान में उतारा है। वहीं खींवसर सीट पर रालोपा के अध्यक्ष व नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल को पिछले विधानसभा चुनाव में कड़ी टक्कर देकर मात्र 2059 वोटों से हारने वाले रेवतराम डागा को फिर से मैदान में उतारा है।

चौरासी सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी की करारी हार हुई थी। इस बार भाजपा ने वहां नया प्रत्याशी कारीलाल ननोमा को मैदान में उतारा है। भाजपा प्रत्याशी सीमलवाड़ा पंचायत समिति के प्रधान हैं तथा सादड़िया के सरपंच रह चुके हैं। अब उनकी पुत्रवधू रेखा सरपंच है। उनकी पत्नी हाकली देवी भी सरपंच रह चुकी है। क्षेत्र में अच्छी पकड़ होने के कारण राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि इस बार वहां भाजपा कड़ी टक्कर दे सकती है। कांग्रेस को अपनी चार सीट झुंझुनू, दौसा, देवली-उनियारा व रामगढ़ फिर से जीतनी होगी। साथ ही अन्य तीन सीटों पर भी अपनी ताकत दिखानी होगी। कांग्रेस ने झुंझुनू सें सांसद बने बृजेंद्र सिंह ओला के बेटे अमित ओला को मैदान में उतारा है। अमित ओला ओला परिवार की तीसरी पीढ़ी है तथा उनके दादा शीशराम ओला झुंझुनू से पांच बार सांसद, नौ बार विधायक केंद्र तथा राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। वहीं रामगढ़ सीट पर दिवंगत विधायक जुबेर खान के पुत्र आर्यन खान को उतार कर सहानुभूति के बल पर चुनाव जीतना चाहती है। दौसा सामान्य सीट पर कांग्रेस ने अनुसूचित जाति के दीनदयाल बैरवा को टिकट देकर मैदान में उतारा है।

देवली-उनियारा से पूर्व अधिकारी कस्तूर चंद मीणा को मैदान में उतारा है। यहां कांग्रेस के बागी नरेश मीणा चुनाव को त्रिकोणात्मक बना रहे हैं। नरेश मीणा को कांग्रेस मनाने में नाकाम रही है, जिसके चलते कांग्रेस प्रत्याशी की स्थिति ज्यादा बेहतर नहीं मानी जा रही है। सलूंबर में कांग्रेस ने 2018 में निर्दलिय चुनाव लड़कर कांग्रेस को हराने वाली रेशमा मीणा को मैदान में उतारा है। इससे नाराज होकर सांसद, विधायक व मंत्री रह चुके रघुवीर मीणा अंदर खाने पार्टी प्रत्याशी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। चौरासी सीट पर कांग्रेस ने इस बार 29 साल के नए प्रत्याशी महेश रोत को मैदान में उतारा है। खींवसर सीट पर कांग्रेस ने महिला प्रत्याशी रतन चाैधरी को मैदान में उतार कर हनुमान बेनीवाल के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाई है। इसका फायदा भाजपा को हो सकता है। खींवसर सीट पर रालोपा के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है। पिछला विधानसभा चुनाव वह मात्र 2059 वोटों से जीते थे। फिर कांग्रेस से गठबंधन कर नागौर से सांसद चुने जाने पर उन्होंने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था। अब उन्होंने अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को मैदान में उतारा है। यहां उनका मुकाबला भाजपा के रेवत राम डागा व कांग्रेस की रतन चौधरी से होगा।

हनुमान बेनीवाल ने 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के रेवत राम डागा को महज 2059 वोटों से हराया था। विधानसभा उपचुनाव में यदि हनुमान बेनीवाल की पत्नी चुनाव हार जाती हैं तो उनकी पार्टी का विधानसभा में प्रतिनिधित्व तो समाप्त होगा ही साथ ही उनका प्रदेश की राजनीति में प्रभाव भी कम हो जाएगा। इसलिए हनुमान बेनीवाल के लिए उपचुनाव में करो व मरो वाली स्थिति बनी हुई है। आदिवासी बहुल चौरासी विधानसभा सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय आदिवासी पार्टी के अध्यक्ष राजकुमार रोत 69166 वोटो से चुनाव जीते थे। उनके बांसवाड़ा-डूंगरपुर से सांसद बनने के चलते इस्तीफा देने से खाली हुई चौरासी सीट पर उपचुनाव हो रहा है। आदिवासी बेल्ट में भारतीय आदिवासी पार्टी का प्रभाव लगातार प्रभाव बढ़ रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय आदिवासी पार्टी के तीन विधायक जीते थे। चौरासी सीट पर कांग्रेस व भाजपा ने भी इस बार नए प्रत्याशियों को मौका दिया है। वहीं भारतीय आदिवासी पार्टी का बागी बदामीलाल ताबियाड़ भी चुनाव मैदान में खड़ा है। उनकी पत्नी शर्मिला अभी चिखली पंचायत समिति की प्रधान है। बदामीलाल को पार्टी अध्यक्ष राजकुमार रोत मैदान से हटाने में असफल रहे हैं। सांसद रोत के लिए चौरासी सीट उनकी प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है। क्योंकि वह वहां से लगातार दो बार विधायक रह चुके हैं। यदि चैरासी से उनकी पार्टी का प्रत्याशी चुनाव हारता है तो उनके बढ़ते प्रभाव को झटका लगेगा।

राजस्थान की सात में से चार विधानसभा सीटों झुंझुनू, देवली-उनियारा, खींवसर में तिकोना व चौरासी में चौकोना मुकाबला होने जा रहा है। झुंझुनू में पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा के मैदान में उतरने से मुकाबला तिकोना हो गया। गुढ़ा जितने मुस्लिम व अनुसूचित जाति के वोट लेंगे उसका सीधा नुकसान कांग्रेस को होगा।

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