आतंकवाद एक प्रकार की हिंसात्मक गतिविधि है। अगर कोई व्यक्ति या कोई संगठन अपने आर्थिक, राजनीतिक एवं विचारात्मक लक्ष्यों की प्रतिपूर्ति के लिए देश या देश के नागरिकों की सुरक्षा को निशाना बनाए, तो उसे आतंकवाद कहते हैं। गैर-राज्यकारकों द्वारा किये गए राजनीतिक एवं वैचारिक हिंसा भी आतंकवाद की ही श्रेणी में आती है।‘‘आतंकवाद, राजनीतिक कार्रवाई है, जिसमें किसी राष्ट्र के शासन और उसकी जनता को भय और मनोबल से गिराने के लिए असाधारण हिंसक साधनों का प्रयोग किया जाता है।’’ (आतंकवाद: क्यूबा कनेक्शन, रोजर डब्ल्यू. फॉनटेन, 1988, पृ. 4)। आतंकवाद की दी गई इस परिभाषा के साथ हम यूएन द्वारा परिभाषित की गई आतंक के अर्थ को भी समझ लेते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ‘‘आतंकवाद कोई भी ऐसा कार्य है जिसका उद्देश्य किसी नागरिक को या सशस्त्र संघर्ष की स्थिति में शत्रुता में सक्रिय भाग नहीं लेने वाले किसी अन्य व्यक्ति को मृत्यु या गंभीर शारीरिक चोट पहुंचाना हो, जब ऐसे कार्य का उद्देश्य, अपनी प्रकृति या संदर्भ के अनुसार, जनसंख्या को डराना हो या किसी सरकार या अंतरराष्ट्रीय संगठन को कोई कार्य करने या न करने के लिए बाध्य करना हो।’’ संयुक्त राष्ट्र (1999) आतंकवाद के वित्तपोषण के दमन के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन अनुच्छेद 2 (बी) संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 9 दिसंबर 1999 को संकल्प 54/109।
अब आप इन दोनों ही परिभाषाओं के आधार पर ‘हिज्बुल्लाह’ को रखिए; यह सर्वविदित है कि यूरोपीय संघ ने 22 जुलाई 2013 को हिजबुल्लाह के सैन्य विंग को एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया था। ‘हिज्बुल्लाह’ को संयुक्त राज्य अमेरिका और कई अन्य देशों द्वारा एक आतंकवादी संगठन के रूप में चिन्हित किया गया है। लेबनान पर इजरायली आक्रमण के जवाब में 1982 में गठित हिज्बुल्लाह स्वयं को (अल्लाह की पार्टी) कहता है। हिज्बुल्लाह की अर्धसैनिक शाखा जिहाद परिषद है। यह समूह इजरायल के खिलाफ संघर्ष में फिलिस्तीनी अस्वीकृति समूहों का भी समर्थन करता है और इराक में पश्चिमी हितों पर हमला करने वाले इराकी शिया उग्रवादियों को प्रशिक्षण प्रदान करता है। अपने निर्माण काल से लेकर अब तक ये संगठन इजरायल, अमेरिका समेत अपने दुश्मन देशों के खिलाफ कई अटैक कर चुका है, इसलिए ये एक आतंकवादी संगठन के रूप में अपनी पहचान रखता है । अभी तक न जाने कितने निर्दोष लोगों को ये आतंकी संगठन मौत के घाट उतार चुका है।
दरअसल, ये है ‘हिज्बुल्लाह’ का वह परिचय जोकि सबसे पहले सभी को जानना आवश्यक है। अब इस आतंकवादी संगठन ‘हिज्बुल्लाह’ के चीफ ‘हसन नसरल्लाह’ को इजरायल ने लेबनान की राजधानी बेरूत पर एयर स्ट्राइक कर मार गिराया। स्वभावित तौर पर अब यही माना जाना चाहिए था कि चलो, अनेक लोगों के जीवन में शांति आएगी, जिन लोगों को ‘हसन नसरल्लाह’ के कहने पर मौत के घाट उतारा गया था, उनके परिवार जन को भी यह सांत्वना मिलेगी कि आखिरकार एक आतंकी, उनके दुश्मन का अंत हुआ, लेकिन यह क्या देखने में आ रहा है? जिनके हित ‘हसन नसरल्लाह’ के साथ जुड़े थे, उनका दुखी होना तो समझ आता है, पर भारत में हसन नसरल्लाह की मौत के बाद कई संगठनों, राजनीतिक पार्टियों एवं अन्य लोगों का दुखी होना और विरोध स्वरूप सड़कों पर उतरना समझ नहीं आ रहा है! यदि इतने ही ये मानवाधिकार के संरक्षक हैं तब फिर ये बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों पर चुप क्यों रहे?
जम्मू-कश्मीर के बडगाम की सड़कों पर लोग प्रदर्शन करते दिखे । वे हाथों में नसरल्लाह के पोस्टर लिए हुए थे । ऐसा ही एक प्रदर्शन श्रीनगर के पुराने शहर में देखने को मिला, इसी प्रकार से राज्य के अन्य इलाकों में भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इन प्रदर्शनों का दुखद पक्ष यह है कि भारत के नाबालिगों को भी बरगलाया जा रहा है, उनके दिमाग में मजहबी, जिहादी जहर भरा जा रहा है, इसलिए प्रदर्शन कर रहे ये छात्र कहते पाए गए कि ‘‘अब हर घर से हिजबुल्लाह निकलेगा।’’
आज जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) के अध्यक्ष सैयद सदातुल्लाह हुसैनी भी इस आतंकवादी के मारे जाने पर दुख जता रहे हैं और कह रहे हैं, “हम लेबनान के शहर बेरूत पर अंधाधुंध और बर्बर हवाई हमलों के लिए इजरायल की कड़ी निंदा करते हैं, जिसमें हिज्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह सहित 40 से अधिक लोग मारे गए।” सैयद सदातुल्लाह आतंकवादी संगठन ‘हिज्बुल्लाह’ प्रमुख के मारे जाने पर पूरी दुनिया को जिनेवा कन्वेंशन की याद दिला रहे हैं और कह रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र मिडिल ईस्ट में इस आगजनी को रोकें। जेनेवा समझौता के लिए देखें -(संयुक्त राष्ट्र न्यायिक वर्ष पुस्तिका, 1972)
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने राज्य में चल रहे अपने चुनाव प्रचार को रद्द कर दिया है। पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती ने साफ कहा कि अपना राजनीतिक अभियान रद्द वे इसलिए कर रही हैं, क्योंकि हिज्बुल्लाह ने पुष्टि की है कि इजरायल ने उसके प्रमुख हसन नसरल्लाह को मार दिया है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री ने दावा किया कि वह ‘लेबनानी और फिलिस्तीनी नागरिकों के साथ एकजुटता’ में खड़ी हैं। लेबनान में इजरायली हमले में मारे गए नसरल्लाह के समर्थन में जम्मू-कश्मीर के बडगाम में लोगों ने रैली भी निकाली। जिसमें बड़ी तादाद में महिलाएं भी शामिल हुईं। इसी तरह से श्रीनगर से सांसद और जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता रुहुल्ला मेंहदी ने हिज्बुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह की मौत पर शोक जताते हुए चुनाव प्रचार रोक दिया। उन्होंने हसन नसरल्लाह की मौत को बड़ा नुकसान बताया है।
दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने पीएम मोदी सहित अन्य देशों के नेताओं से इजरायल पर दबाव बनाकर, वहां फिर से शांति स्थापित करने की मांग की है। हसन नसरल्लाह की मौत पर वे भी सबसे अधिक दुखी हैं। इनके अलावा ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएसपीएलबी) के महासचिव मौलाना यासूब अब्बास ने नसरल्लाह की मौत पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए इसे मुस्लिम दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति बताया । वे यही नहीं रुकते, इसके आगे ये मौलाना यासूब अब्बास भारत में सभी शिया समुदाय से अपील करते हुए पाए गए कि वे तीन दिन का शोक मनाने के लिए अपने घरों की छतों पर काले झंडे फहराएं।
जेके अंजुमन-ए-शरी के अध्यक्ष शियान आगा सैयद हसन मोसावी अल सफवी ने कहा, ‘‘हम उनकी (हसन नसरल्लाह) मौत पर चाहे जितना भी शोक मनाएँ, यह हमेशा कम ही रहेगा।…मैं…इस्लामी लोगों से कहना चाहता हूँ कि इससे कुछ असाधारण होगा जिसके लिए उन्होंने अपनी जान कुर्बान कर दी। उनके नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती, लेकिन उनके खून से हज़ारों नसरल्लाह पैदा होंगे और इस मिशन को आगे बढ़ाएँगे और सफलता हासिल करेंगे।’’
आप देखेंगे कि इन सभी के दुख समान हैं, एक आतंकवादी के मरने पर भारत में ये सभी नेता, संगठन प्रमुख अपना दुख व्यक्त कर रहे हैं। यहां प्रश्न बार-बार यही खड़ा हो रहा है कि एक आतंकी सरगना के मारे जाने पर इतना दुख क्यों ? इन दुखी होते नेताओं को भारत का जवान सीमा की रक्षा करते हुए हुतात्मा होने पर याद क्यों नहीं आता है? क्यों नहीं कश्मीर में किसी सैनिक के प्राणोत्सर्ग पर उसकी श्रद्धांजलि में लोग घरों से बाहर निकलते? वास्तव में ये वो लोग हैं, जोकि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू होने का आज भी विरोध कर रहे हैं, जबकि अब तो जम्मू-कश्मीर की जनता भी खुलकर स्वीकार कर रही है कि 370 के खात्में के बाद से उनके राज्य के विकास को पंख लग गए हैं।
जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं पर अत्याचार हुए और अभी भी यदा-कदा घटनाएं घट जाती हैं, किंतु इन नेताओं का मुंह उनके समर्थन में नहीं खुलता! यहां जो बच्चों के मुख से कहलवाया जा रहा है कि ‘‘अब हर घर से हिज्बुल्लाह निकलेगा।’’ आखिर इसके मायने क्या हैं? आज हसन नसरल्लाह की मौत पर जो यह कह रहे हैं कि ‘‘उनके खून से हज़ारों नसरल्लाह पैदा होंगे और इस मिशन को आगे बढ़ाएँगे और सफलता हासिल करेंगे।’’ तो यहां सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि वह मिशन कौन सा होगा, क्या भारत में इस प्रकार के किसी भी आतंकवादी मिशन को स्वीकृति दी जा सकती है या यह भारत जैसे सर्वपंथ सद्भाव वाले देश में बोला जाना क्या किसी अपराध से कम है?
वास्तव में आतंकियों से हमदर्दी रखनेवालों के समर्थन में दिए गए इन सभी वक्तव्यों से यही साबित हो रहा है कि जो लोग भी आज हिज्बुल्लाह प्रमुख की मौत का मातम मना रहे हैं, वे सभी आतंकवाद और हिंसा के साथ खड़े हैं। कम से कम भारत की धरती पर इस तरह की सोच एवं राजनीति बंद होनी चाहिए। इसी में भारत का हित है।