Home संपादकीय बच्चियों को उड़ने की आजादी दें, पंख खुद लगा लेंगी

बच्चियों को उड़ने की आजादी दें, पंख खुद लगा लेंगी

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राष्ट्रीय बालिका दिवस (24 जनवरी) पर विशेष

देश में ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ का आज 17 संस्करण मनाया जा रहा है। इस महत्वपूर्ण दिवस की शुरुआत केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा सन-2008 से हुई। इसी दिन यानी 24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी ने पहली बार बतौर प्रधानमंत्री कार्यभार संभाला था। राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर पूरे भारत में विभिन्न स्तरीय कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिनमें ‘सेव द गर्ल चाइल्ड’, ‘चाइल्ड सेक्स रेशियो’ व ‘चाइल्ड क्राइम प्रोटेक्शन’ अभियानों के अलावा बालिकाओं के स्वास्थ्य और उन्हें सुरक्षित वातावरण देने सहित तमाम तरह की जागरूकता मुहिम चलाई जाती है। इसमें सामाजिक और सरकारी संस्थानों की भागीदारी होती है।अफसोस, ऐसी तमाम कोशिशों के बावजूद बालिकाओं के विरुद्ध होने वाले जुल्म और अपराध कम नहीं हो रहे।

किशोरियों की तस्करी सबसे बड़ा चिंता का विषय है। कई राज्यों में बच्चियां अपने घरों में बंदिशों की बेड़ियों में जकड़ी हुई हैं। केंद्र सरकार ने हाल ही में संपन्न हुए संसद के शीतकालीन सत्र में आंकड़ा पेश कर बताया कि पूरे देश में अभी लाखों की संख्या में बच्चियों को उनके अभिभावक स्कूलों में नहीं भेजते। ये हाल तब है जब बच्चियों की शिक्षा पर केंद्र व राज्य सरकारें सजगता से लगी हुई हैं। यहां सरकारों को दोष नहीं दे सकते। बच्चियों से जुड़ी मौजूदा समय की सबसे विकराल समस्या ‘बाल तस्करी’ ही है। इस विकट समस्या का कैसे समाधान हो, इसे लेकर जनमानस कैसे जागरूक हों आदि विषय को ध्यान में रखकर ही सालाना 24 जनवरी को पूरे भारत में ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ मनाया जाता है।

बेटियों के सम्मान में केंद्र सरकार का ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा जबरदस्त सफल रहा है। इससे बालिका लिंगानुपात में भी इजाफा हुआ है। 2014 में बेटियों के जन्मानुपात का आंकड़ा 918 था, तो वहीं 2022-23 में 15 अंकों की छलांग लगाकर ये आंकड़ा 933 तक जा पहुंचा। इस आंकड़े में हरियाणा अभी भी पिछड़ा हुआ है। देश की तरक्की में बेटियों को उड़ने की आजादी मिलनी चाहिए। उनकी शिक्षा-दीक्षा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़नी चाहिए। हालांकि किशोरियों के लिए जबसे माहौल बदला है, उन्होंने अपनी काबीलियत साबित कर दी है। रक्षा से लेकर खेल तक कोई ऐसा क्षेत्र नहीं हैं जहां बेटियां परचम न फहरा रही हों। लड़कियों के प्रति रुढ़िवादी सोच से लोग अब किनारा करने लगे हैं। कुछ लोग जो इस सोच से बाहर नहीं निकल रहे, वे अपनी लड़की को उनके अधिकारों से वंचित रखते हैं, इससे उनका करियर बन ही नहीं पाता। बच्चियों के भविष्य को अंधकार में धकेलने में परिवारों की भी बड़ी भूमिका होती हैं। परिवार ऐसा न करें, उनको समझाने के लिए ही आज का ये खास दिवस मनाया जाता है।

बच्चियों पर जुल्म समाज का सबसे बड़ा कलंक माना जाता है। इस कलंक को मिलकर मिटाना होगा। एनसीआरबी की मानें तो भारत में सालाना हजारों की संख्या में बच्चियां लापता होती हैं, जिनमें से अधिकांश बच्चियों उम्र महज 8-10 वर्ष होती हैं। गृह मंत्रालय के मुताबिक, साल 2019 से 2021 में 13.13 लाख गायब महिलाओं में ज़्यादातर लड़कियां की संख्या रही। वहीं, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार बीते 5 सालों में 2.75 लाख बच्चे गुम हुए जिनमें से 2.12 लाख सिर्फ लड़कियां थीं। लापता बच्चों के मामले में पश्चिम बंगाल अव्वल है जहां साल-2022 में 12,546 लड़कियां गुम हुईं। मध्य प्रदेश दूसरे नंबर पर है जहां 11,161 किशोरियां गायब हुईं। बाकी प्रदेशों के हाल भी अच्छे नहीं हैं। इसके अलावा बाल तस्करी, बाल विवाह और नाबालिगों के साथ यौन शोषण की घटनाएं भी कम होने के जगह बढ़ी हैं। इन्हें सामूहिक प्रयासों से रोकना होगा।

निश्चित रूप से ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ समूचे भारत में बच्चियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों की शिनाख्त कर उन चुनौतियों से जूझने की तरफ ध्यान आकर्षित करता है। हमारी सामाजिक जिम्मेदारी ये बनती है कि बच्चियों के विरुद्ध घटित अपराधों और संभावित खतरों से मुंह नहीं फेरना चाहिए। सबसे पहले बालिकाओं की तस्करी पर अंकुश लगना चाहिए क्योंकि यह किसी भी देश के लिए घोर कलंक जैसा है।