Home संपादकीय महाराष्ट्रः क्या मराठा वोट में सेंधमारी कर जरांगे बिगाड़ेंगे धुरंधरों का खेल

महाराष्ट्रः क्या मराठा वोट में सेंधमारी कर जरांगे बिगाड़ेंगे धुरंधरों का खेल

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की सियासी तस्वीर दिलचस्प दिखाई देने लगी है। मराठा वोटों में इस बार नए-नवेले नेता मनोज जरांगे सेंधमारी का माहौल तैयार करने में जुटे हैं। जरांगे ने प्रदेश में महीनों से मराठा आरक्षण की मांग बुलंद की। इसलिए आरक्षण की चाह में बेरोजगार युवा उनसे लगातार जुड़ रहे हैं। हालांकि मनोज जरांगे की सियासी परीक्षा अभी बाकी है।

अतीत में देखा गया है कि किसी मुद्दे पर मुहिम चलाकर भीड़ को अपने साथ जोड़ना और उस भीड़ को वोटों में बदलना, दोनों ही अलग बात है। किसी अलग मुद्दे पर मिला जन समर्थन वोटों में बदल जाए, ऐसा अक्सर होता नहीं। हालांकि शुरुआत में मनोज जबरदस्त दमखम दिखा रहे हैं। जिससे न सिर्फ महायुति से जुड़े लोगों बल्कि महाविकास अघाड़ी नेताओं की नींद हराम हो गई है। पूरी सियासी कहानी इस बार मराठा वोटों पर टिक गई है। जो यह तय करेगा कि किसकी नैया पार लगेगी और किसकी डूबेगी। इसका फैसला 23 नवंबर को होगा जब बहुमत की तस्वीर ईवीएम से बाहर निकलेगी।

महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव इसबार सभी दलों के लिए समान रूप से चुनौतीपूर्ण है क्योंकि बीते लोकसभा चुनाव से ही मराठा मतदाता विभाजित है। कभी शिवसेना का इसपर आधिपत्य था लेकिन अब शिवसेना दो भागों में बंट चुकी है। वहीं, राजनीति के माहिर शरद पवार की पार्टी एनसीपी से भी कभी मराठा मतदाता बहुतायत की संख्या में जुड़े होते थे, उनकी भी पार्टी में दो फाड़ हो गए। भतीजे अजीत पवार अपने साथ आधी एनसीपी को लेकर एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं। हालांकि, लोकसभा चुनाव में शरद पवार से जुड़ा मराठा समुदाय उनके साथ ही बना रहा। उनके कोर वोटरों में अजीत पवार सेंध लगाने में असफल रहे थे।

बात जब मराठों की हो और राज ठाकरे का जिक्र न हो तो बात अधूरी रह जाती है। इस बार राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। उन्होंने 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में करीब ढाई से तीन फीसदी वोट पाया था। हालांकि सीटें प्रत्येक चुनाव में एक-एक ही जीती लेकिन मराठा वोट उन्होंने बेहिसाब काटा था। वोट काट कर तमाम विरोधियों को हराने का काम किया। माहौल इस बार बदला हुआ है, जिसे राज ठाकरे भी भांप चुके हैं। बीता लोकसभा चुनाव उन्होंने एनडीए के साथ मिलकर लड़ा था, जहां उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ।

एनडीए का शीर्ष नेतृत्व भांव चुका है कि महायुति के लिए सबसे बड़ा कांटा मनोज जरांगे बन गए हैं। करीब 32 फीसदी मराठा आबादी और छिटपुट अन्य समुदायों को मिलाकर 55 प्रतिशत प्रदेश की आबादी मनोज के ईद-गिर्द घूम रही है। महायुति को अहसास है कि मनोज ही वो फैक्टर हैं कि जिसके चलते लोकसभा चुनाव में उतनी सफलता नहीं मिली, जितनी उम्मीद थी।

इस बार मराठा वोट काटने के लिए मनोज जरांगे ने कोई पार्टी नहीं बनाई है। पर, निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपने समर्थकों में से करीब 150 उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार की है। मनोज के समर्थक उन सीटों पर खासतौर पर ताल ठोकेंगे, जहां मराठा समुदाय की संख्या सर्वाधिक है। बाकी सीटों पर भी आजाद उम्मीदवार उतारने की तैयारी है। ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी पकड़ कितनी है, उसका अंदाजा उनकी रैलियों में आने वाली भीड़ के जोश से लगाया जा सकता है। जरांगे समूचे प्रदेश में घूम-घूम कर लोगों से भावुक अपील कर रहे हैं- जब तक आरक्षण नहीं मिलेगा, हमें अपनी लड़ाई जारी रखनी होगी।

देखना है कि यह जनसमर्थन उन्हें वोट के रूप में मिलेगा या उनकी स्थिति भी वही होगी जो हरियाणा विधानसभा चुनाव में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी की हुई। जिन्होंने चुनावी अखाड़े में उतर कर अपनी जमानत तक जब्त करा ली।