Home राष्ट्रीय आईजी मोहित की असली अग्निपरीक्षा

आईजी मोहित की असली अग्निपरीक्षा

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शैलेश सिंह

गद्दार फौज सिपैटों की! गद्दार एसएचओ, सरगना एसएसपी बोझ बन गए योगी की मेहनत और मोदी की मंशा पर। सिपैटे ने कहा बिजली काट दो गांव में अंधेरा कर दो। एसएचओ बोला दबिश पड़ने जा रही, एसएसपी बोला गैंगस्टर की सूची में विकास का नाम नहीं, कोई बात नहीं। भला बताओ ऐसी खूनी वर्दी है तब कैसे बचेंगे भले अफसर? यही नहीं न जाने कितने वांछित न जाने कब से, मगर 52 बीघा में पसरे पड़े डीएम साहब न जाने किस तरह वांछितों की फाइल से संतुष्ट रहते हैं, यह अफसरों की मोटाई के सिवा कुछ और नहीं कहा जा सकता। अगर कहें कि शहीद सीओ देवेन्द्र मिश्रा को निगल गई वर्दी तो कहीं गलत नहीं। निर्दोष एसएचओ महेश चन्द्र यादव का खून पी गई वर्दी, साथ में करा दी 06 जवानों की हत्याएं। बहरहाल 07 जवान जिंदगी और मौत से जूझ रहे, 08 जवान, अफसर शहीद हुए मगर 20 से ज्यादा उन पुलिस वालों को अभी तक हथकड़ी नहीं लगाई गई जिनकी उंगलियां खून में सनी हैं। न तो मक्कार एसएसपी से पूछा गया कि गैंगस्टर सूची से हत्यारे विकास का नाम गायब करने की वजह क्या है? न ही एसएचओ चैबेपुर को हथकड़ी लगाई गई। 54 तक हत्या जैसे संगीन आरोप, 60 तक वारदातों का सरगना विकास को उस वख्त भी संरक्षण दिया गया, उस वख्त भी उसके घर के तीनों रास्ते नहीं घेरे गए जब शहीद सीओ को कुल्हाड़ी से काटा जा रहा था, सीने से सटाकर गोली मारी जा रही थी, यूं तो राज्य भर में खूंखार एवं वांछित अपराधी आईजी से लेकर डीआईजी, एसएसपी और एसएचओ की शरण में कहीं न कहीं बचे हैं, पचासों वांछित अपराधी सालों से मौज कर रहे हैं, मगर उससे भी ज्यादा चैकाने वाली बात यह कि आलीशान फार्म हाउसों की तरह आवासों में पसरे तमाम जिलाधिकारी न जाने किस तरह से वांछितों की फाइलें लिखते हैं, न जाने क्या लिखी हुई कानून के सामने पहुंचती हैं, पाप से पटी पुलिस डायरी पर न जाने क्यों सवाल नहीं उठाये जाते? न जाने क्यों पुलिस पर दबाव नहीं बनते? यह गम्भीर सवाल हैं। बहरहाल आज आइजी कानपुर के लिए गंभीर चुनौती खड़ी हुई है, हालांकि मोहित अग्रवाल जैसा अफसर अपनी निष्ठा और कठोर कार्यवाही के लिए जाना जाता है, मगर आज न जाने कितने सियासतदार, न जाने कितने वर्दी वालों पर क्या कार्यवाही होगी, यह उनके इम्तिहान में है। फिलहाल हम आपको बता दें कि घटना से कुछ ही दिन पहले सीओ बिल्हौर ने एसएसपी कानपुर के लिए एक अनुरोध लिखा था, उस अनुरोध में स्पष्ट था कि एसएचओ विनय तिवारी अनैतिक गतिविधियों में सना है, इस पर कार्यवाही होना जरूरी है, यही नहीं शहीद सीओ ने विकास का कुछ कारनामा भी उजागर किया था और उस पर मामला दर्ज कराने के लिए एसएचओ चैबेपुर विनय तिवारी को दबाब भी डाला और यह सब कुछ एसएसपी कानपुर सहित तमाम अफसरों की जानकारी में था, मगर न तो अफसरशाही ने सीओ के अनुरोध पर विचार किया, न ही गैंगस्टर की सूची और अपराधी के अपराध के बीच की दूरी मिलाई गई, लिहाजा आसान है कहना कि न सिर्फ अकेले मोहित अग्रवाल के लिए बल्कि पुलिस मुख्यालय से लेकर गृह विभाग यूपी तक की इमानदारी और निष्ठा पर इम्तिहान सामने खड़ा हैं। ऐसे में अफसरशाही क्या गुल खिलाती है, यह समय बताएगा।