Home संपादकीय बुलडोजर अपराधियों में भय पैदा करता है मी-लार्ड

बुलडोजर अपराधियों में भय पैदा करता है मी-लार्ड

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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल एक बार फिर शर्मसार है। यहां एक निजी स्कूल में एक साढ़े तीन साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ है। बलात्कार करने वाला स्कूल में आईटी विषय पढ़ाने वाला शिक्षक क़ासिम रहमान है। घटना तब सामने आई, जब मासूम के माता-पिता ने पीड़िता का मेडिकल कराया और रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि हुई। अब बात यह है कि जैसे पहले अपराधी के घर के अवैध निर्माण पर बुलडोजर कार्रवाई हो जाया करती थी, क्‍या वह अब हो पाएगी? क्‍योंकि माननीय सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि विभिन्‍न राज्‍य सरकारें बुलडोजर चलाकर अन्‍याय कर रही थीं।

न्यायालय और माननीय न्यायाधीशों की आलोचना का अधिकार किसी को नहीं है। पर किसी भी निर्णय या निर्देश की समीक्षा तो की ही जा सकती है। इस परिदृश्य के थोड़ा पीछे चलते हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हो रही बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने हाल ही में बुलडोजर की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष सॉलिसिटर तुषार मेहता ने कहा भी कि बुलडोजर की कार्रवाई जहां हुई है, वो कानूनी प्रकिया का पालन करके हुई है। अवैध निर्माण पर नोटिस के बाद ही बुलडोजर चल रहे हैं। एक समुदाय विशेष को टारगेट करने का आरोप गलत है। एक तरह से गलत प्रचार है, गलत धारणा (नैरेटिव) फैलायी जा रही है। इस पर जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि सड़कों, गलियों, फुटपाथ या सार्वजनिक जगहों पर किए अवैध निर्माण को समुचित प्रक्रिया के साथ ढहाने की छूट रहेगी। इसके अतिरिक्‍त पर पूरी तरह से रोक है।

जस्टिस गवई का कहना था कि हम किसी नैरेटिव (धारणा) से प्रभावित नहीं हो रहे हैं। जरूरत है कि डिमोलिशन की प्रकिया स्ट्रीमलाइन हो, फिर जस्टिस विश्वनाथन का ये दावा रहा कि कोर्ट के बाहर जो बातें हो रही हैं, वो हमें प्रभावित नहीं करती। अगर गैरकानूनी डिमोलिशन का एक भी मसला है तो वो संविधान की भावना के खिलाफ है। दोनों जजों के आए जवाब सुनकर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बहुत तरीके से कहा भी कि संवैधानिक संस्थाओं के हाथ इस तरह नहीं बांधे जा सकते हैं। न्‍यायालय की इस बेंच ने कहा- अगर कार्रवाई दो हफ्ते रोक दी तो आसमान नहीं फट पड़ेगा। आप इसे रोक दीजिए, 15 दिन में क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी बुल्डोजर जस्टिस पर सवाल खड़े किए थे। गुजरात से जुड़े इस प्रकरण में जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा, किसी शख्स के किसी केस में महज आरोपी होने के चलते उसके घर पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता। आरोपी का दोष बनता है या नहीं, ये तय करना कोर्ट का काम है सरकार का नहीं। जज कह रहे हैं कि किसी का बेटा आरोपी हो सकता है, लेकिन इस आधार पर पिता का घर गिरा देना, ये कार्रवाई का सही तरीका नहीं है। कोर्ट इस तरह की बुलडोजर कार्रवाई को नजरंदाज नहीं कर सकता। ऐसी कार्रवाई को होने देना कानून के शासन पर ही बुलडोजर चलाने जैसा होगा। अपराध में कथित संलिप्तता किसी संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश गुजरात के जावेद अली नाम के याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था।

बात सही है। सप्ताह-दो सप्ताह अगर किसी अपराधी के अवैध निर्माण पर बुलडोजर नहीं चलेगा तो आसमान नहीं फट पड़ेगा। वैसे तो देश भर में जहां तहां अवैध निर्माण हैं। बल्कि अवैध निर्माणों की बाढ़ सी आई हुई है। कायदे से सब पर आज नहीं तो कल कार्रवाई होनी ही है या होनी ही चाहिए। पर यहां यह भी समझना होगा कि सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करने वाले या फिर अपनी ही जमीन पर अवैध तरीके से मकान बनाने वालों की मनोवृत्ति क्या होती है। उन्हें पहले से ही कानून का डर नहीं होता। और ऐसे लोग जब घृणित अपराधों में भी शामिल हो जाएं तब क्या हो। कानून का डर दिखाने के लिए, कानून का राज स्थापित करने के लिए अपराधियों में भय कैसे पैदा हो। न्यायालय की प्रक्रियाओं और उससे मिल रहे न्याय से तो अपराधी मनोवृत्ति को कोई अंतर पड़ ही नहीं रहा था। ऐसे में शासन-प्रशासन ने पहले से ही अवैध निर्माण में रहने वाले अपराधी तत्वों के बीच एक भय तो पैदा किया ही था, कि अगर किसी गंभीर अपराध में, खासकर स्त्री के मान अपमान और देश के सम्मान से खिलवाड़ करोगे तो उसका दण्ड तत्काल मिल जाएगा, तुम्हें ही नहीं तुम्हारे पूरे परिवार को भी। इस भय से कम से कम परिवार के बड़े-बुजुर्ग अपनी बिगड़ी औलादों पर लगाम तो कस रहे थे। इस डर से अपराध कुछ कम हो रहे थे और अदालतों का बोझ भी कम हो रहा था।

वस्‍तुत: जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद द्वारा छतरपुर पुलिस मुख्‍यालय पर हुई इस्‍लामिक भीड़ की तोड़फोड़ के बाद मुख्‍य सरगना पर हुए पुलिस एक्‍शन के विरोध में यह कहकर कि मुसलमानों पर अत्‍याचार हो रहे हैं, न्‍यायालय की शरण ली गई थी। उसका इंट्रेस्‍ट सिर्फ उन मामलों में था जोकि मुसलमानों से जुड़े हैं, जबकि यह पूरा सत्‍य नहीं। देश में जितनी बुलडोजर कार्रवाइयां हुईं हैं, उसमें से अधिकांश बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज के अपराधियों पर ही की गई हैं, किंतु फिर भी उस वक्‍त जिस तरह का माहौल बनाने का विविध मीडिया प्‍लेटफार्म पर प्रयास हुआ, वह भी प्रमाण है कि कैसे इसे ट्रेंड कराने का प्रयास किया गया। बार बार यह सिद्ध करने की कोशि‍श रही है कि मुसलमानों पर भाजपा की जहां भी सरकारें हैं वे टार्गेटेड उन्‍हें अपमानित कर रही हैं। लोग जल्दी ही भूल जाते हैं कि मध्य प्रदेश में ही एक दलित समाज के युवक के ऊपर मूत्र विसर्जन करने वाले के घर पर अगले ही दिन बुलडोजर चल गया था, जबकि यह दुष्कृत्य करने वाला भारतीय जनता पार्टी का ही नेता-कार्यकर्ता बताया जा रहा था और उसके पिता भी भाजपा के ही समर्थक थे।

जहां तक न्यायालयों के रास्ते न्याय पाने की बात है तो देश भर में नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड की रिपोर्ट के अनुसार कुल 25 हाईकोर्ट में 58 लाख 59 हजार केस पेंडिंग हैं। इनमें से करीब 42 लाख केस सिविल और 16 लाख केस क्रिमिनल नेचर के हैं। इन 58 लाख में से 62 हजार मामले 30 साल से लंबित हैं। वहीं, तीन केस 72 साल से चल रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के सभी न्‍यायालयों (सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, डिस्ट्रिक्ट समेत अन्य कोर्ट) में पांच करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं। सभी राज्यों के लोअर कोर्ट्स में कुल 4.34 करोड़ केस लंबित हैं। सबसे ज्यादा केस उत्तर प्रदेश 1.09 करोड़ में पेंडिंग हैं, इसके बाद दूसरा स्थान महाराष्ट्र का है, जहां 49.34 लाख केस पेंडिंग हैं। आंकड़े बताते हैं कि निचली अदालतों में पेंडिंग 70 हजार 587 क्रिमिनल केस 30 साल से ज्यादा पुराने हैं। वहीं, 36 हजार 223 सिविल केस 30 साल से ज्यादा वक्त से पेंडिंग हैं।

इस पेंडिंग यानी लंबित मामलों में न्याय कब मिलेगा और यह पेंडिंग लिस्ट कब खत्म होगी, भगवान भी नहीं बता सकते। एक कहावत यह भी है कि देरी से दिया गया न्याय, न्याय नही कहलाता। न्यायालयों में पेंडिंग मामलों को देखते हुए इस कहावत की कसौटी पर कसें तो फिर न्याय कहां हो रहा है। कहा यह भी जाता है कि न्याय होना ही नहीं चाहिए, न्याय दिखना भी चाहिए। मामलों के बोझ तले न्यायालयों से निकलकर न्याय लोगों के मन में कानून का डर पैदा कर सकेगा और न्याय होता दिखने भी लगेगा, यह कहना अतिश्योक्ति ही होगी। तब कम से कम गंभीरतम और घृणित अपराध करने वालों के अवैध घर पर बुलडोजर चलने से पीड़ित पक्ष को यह तो लग ही रहा था कि न्याय हो गया। निश्चित तौर पर न्याय देने के लिए न्यायालय हैं और सबका अंतिम न्याय तो वो ऊपर वाला ही करता है। पर अपराधी मनोवृत्ति पर लगाम लगाने, उनके मन में भय पैदा करने के लिए ही तो पुलिस और प्रशासन भी है। यह पुलिस और प्रशासन यदि तत्काल कुछ कार्रवाई कर एक संदेश देना चाहता है तो इसमें गलत क्या है। हां, उनके द्वारा की गई कार्रवाई अवैध हो, अर्थात जहां बुलडोजर चला वह पूरी तरह कानूनी प्रक्रियाओं का पालन कर बना घर-मकान-दुकान हो, तब कार्रवाई करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों को दंडित करने के लिए भी तो न्यायालय ही हैं।