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प्रधान न्यायाधीश के सामने गम्भीर चुनौती

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एनजीटी, एनसीएलटी, कैट जैसी ट्रिब्युनल को छूट देना तो न्याय नहीं कहा जा सकता है

749 जजों ने अभी तक सम्पत्ति विवरण नहीं दिया

दिल्ली, पंजाब और केरल हाईकोर्ट ने सम्पत्ति विवरण देकर मिशाल कायम की है

(शैलेश सिंह)

22 हाईकोर्ट के वेब पोर्टल अब भी अधूरे हैं। 749 न्यायाधीशों ने अभी तक अपना सम्पत्ति विवरण नहीं दिया। 25 हाईकोर्ट और एक सुप्रीम कोर्ट को मिलाकर 782 न्यायाधीश, जो रोज आबादी और देश की सेहत का फैसला करते हैं, उनमें अब तक सिर्फ 98 न्यायाधीशों ने ही सम्पत्ति विवरण दिया है, जिसमें केरल, दिल्ली और पंजाब के न्यायाधीश सबसे आगे रहे। जिसमें केरल के 39 में 37, पंजाब हरियाणा के 55 में से 31, दिल्ली के 39 में से 11 न्यायाधीशों ने अपना-अपना विवरण पोस्ट किया। बात करें सुप्रीम कोर्ट की तो यहां दो तरह के जजों में 27 जो जिला अदालत, हाईकोर्ट होते हुए बने हैं, कुछ जज वरिष्ठ अधिवक्ता से जज बने हैं। मगर सम्पत्ति विवरण देने के मामलें में 33 में से 27 ने अपना विवरण दिया है, मगर यह साफ नहीं हुआ कि विवरण बंद लिफाफे में सीजेआई के पास पहुंचाया गया, या पोस्ट किया गया, इसकी खास वजह यह कि सार्वजनिक रूप से सम्पत्ति की घोषणा न्यायाधीशों की मर्जी के आधार पर है।

बहरहाल मौजूदा सीजेआई का कार्यकाल ज्यादा रहा, आजाद भारत के दूसरे सीजेआई चन्द्रचूड़ हैं, जिनका कार्यकाल दूसरे नम्बर पर है, लिहाजा हमारे हिसाब से सीजेआई का कार्यकाल ज्यादा रहा, विशेष तरह के आदेश भी ज्यादा रहे, इसीलिए उनसे उम्मीदें भी खत्म नहीं हो रहीं, इन हालात में अगर देश के सभी जजों को सम्पत्ति विवरण देना जरूरी के आदेश हो जाते, वेब पोर्टल पर अपलोड करना जरूरी लिख जाने से आजाद भारत के इतिहास में पहला और अनोखा ऐसा आदेश होता, जो आबादी, नेता, जज और भी ज्यादा खुश हो सकते थे, और देश में कुछ ऐसे विचार जो नेता, अफसर के लिए जरूरी और जजों को छूट है, जज चाहें तो सम्पत्ति विवरण दें, ना चाहें तो ना बतायें। ऐसे दूषित विचारों पर विराम तो सीजेआई की कलम से अनोखी पहल बन सकती थी। खैर 782 न्यायाधीशों में सिर्फ 98 ने ही सम्पत्ति विवरण दिया है, इस हिसाब से हाईकोर्ट के हों, सुप्रीम कोर्ट के हों या एनजीटी, एनसीएलटी, कैट जैसी बड़ी ट्रिब्युनल के हों, सभी जजों को अपनी अपनी सम्पत्ति विवरण देनी चाहिए, चूंकि आधुनिक दौर में तरह तरह की विसंगतियां, तरह तरह के विचार पर विराम लगाना भी न्याय का ही एक हिस्सा है।

यूं तो सदन में जजों के सम्पत्ति विवरण सार्वजनिक कराने की चर्चा सालों-साल से सुनी जा रही, लेकिन कुछ ऐसे वाक्या हुये, जिसमें एक को राहत मिली, उसी तरह के अपराध में दूसरे को राहत नहीं मिलने से लोग अपने अपने तरह से विचार बना लेते हैं, जो सुर्खियां बनने लगते हैं। बहरहाल  07 अगस्त 2023 को संसद से जो कानून निकला, उसने न्याय में हड़कम्प मचा दिया है, लोगों में कहीं कौतूहल तो कहीं भौचक्कापन देखा और सुना जा रहा है। बहरहाल यह कानून तो बेहतर है, और इसको ज्यादातर न्यायाधीश पहले से ही मान रहे हैं, अब भी विवरण दे रहे हैं, मगर सवाल यह कि लखनऊ, इलाहाबाद और बंबई जैसे हाईकोर्ट से सम्पत्ति विवरण देने की शुरूआत भी नहीं हुयी, और इसी के साथ और अगर ट्रिब्युनल को इस कानून में छूट दी जाती है, तो यह सब 100 फीसदी इंसाफ तो नहीं कहा जा सकता है। ना आरटीआई लागू होगी, ना सम्पत्ति विवरण दिया जायेगा, और कुछ मामलों में संदेह के हालात बनेंगे, यह 100 फीसदी न्याय संगत तो नहीं कहा जा सकता है। बहरहाल आजादी से अब तक यह पहला मामला आया है जहां प्रधान न्यायाधीश चन्द्रचूड़ के सामने गम्भीर चुनौती रखी गई है।

आईएएस अफसरी तो दीवारें कूद रही

आईएएस अफसरी तो दीवारें कूद रहीं, कानून मान नहीं रहे, और प्रमोशन फिर भी हो रहे। 2013 से अब तक आईएएस अफसरों के बारे में लिखा जाये तो ना आरटीआई का जवाब दे रहे, ना गृह मंत्रालय में सम्पत्ति विवरण दे रहे, वेब पोर्टल अधूरे पड़े, गृह मंत्रालय का विशेष विभाग भी इतना विशेष है कि वहां वो खुद तो देख सकते हैं कि किसने दिये, नहीं दिये। मगर आबादी देखना चाहे तो उसके लिए ताला लगा दिया है। जबकि 2013 से अब तक देखा जाये तो 70 फीसदी से ज्यादा आईएएस ना तो विवरण दे रहे और ना ही गृह मंत्रालय उनके प्रमोशन रोकता है। हद तो यह है कि ये तो सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, एनजीटी जैसे बड़ी अदालतों के आदेशों का भी पालन नहीं करते हैं, उससे भी भौचक्का करने वाली बात यह कि इनके ज्यादातर गम्भीर अपराध भी सुनवाई से ही टाल दिये जाते हैं।