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देश को सशक्त स्त्री विमर्श की जरूरत

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देश स्त्री उत्पीड़न की घटनाओं से चिंतित है। यह समाज और राज दोनों के लिए पीड़ादायी है। स्त्री उत्पीड़कों को दण्डित करने के लिए अनेक कानूनी प्रावधान हैं। कानून पालन कराने वाले शासकीय तंत्र द्वारा अपना काम किया जा रहा है। लेकिन समाज में ऐसी घटनाओं पर समुचित चिंतन नहीं हो रहा है। हम सहस्त्रों वर्ष प्राचीन राष्ट्र हैं। संस्कृति ही समाज की गतिशीलता तय करती है। संस्कृति ही राष्ट्रजीवन की संचालक है। स्त्री-पुरुष सम्बंधों पर वैदिक काल में काफी चिन्तन हुआ था। संस्कृति की महत्ता का चिन्तन इसलिए और जरूरी है कि भारत का राष्ट्रजीवन संस्कृति और दर्शन के क्षेत्र में बहुप्रतिष्ठित था और समाज के नियमन का काम करता रहा है। स्त्री महत्ता और प्रतिष्ठा के अनेक सूक्त ऋग्वेद से लेकर आधुनिक काल तक विद्यमान हैं। स्मृतियों में दीर्घकाल तक अविवाहित बने रहने की आलोचना की गई है और गृहस्थ धर्म की प्रशंसा। विवाहित होना सम्मानीय था। एक सुंदर मंत्र में अग्नि से प्रार्थना है कि वह सभी देवों को पत्नी सहित लाएं। पत्नी हीन पुरुष को यज्ञ करने के अधिकार से वंचित किया गया है।

भारतीय समाज में स्त्रियां प्रत्येक स्थिति में सम्मानीय रही हैं। वैदिक काल में स्त्री सम्मान की अनेक कथाएं चलती थीं। वैदिक काल की एक प्रतिष्ठित महिला मुदग्लानी हैं। वह रथ पर चढ़ कर युद्ध में हिस्सा लेती थीं। उनकी वीरता की प्रशंसा थी। युद्ध के वर्णन में कहा गया है कि, ‘‘युद्ध के समय उनके वस्त्रों का संचालन वायु देव ने किया था।‘‘ ऋग्वेद के अनुसार युद्ध में विपशला का पैर कट गया। अश्वनी देवों ने उसे धातु का पैर लगा दिया था। पति और पत्नी को मिला कर दंपत्ति बनता है। दंपत्ति में नारी की प्रतिष्ठा है। दंपत्ति स्त्री-पुरुष दोनों से मिल कर बना है। ऋग्वेद में अनेक सूक्तों में किसी न किसी रूप में स्त्री सम्मान का तत्व मौजूद है। सृष्टि की उत्पत्ति जल से होने का तथ्य चार्ल्स डार्विन ने भी स्वीकार किया है। ऋग्वेद में ‘आपः मातरम‘-जलमाताओं को नमस्कार किया गया है। सृष्टि के आदितत्व की खोज महत्वपूर्ण अभिलाषा है। लेकिन उसे स्त्रीलिंग में याद करना स्त्री का आदर है। ऐसा यूनान में भी नहीं रहा। ऐसे ही ऋग्वेद में अदिति नाम की एक महादेवी अदिति हैं। वह अखण्ड अस्तित्व हैं। कहा गया है, ‘‘इस अस्तित्व के सभी तत्व अदिति हैं। अब तक जो कुछ हो गया है और जो कुछ भविष्य में होगा वह सब अदिति है।‘‘ ऋग्वेद का सूक्त पठनीय है। अदितिः द्यौः अदितिः अन्तरिक्षं अदितिः माता सः पिता सः पुत्रः अदितिः विश्वेदेवाः अदितिः पंचजनाः अदितिः जातम जनित्वम-द्युलोक अदिति है, अंतरिक्ष उसके नीचे है, वह भी अदिति है, माता-पिता-पुत्र सब अदिति हैं, सारे देव अदिति हैं, जो पंचजन सप्तसिन्धु में निवास करते हैं, वह सब अदिति हैं। जो कुछ उत्पन्न हुआ है और जो कुछ आगे उत्पन्न होगा, वह सब अदिति है। (ऋग्वेद 1.89.10) इस तरह एक अद्वैत शक्ति की अनुभूति देवी के रूप में की गई है। यूनानी देवतंत्र में अदिति के समान भाव और गूढ़ दार्शनिक अर्थ रखने वाली कोई भी देवी नहीं है।

विवाह नाम की संस्था का विकास धीरे-धीरे हुआ है। ऋग्वेद के रचनाकाल तक विवाह संस्था का समुचित विकास हो रहा था। ऋग्वेद में अनेक मंत्रों में विवाह की प्रतिष्ठा है। विवाह सूक्त के एक सुंदर मंत्र में नववधु को आशीर्वाद दिया गया है और नववधु को शुभकामनाएं देते हुए कहा गया है कि, ‘‘यह नववधु दीर्घकाल तक जिए। दीर्घकाल तक काम करे। ससुर और सभी परिजनों पर शासन करे।‘‘ यह भारतीय संस्कृति का प्राचीन तत्व है। परंपरा पीछे सहस्त्रों वर्ष से चली आ रही है। किसी स्त्री को तंग करने और परेशान करने की कोई छूट प्राचीन परंपरा में नहीं है। तुलसीदास जी ने स्त्री अपमान के विरुद्ध चौपाई में कहा है, ‘‘अनुज बधू भगिनी सुत नारी/सुनु सठ ए कन्या सम चारी/इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई/ताहि बधे कछु पाप न होई।-तुलसीदास ने स्त्री उत्पीड़क को सीधे मौत की सजा सुनाई है। कानून अपना काम करे और समाज अपना। समाज के लिए वर्तमान समय चुनौतीपूर्ण है।

भारत में नारी की स्थिति सभी कालों में सम्माननीय रही है। उन्हें मातृशक्ति की संज्ञा दी गई है। पूर्वजों ने स्त्री को समाज का संरक्षक माना है। बृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार एक समय राजा जनक ने विद्वानों की सभा बुलाई थी। बहुत दूर-दूर के विद्वान इस गोष्ठी में सम्मिलित थे। उनमें से एक गार्गी भी थी। विद्वानों की सभा में गार्गी ने याज्ञवल्क्य से सीधे सवाल पूछे थे। पूछा गया था कि, ‘‘यह संपूर्ण अस्तित्व किस तत्व पर टिका हुआ है?‘‘ गार्गी ने तमाम सवाल पूछे थे। उनमें से एक सवाल यह भी था कि, ‘‘सृष्टि किस आधार पर खड़ी है।‘‘ उत्तर दिया, ‘‘जल पर।‘‘ फिर पूछा गया कि, ‘‘इस अस्तित्व को कौन देवता आधार देते हैं?‘‘ गार्गी ने उत्तर के बाद कहा, ‘‘जल किसमें आधारित हैं?‘‘ गार्गी ने पूछा, ‘‘इस विराट अस्तित्व का आधार क्या है?‘‘ याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया ब्रह्म ही सबको धारण करता है। ब्रह्म ही सर्वोच्च हैं। गार्गी ने अगला प्रश्न पूछा कि, ‘‘ब्रह्म किस पर आधारित हैं। याज्ञवल्क्य ने कहा, ‘‘ ब्रह्म सर्वोच्च हैं। ब्रह्म ही भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट होते हैं। हे गार्गी ब्रह्म को लेकर सवाल नहीं पूछा करते। ब्रह्म का कारण ब्रह्म हैं। इस संसार के सभी कारक तत्व ब्रह्म में ही सक्रिय हैं। ब्रह्म असीम हैं। अनंत हैं।

गार्गी की प्रतिभा अद्भुत थी। राम-सीता की जोड़ी में सीता और राम दोनों की विशिष्टता देखी जाती है। कोई बड़ा नहीं। कोई छोटा नहीं। सीता जैसा चरित्र दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिलता। शिव-पार्वती में पार्वती प्रथमा हैं और वह सभी अवसरों पर शंकर जी से विभिन्न विषयों पर गहन प्रश्न पूछा करती हैं। कैकई और दशरथ के कथानक में कैकई विचारणीय हैं। भारतीय परंपरा व साहित्य में सर्वत्र स्त्री सम्मान की गूंज है। यत्र नारी अस्तु पूजते रमंते ततदेवता-जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवता रहते हैं। नारी माता हैं। अनेक प्रतीकों में स्त्री को माँ कहा गया है। माता से बढ़ कर दूसरा कोई प्रतीक नहीं है। यहां भारत को भी भारत माता कहा गया है। अथर्ववेद के भूमि सूक्त में पृथ्वी को माँ बताया गया है। अधिकांश नदियों को भी हम माता ही कहते हैं। वैदिक काल में यज्ञ की अतिरिक्त प्रतिष्ठा रही है। यज्ञ विधान के अनुसार पूजा में पत्नी की उपस्थिति अनिवार्य है। अथर्ववेद के एक सुंदर मंत्र में ऋषि पत्नी से कहते हैं, ‘‘तुम ऋक हो। मैं साम गान हूं। मैं अंतरिक्ष हूं। तुम पृथ्वी हो।‘‘ भारतीय संस्कृति में मां सर्वोत्तम अनुभूति है। वह जननी है और स्त्री है। हम हिन्दू समाज के लोग अवतारवाद भी मानते हैं। संसार में अवतरित होने के लिए एक मां की आवश्यकता होती है। भगवान भी अपने अवतार में माँ को ही माध्यम बनाता है। हम भारत के लोग मां का विस्तार हैं। माँ न होती तो हम न होते। भारत के लोकजीवन को स्त्री अपमान की वर्तमान घटनाओं को लेकर सजग रहना चाहिए। देश को इस समय एक सशक्त स्त्री विमर्श की आवश्यकता है।