Home संपादकीय कमला-ट्रम्प डिबेट: किसकी हुई जीत, क्या हैं इसके निहितार्थ

कमला-ट्रम्प डिबेट: किसकी हुई जीत, क्या हैं इसके निहितार्थ

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अमेरिकी प्रेसिडेंशियल डिबेट में हार-जीत को डोनाल्ड ट्रम्प ने बहस का मुद्दा बना लिया है। उन्होंने समर्थकों में यह कहना शुरू कर दिया है कि उनके साथ धोखा हुआ। एबीसी टीवी नेटवर्क की टीम के दो और कमला हैरिस, तीनों ने साँठगाँठ कर उनके साथ धोखाधड़ी की, फिर भी जीते वही हैं। उन्होंने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि ‘बस, अब वह कमला के साथ और डिबेट नहीं करेंगे।‘

असल में डोनाल्ड ट्रम्प सोच कर तो यह चले थे कि वह एक नवागंतुक कमला हैरिस पर कड़े आक्षेप लगा कर डिबेट जीत लेंगे लेकिन हुआ इसके उलट। कमला मंच पर आते ही जैसे ही शिष्टाचारवश हाथ मिलाने ट्रम्प तक पहुँची, उन्होंने यह कहकर उपहास उड़ाने की कोशिश की, ‘…डिबेट का मज़ा लें। इसके बाद तो करीब डेढ़ घंटे तक एबीसी नेटवर्क के दोनों संवाददाताओं के सवालों पर कैलिफ़ोर्निया में स्टेट अटॉर्नी जनरल रहीं कमला हैरिस ने अपने सीधे-सपाट जवाबों से ट्रम्प को कटघरे में खड़ा कर दिया। यह भी पता चला कि ट्रम्प ने बाइडन-कमला हैरिस शासन की कथित बदहाली और अपने ही देश की अस्मिता पर जो घिनौने आरोप लगाए, ज्यादातर तथ्यहीन निकले।

यहां तक कि ट्रम्प के मुरीद एक फ़ॉक्स न्यूज़ संवाददाता को कहना पड़ा कि डोनाल्ड ट्रम्प कसौटी पर खरे उतरने में विफल रहे। ट्रम्प की बॉड़ी लैंग्वेज बता रही थी कि वह डिबेट के दौरान सारा समय असहज रहे। उनका चेहरा तमतमा रहा था। अब तो चुनाव के परिणामों को लेकर ज्योतिषगण भी ट्रम्प की जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है। इसका नतीजा यह सामने आ रहा है कि ‘ट्रम्प सोशल मीडिया कंपनी’ के शेयर डिबेट के बाद से नीचे गिर रहे हैं।

इस प्रेसिडेंशियल डिबेट को लेकर लोगों में बड़ा उत्साह था। इसे एक ‘उत्सव’ की तरह न मनाएँ, ऐसा हो नहीं सकता। इसके दो प्रमुख कारण रहे। एक, इस बार दूसरी टर्म के लिए राष्ट्रपति बाइडन (81) के 27 जून को पहली डिबेट में मात खाने और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के मैदान में उतरने से डिबेट और बहुचर्चित हो गई। ट्रम्प बड़ी मुश्किल से ‘एबीसी’ टीवी नेटवर्क पर डिबेट के लिए तैयार हुए थे। शुरू में तो यही कहते रहे कि फ़ॉक्स नेटवर्क पर करा लें। बहरहाल, पिछले मंगलवार (10 सितंबर) को हुई इस डिबेट को क़रीब सात करोड़ लोगों ने देखा। डिबेट की ख़ास बात यह थी कि इसे देखने-सुनने के लिए अमेरिका के बड़े शहरों में बाज़ार सुनसान थे, पीक आवर्स में सड़क पर अपेक्षाकृत कम वाहन थे। हम ‘रामायण’ सीरियल के शुरूआती दिनों को याद करें, तो ठीक वैसा नजारा प्रेसिडेंशियल डिबेट का दिखाई पड़ रहा था। फ़िलेडेल्फ़िया के नेशनल कांस्टीचूशन सेंटर में हुई इस डिबेट में पंजीकृत मतदाताओं को प्रवेश की अनुमति थी। सेंटर के बाहर ख़ासी चहल-पहल थी।

ट्रम्प के तथ्यहीन, गोलमोल जवाब और अवैध इमीग्रेंट्स के पालतू बिल्ली-कुत्ते खाने की मनगढ़ंत कहानी से बड़ी थू-थू हो रही है। ट्रम्प के बार- बार मौजूदा प्रशासन में प्रत्येक ज़िम्मेदारी के लिए बाइडन के साथ कमला हैरिस पर ज़िम्मेदारी थोपने का औचित्य भी लोगों को रास नहीं आया। कमला हैरिस ने उन्हें याद दिलाया, वह राष्ट्रपति नहीं, उपराष्ट्रपति हैं और वह उपराष्ट्रपति की ज़िम्मेदारियां बखूबी जानते हैं। कमला हैरिस ने डोनाल्ड ट्रम्प को अमेरिका के ज्वलंत मुद्दों में शामिल गर्भपात, इमीग्रेशन, अपराध और आये दिन बंदूक हिंसा, महंगाई, बेरोजगारी तथा विदेश नीति के अन्तर्गत नाटो में अमेरिका की भूमिका आदि मुद्दों पर भी खूब लपेटा। ऐसे में ट्रम्प को अनेक मौकों पर गुस्से से तमतमाते देखा गया। गर्भपात पर पूछे गये एक सवाल के जवाब में ट्रम्प को अपने बयान बदलने पड़े और कहना पड़ा कि उनकी राष्ट्रीय स्तर गर्भपात बंद कराने की कोई योजना नहीं है। बंदूक हिंसा पर सवाल आया तो ट्रम्प को अपनी बात ही बेमानी लगी। कमला ने जोर देकर कहा कि संविधान प्रदत आत्मरक्षा के लिए बंदूक पर प्रतिबंद का उनका कोई प्रस्ताव नहीं है। आत्म सुरक्षा के लिए उनके खुद के पास बंदूक है। एक क्षण ऐसा भी आया जब ट्रम्प के इज़राइल-फ़िलिस्तीन औरूरुस-यूक्रेन युद्ध को चौबीस घंटों में समाप्त किए जाने के दावे के बारे में पूछा गया तो वह युद्ध समाप्ति का कोई फ़ार्मूला नहीं दे पाये। सिवा इसके कि उनके रूस, चीन और यूक्रेन के राष्ट्रपति से अच्छे संबंध हैं।

इसके विपरीत कमला हैरिस ने अमेरिका की नाटो देशों से अच्छे संबंधों और इज़राइल-फ़िलिस्तीन युद्ध के तत्काल युद्धविराम और दो राष्ट्र के सिद्धांत पर जोर दिया। ‘टाइम’ पत्रिका की ताजा रिपोर्ट पर नज़र दौड़ाएँ तो इस कड़े मुक़ाबले में भारतीय मूल की कमला हैरिस ने आशा के विपरीत ट्रम्प को झकझोड़ने में बड़ी सफलता अर्जित कर ली है। अभी मतदान के 55 दिन (5 नवंबर) बचे हैं। कमला हैरिस-टिम वाल्ज की जोड़ी चुनावी फंड में बाजी मार चुकी है। अब काँटे की टक्कर वाले सात राज्यों में मूलतः अधिकाधिक श्वेत मत बटोरने की कोशिशें हो रही हैं, जबकि ट्रम्प और उनके साथियों का सारा दारोमदार अपने इवेंजिलिस्ट श्वेत मतों के अलावा अश्वेत, हिस्पैनिक और एशियाई वोटों पर है। ट्रम्प को यहूदी मत मिल रहे है, तो कमला फ़िलिस्तीनी मुस्लिम मतों को रिझाने में लगी हैं। इस तरह रेड और ब्यू राज्यों में अपने अपने डेलीगेट के साथ जो भी कुल 538 डेलीगेट मतों में 270 डेलीगेट मत बटोर पाने में सफल हो जाएगा, उसी के सिर सेहरा बंधना तय है। ‘इकोनॉमिस्ट’ न्यूज़ मीडिया की मानें तो इस बार विजयी सेहरा बँधना भी सहज नहीं होगा, बशर्ते हार-जीत का फ़ैसला बड़ा न हो। दोनों ओर से तलवारें चमकाई जा रही हैं।

सत्ता हस्तांतरण जोखिम भरा खेल: डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस के बीच फिलहाल काँटे की टक्कर है। कमला हैरिस ने आश्वस्त किया है कि सत्ता हस्तांतरण में उनकी ओर से किसी अप्रिय घटना की उम्मीद न करें। लेकिन साथ ही उन्होंने देशवासियों को सचेत किया है, ‘एक बात ग़ौर कर लें कि आपराधिक मामलों में सुप्रीम कोर्ट से ‘इम्युनिटी’ मिलने के बाद डोनाल्ड ट्रंप व्हाइट हाउस में पुनः पदार्पण करते हैं तो उन पर कोई अंकुश नहीं रह जाएगा।’ ट्रम्प यह बार-बार कह चुके हैं कि उनके विरुद्ध सभी आपराधिक मामले राजनैतिक विद्वेष की वजह से लगाए गए थे। वह सत्ता में आते हैं तो डेमोक्रेट के विरुद्ध भी वे वैसा ही सलूक करने को स्वतंत्र होंगे। हालाँकि उन्होंने उपद्रव में किसी तरह के हाथ होने से इनकार किया है। उन्होंने तो उपद्रवियों को शांत रहने की अपील की थी। डेमोक्रेट की ओर से शंकाएँ व्यक्त की जा रही हैं कि ‘एक बार सत्ता में आने के बाद डोनाल्ड ट्रम्प अपने अटॉर्नी जनरल को आदेश देकर अपने विरुद्ध आपराधिक मामले वापस लेने का आदेश दे सकते हैं।

अमेरिका ग्रेट अगेन का राग अलापने और चीन से सीमा शुल्क के रूप में अरबों डॉलर अर्जित करने में ट्रम्प ने अपनी पीठ थपथपाने में कोई कमी नहीं छोड़ी, वहीं बाइडन -कमला हैरिस प्रशासन में आर्थिक स्थिति के बिगड़ने और इमिग्रेंट्स के रूप में अपराधियों को शरण दिए जाने के ढेरों आरोप लगाए। उन्होंने देश में बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई दरें बढ़ने से मध्यम आयवर्ग की समस्याओं का चित्र खींचने की भरपूर कोशिशें की। लेकिन कॉर्पोरेट समुदाय और उच्च वर्ग की आय पर करों में कटौती का प्रस्ताव रुचि कर नहीं था। ट्रम्प की ओर से भुखमरी के शिकार अवैध इमिग्रेंट्स के बिल्ली आदि खाने के निरर्थक आरोप मढ़े जाने की बात भी किसी के गले नहीं उतरी।

पिछली 27 जून को बाइडन और ट्रम्प के बीच पहली नेशनल टीवी डिबेट में राष्ट्रपति के लड़खड़ाने और उम्मीदवारी से हटाने के बाद उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को नाटकीय रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया था। इसके पश्चात कुछेक डेमोक्रेट को छोड़ कर पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, बिल क्लिंटन और कांग्रेस में प्रतिनिधि सभा की पूर्व स्पीकर नैन्सी पेलोसी सहित सीनेटर ने कमला को समर्थन दिया है। इस समय कमला काँटे की टक्कर वाले सात राज्यों में कड़े मुकाबले में हैं। इनमें तीन राज्यों में कमला हैरिस बढ़त बना चुकी हैं। इस डिबेट के तुरंत बाद अमेरिका की प्रख्यात गायिका स्विफ्ट टेलर ने जिस तरह कमला हैरिस का समर्थन किया है, उससे उनके मुरीद दो करोड़ से अधिक युवाओं से कमला हैरिस को राहत मिली है।

आपराधिक मामले: इस डिबेट में एक क्षण वह भी आया जब ट्रम्प ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में आपराधिक वृत्ति के लाखों अवैध इमिग्रेंट्स घुस आये हैं। इस पर कमला ने यह कह कर ट्रम्प का मुँह बंद कराने में कोई चूक नहीं की कि वह तो ख़ुद न्य यॉर्क ‘हुश मनी’ सिलसिले में 34 विभिन्न मामलों में दोषी हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है कि एक ऐसा व्यक्ति जो खुद राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक अपराधों, चुनाव में हस्तक्षेप और यौन आपराधिक मामलों में दोषी हो, उसके खुद के अपराधों के बारे में क्या कहेंगे? ट्रम्प ने शुरुआत में ही कमला हैरिस को एक मार्क्सवादी, आर्थिक और विदेश नीति में नई नवेली डेमोक्रेट के रूप में चित्रित करना शुरू किया। वह यह कहते भी नहीं चूके कि बाइडन-कमला हैरिस के पिछले साढ़े तीन साल के कालखंड में अमेरिका ऐसी बुरी स्थिति में आ गया है कि यह तीसरे विश्वयुद्ध को रोक पाने में असमर्थ है। जबकि उनके नेतृत्व में यूक्रेन-रूस युद्ध हो अथवा इज़राइल-हमास युद्ध, वह चौबीस घंटों में समाप्त कराने की क्षमता रखते हैं। हालाँकि डिबेटर डेविड के पूछे जाने पर ट्रम्प के पास कोई फ़ार्मूला नहीं था।

यक्ष प्रश्न यह कि ‘क्या चुनाव के लिए बचे शेष समय में शीर्ष डेमोक्रेट अपनी उम्मीदवार कमला के पक्ष में कथित ‘ग्लास सीलिंग’ से ग्रस्त श्वेत महिला-पुरुषों को मतदान के दिन राष्ट्रपति जैसे उच्चपदस्थ पद के लिए वोटबैंक में तब्दील कर पाएँगे। प्रथम महिला और पूर्व में विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन श्वेत समुदाय में ख़ासी परिचित होने के बावजूद आठ साल पहले इसी ‘ग्लास सीलिंग’ वाली हताशपूर्ण मनोवृत्ति की मार झेल चुकी हैं। अश्वेत बराक हुसैन ओबामा एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हुए, जिन्हें मुस्लिम, अश्वेत-श्वेत, लैटिन अमेरिकन और एशियाई मतदाताओं का स्विंग स्टेट में एकमुश्त समर्थन मिला।