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दम तोड़ने लगा बीएमडब्ल्यू एक्ट 2016

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शैलेश सिंह

एनजीटी की सुनवाई बचनी चाहिये, अन्यथा मकसद जिंदा कर पाना असंभव है। उदाहरण के लिए 12 मार्च 2019 को आदेश दिया कि पूरे देश के डिफॉल्टर अस्पतालों से जुर्माना लिया जाये उनके खिलाफ प्रोसिक्यूशन किया जाये, और ये सारा विवरण वेबसाइट पर अपलोड किया जाये इसके बाद 15 जुलाई को रेट बने, पूरे देश पर लागू किए गए, फिर 18 जनवरी की सुनवाई में देश के 319907 अस्पतालों मे 1.62 लाख अवैध अस्पताल बताये गये, 28816 काननों के वॉयल्टर बताये गये, 17196 डिफॉल्टर बताये गये, मगर सभी डिक्लेयर डिफॉल्टर और वॉयलेटर के खिलाफ कब प्रोसिक्यूशन किया, किस अस्पताल से कितना जुर्माना वसूल किया, ये एनजीटी की वेबसाइट पर नहीं है, सीपीसीबी की वेबसाइट पर नहीं है, किसी राज्य की हेल्थ विभाग की वेबसाइट पर भी नहीं है, देश की किसी भी राज्य प्रदूषण की वेबसाइट पर नहीं है। यह काफी है बताने के लिए की इस मामले में एनजीटी की सुनवाई का स्तर गिराया गया, सभी 17196 डिफॉल्टर और 28816 वायलेटर को सजा के आदेश नहीं दिलाये गये। यह बीएमडब्ल्यू एक्ट 2016 की सांस बंद करने जैसा है, एनजीटी की बनाई हुई गाइडलाइन जुलाई 2019 का गला दबाने जैसा हुआ, मगर एनजीटी एक्ट की धारा 19/5 और आईपीसी की धारा 193 के बाद भी केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की झूठी और अधूरी रिपोर्ट की जीत हुई, गुनाह और गुनहगारों को बचाने के लिए अफसर की हेराफेरी कामयाब हुई, इस केस की सुनवाई, इस केस के ऐतिहासिक फैसले, ऐतिहासिक गाइडलाइन और न्यायमूर्ति की जाँच रिपोर्ट सब कुछ दूसरे केस में जोड़ दिया, मगर चतुराई देखिए की डिफॉल्टर यहां के हों, या वहां के, सजा किसी को नहीं दी गई, मामला 2021 का हो या दिसंबर 2024 का, वसूली किसी से नहीं हुई बीसों हजार करोड़ की वसूली हेराफेरी के भट चढ़ाई गई, ये अपराध करने वालों के लिए तो अच्छी, मगर देश के लिए कानून के लिए, बुरी खबर है। इससे भी मजेदार सच यह कि आज वही ऐतिहासिक आदेश, ऐतिहासिक गाइडलाइन किस हाल में हैं, ये और भी आहत करने वाली खबर है। इसलिए आसानी से लिखा जा सकता है कि एनजीटी बनाने के मकसद बचने से पहले एनजीटी की सुनवाई बचनी चाहिए, क्योंकी जो एनजीटी पाताल से तारा मंडल तक की चमक वापस लाने की पावर रखती है, उसका काननों और 25, 26 जैसी हाड़ कपाने वाली धाराएं, फिर भी कानूनों के कान मरोड़ने वालों की जीत होने लगे तो एनजीटी या सुप्रीम कोर्ट को अपनी सुनवाई और अपने आदेश का रूप बदलना चाहिए।

अब देखिये तीन रिपोर्ट, तीनों में डिफॉल्टर, मगर सजा किसी को नहीं।
ना गुनाह, ना गुनहगार वेबसाइट पर, ना सजा ना वसूली वेबसाइट पर।
13 जनवरी 2021 की रिपोर्ट में 319907 अस्पतालों मे 1.62 लाख अवैध, 28816 वॉयलेटर और 17196 डिफॉल्टर बताये गये। 8.12.21 की रिपोर्ट में देश के 350854 अस्पतालों मे 48154 अवैध 22261 वॉयलेटर और 13389 डिफॉल्टर बताये गये। 22 एवं 27 अगस्त 2024 की रिपोर्ट में देश के 434568 अस्पतालों मे 14853 वॉयलेटर, 44451 डिफॉल्टर बताये गये जिनमे यूपी, एमपी, गुजरात सहित दस राज्य थके हुए बताये गये।